चीन खंड 1- यीशु का भाई

China taiping rebellion
China taiping rebellion
चीन में ईसाई धर्म का प्रवेश कई बार हुआ, लेकिन एक घटना ऐसी है, जो चीन के इतिहास का रक्तरंजित पन्ना है। जब चीन में एक ऐसी अलहदा ईसाईयत आयी जिसने उसकी नींव हिला कर रख दी। आधुनिक चीन इतिहास के प्रथम खंड में चर्चा होगी ऐसे ही एक विद्रोह की।

कैंटन बंदरगाह, 1838

अफ़ीम युद्ध की शुरुआत में कुछ वक्त था। चीन दुनिया के लिए एक बंद देश था। कैंटन बंदरगाह पर विदेशी आते-जाते, लेकिन नगर में प्रवेश की इजाज़त नहीं थी। उन दिनों जब अफ़ीम की तस्करी हो रही थी, एक और महत्वपूर्ण चीज की तस्करी साथ-साथ हो रही थी। यह वो चीज थी, जो अफ़ीम तो नहीं थी, मगर बाद में एक बुद्धिजीवी ने उसकी तुलना अफ़ीम से ज़रूर की। चीन में तस्करी हो रही थी ईसाई धर्म की। 

मिशनरी बाइबल के चीनी अनुवाद चीन के गाँवों और शहरों में पहुँचा रहे थे। जो युवक इससे थोड़ा-बहुत प्रेरित होते, वे इसका स्रोत पता करते। मालूम पड़ता कि कैंटन बंदरगाह पर कोई फिरंगी है, जो इस किताब की समझ रखता है। वे उसे खुद ही तलाशते और इस तरह प्यासा कुएँ के पास आ जाता।

उस दिन अमरीकी मूल के पादरी एडविन स्टीवेंस के पास ऐसा ही एक युवक भटकता हुआ आया। उसका नाम होंग झिउकुआन (Hong Xiuquan) था। 

होंग ने कहा, “मैं कई दिनों से भटक रहा हूँ। मुझे परमेश्वर तक पहुँचने का रास्ता नहीं मिल रहा”

पादरी ने हँस कर कहा, “तुम किन परमेश्वर को ढूँढ रहे हो?”

उसने कौतूहल में पूछा, “क्या दुनिया में कई परमेश्वर हैं?”

उन्होंने कहा, “परमेश्वर तो एक ही हैं। मगर लोग अपनी मर्ज़ी से ईश्वर बनाते रहते हैं। मुझे लगता है कि तुमने भी मन में कोई छवि बना रखी है।”

“भला आप से क्या छुपा है? दुनिया इतनी भ्रष्ट और भौतिकवादी होती जा रही है। अब तो धन-संपत्ति, राज-सत्ता में ही ईश्वर दिखता है। मैं उस मोह से मुक्त होना चाहता हूँ। मैं ताओवादियों के पास गया, बौद्धमठ गया, अब आपके पास आया हूँ। कहीं तो मार्ग मिलेगा?”

“चिंता मत करो। जब दुनिया भ्रष्ट और स्वार्थी होती जाती है, अन्याय बढ़ने लगता है, तो परमेश्वर मार्ग दिखाते हैं। जैसे नूह (Noah) को दिखाया था”

“नूह? वह कौन थे?”

“बिल्कुल तुम्हारी तरह एक व्यक्ति जिन्हें परमेश्वर ने एक नाव बनाने कहा”

“मगर नाव क्यों?”

“परमेश्वर ने कहा कि यह दुनिया इतनी अत्याचारी हो गयी है, कि वह पूरी दुनिया में प्रलय ला देंगे। संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी”

“किंतु परमेश्वर ऐसा क्यों करेंगे?”

“विनाश के बाद ही तो सृष्टि होगी। यही प्रकृति का चक्र है जो परमेश्वर ने निर्धारित की है”

“जब सब कुछ डूब जाएगा तो आख़िर सृष्टि होगी कहाँ से?”

“नूह की नाव पर बचेंगे सृष्टि के बीज”

होंग की आँखें चमक उठी। 

उसने कहा, “मुझे लगता है कि इस युग का नूह मेरे अंदर है। आप जानते हैं कि होंग का अर्थ क्या है?”

“मुझे तुम्हारी भाषा समझ आती है, तभी तो मैं तुमसे बात कर रहा हूँ। लेकिन तुम स्वयं बताओ”

“होंग का अर्थ है- बाढ़। वह शक्ति जो दुनिया से पाप की अंत करेगी”

पादरी ने मुस्कुरा कर कहा, “यह संभावना उस समय प्रबल होगी जब तुम परमेश्वर की आराधना करोगे। उस परमेश्वर की, जो एक है। तुम बाइबल पढ़ो, और परमेश्वर के आदेशों का पालन करो। मार्ग स्वतः दिख जाएगा।”

होंग को लगा कि उसके अंदर वाकई नूह का प्रवेश हो गया है। वह पहले गुइपिंग के पहाड़ों में बसे एक गाँव का शिक्षक बना। वहाँ धीरे-धीरे उसने ईसाई धर्म और ईसाई परमेश्वर के विषय में प्रचार करना शुरू किया। उसने बोधिवृक्ष की नकल करते हुए एक वृक्ष के नीचे अपना आसन बना लिया, और आस-पास के ग्रामीण उसके पास आने लगे। 

तब तक अफ़ीम युद्ध ने चीन को घुटनों पर लाना शुरू कर दिया था। उनके राजवंश का बनाया यह भ्रम कि वे ईश्वर के भेजे गए दूत हैं, टूट रहा था। 

होंग ने ग्रामवासियों से कहा, “अब समय आ गया है कि हम परमेश्वर के आदेशों का पालन करें, और संसार से भ्रष्ट सत्ताओं का अंत करें। हमें साथ मिल कर इस चिंग राजवंश को ख़त्म करना होगा।”

एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा, “इस संसार का अंत कर हम किस संसार में प्रवेश करेंगे? यह कुचक्र भी भला कभी खत्म हुआ है?”

“हम प्रवेश करेंगे ताइपिंग तिआनगुओ (Taiping Tianguo) में। ईश्वर के संसार में”

ग्रामीण समवेत स्वर में चिल्लाए, “ताइपिंग! ताइपिंग!”

बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा, “अच्छा? ईश्वर के संसार में? आप यह विश्वास से कैसे कह सकते हैं?”

होंग अपने आसन से खड़ा हुआ, और ग्रामवासियों की तरफ़ देख कर कहा, “मैं विश्वास से कह सकता हूँ क्योंकि मैं होंग हूँ। परमेश्वर के दूत यीशु मसीह का अनुज। उन्होंने ही मुझे इस महान कार्य के लिए नियुक्त किया है”

यह अविश्वसनीय और बेतुकी बात थी। यह इस बात का उदाहरण भी थी कि ईसाई मिशनरी किस कदर दिमाग पर प्रभाव डाल सकते थे। 1852 ईसवी तक इस यीशु के स्वघोषित भाई के एक लाख से अधिक अनुयायी हो गए थे, जिन्होंने गुरिल्ला सेना बना ली थी।

उस सेना ने जल्द ही दक्षिण चीन में चिंग सेना को हरा कर नानजिंग की तरफ़ बढ़ना शुरू किया। इनकी एक विचित्र रणनीति वर्णित है। इस ताइपिंग सेना के कई अनुयायी खदानों में काम करते थे, और सुरंग बनाने में उस्ताद थे। वे नगर की सीमा में ज़मीन से न घुस कर एक सुरंग बनाते और सीधे केंद्र में प्रवेश कर जाते।

19 मार्च 1853 को इन्होंने इसी तरह दक्षिणी राजधानी नानजिंग पर क़ब्ज़ा कर लिया, और इसे ताइपिंग राजधानी घोषित कर दिया। 

होंग जो इस नए-नवेले राज्य का स्वाभाविक राजा था, उसने घोषणा की, “यह परमेश्वर का स्थान है। यह हमारा जेरूसलम है!”

होंग ने आगे कहा, “इस विजय के साथ अब हमारा उत्तरदायित्व बढ़ जाता है। हम यह वचन लेते हैं कि ईश्वर के इस संसार में अफ़ीम, तंबाकू या कोई भी नशा नहीं किया जाएगा। वेश्यावृत्ति नहीं होगी। अवैध संबंध नहीं होंगे। हर घर में बाइबल होगा। सबसे बड़ी और ज़रूरी बात कि कोई निजी संपत्ति नहीं होगी, न ही कोई वर्ग होगा।”

अगर होंग सफल होता तो चीन में ईसाई सत्ता आ जाती। वह भी बिना किसी विदेशी आक्रमण के। यह तो अंग्रेज़ों के लिए सोने पर सुहागा होता। क्या लगता है, ब्रिटिशों ने इस विद्रोह की आग में हवा दी होगी? या चीन के राजवंश का साथ देकर इनके दमन में सहयोग दिया होगा? 

इसका उत्तर तो इस पर निर्भर करता है कि उन साम्राज्यवादियों के लिए उस समय क्या अधिक महत्वपूर्ण था।

धर्म या…अफ़ीम!

(आगे की कहानी खंड 2 में) 

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In this part of the Modern China series, Author Praveen Jha describes the Taiping rebellion in China.

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