Rajesh Khanna
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मेरे फ़ैन्स कोई नहीं छीन सकता- राजेश खन्ना

हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार का जीवन हमें इस बात का अहसास दिलाता है कि बाबू मोशाय! ज़िंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए। और यह भी कि ज़िंदगी एक ऐसी पहेली है जो कभी हँसाती है तो उससे अधिक रुलाती भी है
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Sone ka Kila
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जैसलमेर का जासूस- फेलू दा

सत्यजीत रे एक बेहतरीन फ़िल्मकार के साथ-साथ कहानीकार भी थे। उनके द्वारा बनाए गए जासूसी पात्र फेलू दा हमें रोचक यात्रा पर ले जाता है। ‘सोने का किला’ इसी कड़ी में उनकी एक कहानी है
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Azaadi Mera Brand Anuradha
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एक आज़ाद लड़की का सफ़रनामा

नापसंद आते-आते यह किताब बहुत पसंद आ गयी। एक भारतीय लड़की की अकेली यूरोप यात्रा अपने आप में इसका एक्स-फैक्टर है। एक अपेक्षाकृत असामान्य चीज जो बड़े सामान्य अंदाज़ में मुमकिन हुई और दर्ज़ हुई। अनुराधा बेनीवाल की पुस्तक ‘आज़ादी मेरा ब्रांड’ का अनुभव
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Rajnatni Geeta Shree
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कौन थी राजनटनी?

गीताश्री ने बैक-टू-बैक इतिहास के पन्नों से राजनर्तकियों पर रचना की है। इस पुस्तक राजनटनी पर कुछ आपत्ति थी कि यह मूल मैथिली कथा की नकल है। किंतु साहित्य में पात्र एक हो सकते हैं, कथाएँ भिन्न, और इतिहास कहीं उनके इर्द-गिर्द
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Panchamrit Ashwini Dubey Rajkamal
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पंचामृत के पाँच संगीतकार कौन हैं?

इंदौर और देवास ने हिंदुस्तानी संगीत की दुनिया को समृद्ध किया है। अश्विनी कुमार दूबे वहाँ से पाँच महत्वपूर्ण नाम मंथन कर लाए हैं। रज़ा फ़ाउंडेशन और राजकमल प्रकाशन से छपी यह पुस्तक ज़रूर पढ़ी जानी चाहिए
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Emergency Jayaprakash Fernandes
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इमरजेंसी की हथकड़ी

इमरजेंसी के दौरान कुछ ऐसी स्थिति बनी कि सत्ता के ख़िलाफ़ समाजवादी, दक्षिणपंथी और वामपंथी नेता एक साथ आ गए। यह एक अजीबोग़रीब समीकरण था जिसे अपनी-अपनी सहूलियत और आरोप-प्रत्यारोप के लिए लोगों ने बाद में उपयोग किया। मगर मूल मुद्दा लोकतंत्र का वह रूप था जिसकी चिंता हर दौर में होती रही है
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Ghalib Gali Qasim Jaan
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काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे

1857 के गदर के समय ग़ालिब दिल्ली में मौजूद थे। उनका जीवन आखिरी मुग़ल बादशाह से ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया के सत्ता-परिवर्तन का चश्मदीद रहा। उनकी शायरियों में यह दौर कभी नेपथ्य में तो कभी मुखर होकर आता है। यह ज़िंदगी नामा इस तरह लिखी गयी है कि ग़ालिब की कहानी ग़ालिब की ज़ुबानी सुनी जा सके। यह किताब लिखी है वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज ने
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Renaissance Book Extract
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अंग्रेज़ न आते तो क्या होता?

अंग्रेज़ों के आने के बाद यह संभावना दिखायी दे रही थी कि अधिक से अधिक ईसाई धर्मांतरण होंगे, जैसा कई ब्रिटिश या यूरोपीय उपनिवेशों में हुआ। किंतु इसके विपरीत भारत में आना और यहाँ की सांस्कृतिक विरासत से परिचय उनके लिए भी एक पहेली बनता चला गया
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Rome Poster 4
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रोम 4- इटली में पिज़्ज़ा नहीं खाते

दुनिया के तमाम इतालवी रेस्तराँ में जो भोजन मिलता है, वह ज़रूरी नहीं कि इटली के लोग भी प्रतिदिन खाएँ। जैसे भारतीय रेस्तराँ के लोकप्रिय भोजन भी भारतीय दिनचर्या के भोजन नहीं होते।
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Balraj Sahni Irfan
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जब फ़िल्म स्टार ने चलाया हाथ रिक्शा

एक अभिनेता जिनकी फ़िल्मी दुनिया लगभग उस समय शुरू होती है, जब उनके बाल पक चुके थे। एक कम्युनिस्ट जो जेल से शूटिंग पर जाते। एक बीबीसी पत्रकार जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय लंदन में थे। बलराज साहनी की आत्मकथा इरफ़ान की आवाज में सुनते हुए
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