‘राजा तो राजा होता है। चाहे वह गद्दी पर हो या न हो।’
- राजेश खन्ना
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फ़िल्मी जीवनियाँ इसलिए अक्सर पढ़ता हूँ, क्योंकि उनसे ज़मीन पर पाँव रखने का मतलब समझ आता है। आसमान में उड़ते लोग जिनके पीछे दुनिया भाग रही होती है, एक दिन खुद पीछे छूट जाते हैं। जो किसी कोने में खड़ा होता है, उसका सितारा एक दिन बुलंद हो जाता है, और वापस वह रसातल में भी चला जाता है। ग्लैमर की यह क्षणभंगुरता अपने-आप में एक सीख है कि ज्यादा उड़ो मत! एक दिन धड़ाम से गिरोगे।
राजेश खन्ना फ़िल्मी दुनिया के पहले सुपरस्टार थे। वह लॉन्च ही एक स्टार के रूप में हुए। अखबार में छपी फ़िल्मफेयर की प्रतिभा खोज प्रतियोगिता (1965) का विज्ञापन देखा, और उसे अपनी अदाकारी से जीत लिया। दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर के गद्दी को पहले इसी प्रतियोगिता से धर्मेंद्र ने थोड़ा-बहुत हिलाया था। अब तो यह युवक अपनी मुस्कान और अदाओं से फ़िल्मों की चाल-चलन ही बदलने वाला था।
राजेश खन्ना (जिनका मूल नाम जतिन खन्ना था) का नाम पर्दे पर आया ही बड़े अक्षरों में- Introducing Rajesh Khanna!
जनता हर दृश्य में इंतज़ार करने लगी कि कौन है, कब आएगा यह राजेश खन्ना! उसके बाद तो जो हुआ, वह इतिहास है।
मैं एक बीबीसी वृत्तचित्र देख रहा था- ‘बॉम्बे सुपरस्टार’ (1973) जिसके पहले ही दृश्य में एक बड़े निर्देशक सेट पर इंतज़ार कर रहे होते हैं कि राजेश खन्ना कब आएँगे। वह बताते हैं कि उनकी वजह से कितना नुकसान हो रहा है। मगर सुपरस्टार तो सुपरस्टार है, वह राजा है, अपनी मर्जी से आएगा।
पत्रकार अगले दृश्य में राजेश खन्ना से अपाइंटमेंट लेकर उनके आलीशन बंगला ‘आशीर्वाद’ पहुँचते हैं। वहाँ बीबीसी की टीम को दरवाजे से ही वापस भेज दिया जाता है कि कल सुबह आइए, आज साहब व्यस्त हैं। वे कहते हैं कि हमें वक्त दिया था, सब तय है। मगर बीबीसी को वापस लौटना पड़ता है। पाँच दिन तक चक्कर लगाने के बाद ही आखिर सुपरस्टार उनसे मुलाक़ात करते हैं।
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बहरहाल इस वृत्तचित्र तक मैं पहुँचा गौतम चिंतामणि लिखित पुस्तक ‘राजेश खन्ना- एक तन्हा सितारा’ के मार्फ़त। यह ऐसी जीवनी है जो पहले पन्ने से बाँध लेती है। इसकी शुरुआत एक दृश्य से होती है, जब राजेश खन्ना का समय खत्म हो चुका होता है। वे सुपरस्टार नहीं रहते, और फ़िल्मी दुनिया छोड़ कर राजनीति में आ जाते हैं। दिल्ली से कांग्रेस सांसद चुने जाते हैं।
राजेश खन्ना एक गाड़ी से जा रहे होते हैं, और अगली गाड़ी के शीशे से एक सात-आठ साल की बच्ची उन्हें एकटक देख रही होती है। वह उन्हें नहीं पहचानती। राजेश खन्ना को निराशा होती है कि यह नयी पीढ़ी उन्हें भूल चुकी है। वह चश्मा उतारते हैं, बच्ची को देख मुस्कुराते हैं, ऐसा करते हुए उनकी एक आँख कुछ झपकती है, सर एक तरफ़ झुक जाता है। वह बच्ची सहसा चिल्लाती है- मम्मी! मम्मी! सुपरस्टार!
राजेश खन्ना का करिश्मा उनके जाने के बाद भी खत्म नहीं हो सकता क्योंकि गाड़ियों के रेडियो में ‘मेरे सपनों की रानी’ बजते रहेंगे, पार्टियों में ‘रूप तेरा मस्ताना’, किसी उदास शाम में ‘चिनगारी कोई भड़के’ तो कहीं ‘ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय’। टेलीविजन पर कभी ‘आनंद’, कभी ‘बावर्ची’, कभी ‘अमर प्रेम’ दिखता रहेगा।
लोग एक-दूसरे को अलविदा करते हुए कहेंगे- अच्छा! तो हम चलते हैं
इस इंटरनेट युग में भी ‘पुष्पा! आइ हेट टीयर्स’ के चुटकुले बनते रहेंगे। ‘बागों में बहार है’ का जुमला चलेगा।
लेकिन, यह कहानी जितनी किसी आसमानी सितारे की कहानी है, उतना ही एक टूटे हुए तारे का। मुस्कुराहट के पीछे छुपे दर्द का।
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राजेश खन्ना उस दौर के ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने आँसू लाने के लिए कभी ग्लिसरिन का इस्तेमाल नहीं किया। पुस्तक में एक दृश्य है कि ‘आ अब लौट चलें’ फ़िल्म (1999) में बुजुर्ग हो चले राजेश खन्ना को रोना था। उन्होंने पूछा- कितने आँसू चाहिए?
उन्होंने कुछ सेकंड के लिए अपना सर पीछे घुमाया और मुस्कुराते हुए आँखों में आँसू लिए लौटे। इस एक पल में वह आँसू लाने पर कहते थे- इंसान को भला आंसू उधार लेने की क्या ज़रूरत? ग़म तो दुनिया में इतने हैं कि झोली कम पड़ जाए।
इसी फ़िल्म की शूटिंग के समय एक सीन में निर्देशक ऋषि कपूर उन्हें अपना हाथ स्थिर रखने कहते हैं। दो-चार टेक के बाद भी राजेश खन्ना का हाथ अपने-आप हिल जाता है। ऋषि कपूर गुस्से में आकर उन्हें डाँट देते हैं। कभी सुपरस्टार रहे राजेश खन्ना कुछ नहीं कहते, और चुपचाप वह सीन निभा जाते हैं।
सीन के बाद वह एक कोने में कुर्सी पर बैठ जाते हैं। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं- ‘मुझे राज कपूर ने एक बार कहा था- काका! तेरे हाथों में जादू है। इसे कभी अपनी अदायगी में रुकने मत देना…और आज उनका बेटा उन जादुई हाथों को रोकने कह रहा है’
इस किताब का सबसे मार्मिक दृश्य है राजेश खन्ना का आखिरी शॉट। बूढ़े और बीमार राजेश खन्ना अपने चिकित्सक से पूछते हैं- इस दुनिया से मेरे वीज़ा खत्म होने में कितने दिन बचे हैं?
जब उन्हें पता लगता है कि वह जल्द मरने वाले हैं, वह उदास होने के बजाय गोवा निकल जाते हैं। कुछ-कुछ अपनी ही फ़िल्म ‘आनंद’ की तरह वह अपने हर आखिरी पल जी लाना चाहते हैं। उनके पास निर्देशक आर बाल्की आते हैं कि क्या वह एक पंखे का विज्ञापन करेंगे?
एक ज़माने का सुपरस्टार जिसने कभी कोई टीवी विज्ञापन नहीं किया, क्योंकि वह इसे दोयम दर्जे का समझता था, एक पल में मान जाता है। यह जानते हुए भी कि यह विज्ञापन फूहड़ लग सकता है, और अपना ही मज़ाक बन सकता है, वह तैयार होते हैं।
विज्ञापन के लिए बेंगलुरू जाते हुए उनकी छोटी दुर्घटना हो जाती है, मगर वह जिद करते हैं कि यह आखिरी शॉट देंगे। वह आखिरी बार कैमरे के सामने खड़े होते हैं और कहते हैं- ‘बाबू मोशाय! मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता’
कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो जाती है। उनके आखिरी शब्द थे- पैक अप!
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यह कहानी किसी सुपरस्टार की तो है, मगर महानायक की नहीं। यह एक आदमी की कहानी है, जो क़तई भगवान नहीं है। वह कई बार तो एक मतलबी और बुरा व्यक्ति लग सकता है। मगर यही इंसान होने का प्रमाण भी देती है। कमजोरियों और मानवीय त्रुटियों से भरपूर सुपरस्टार।
निजी जीवन में अंजू महेंद्रू से संबंध, पंद्रह वर्ष की डिंपल से विवाह, नवयुवती टीना मुनिम से विवाहेतर संबंध। यहाँ तक कि तेरह वर्ष की सबीहा के साथ छेड़-छाड़ का आरोप भी लगा। उनकी मृत्यु पर अनीता आडवानी नामक महिला ने दावा किया कि वह उनकी पार्टनर थी। इससे इतर अभिनय में भी उनमें पर्याप्त त्रुटियाँ देखी गयी। उनका फलक कई मामलों में सीमित कहा गया।
ऊपर बताए गए बीबीसी वृत्तचित्र में एक दृश्य है, जिसे हम सबने कई बार टीवी पर देखा होगा। राजेश खन्ना मुमताज की जोड़ी गा रही है- ‘सुनो..सुना..कहो..कहा..कुछ हुआ क्या..अभी तो नहीं..कुछ भी नहीं’
पर्दे पर यह जितना सहज अभिनय लगता है, शूटिंग के समय राजेश खन्ना को इक्कीस रीटेक लेने होते हैं। वह बीस बार ग़लतियाँ करते हैं या निर्देशक को दृश्य पसंद नहीं आता। मगर वह इक्कीस बार रीटेक लेते हुए नाराज़ नहीं होते। बल्कि कहते हैं- मुझे इसमें आनंद आता है। कैमरे पर जितनी बार भी जाऊँ, अच्छा लगता है।
एक बार उनके दोस्त और पटकथा लेखक सलीम ख़ान किसी साक्षात्कार में कह देते हैं कि संजीव कुमार सबसे अच्छे अभिनेता हैं। उनसे राजेश खन्ना ख़ास कर मिलने जाते हैं और पूछते हैं- क्या वाकई संजीव कुमार मुझसे बेहतर है, या तुमने ग़लती से कह दिया?
जब सलीम ख़ान कहते हैं कि आप दोनों अपने-अपने दृश्यों में कमाल करते हैं, तो वह जोर देकर पूछते हैं- एक चुनना हो तो?
सलीम हार कर कहते हैं- संजीव कुमार
राजेश खन्ना इससे नाराज़ नहीं होते, मगर निराश होते हैं। वह अपने अभिनय को तराशने निकल जाते हैं। यह असुरक्षा ही उनसे बेहतर काम भी कराती है।
एक अन्य घटनाक्रम उनके जीवन की टीस बन गयी। ‘बावर्ची’ फ़िल्म की शूटिंग में अभिनेत्री जया भादुड़ी से मिलने उनके एक पतले लंबे बॉयफ़्रेंड आया करते। राजेश उन्हें जानते थे मगर कहते- ये लो आ गया मनहूस शक्ल!
जब बार-बार उन्होंने जया के प्रेमी का मज़ाक उड़ाया, तो उनका धैर्य टूट गया। जया भादुड़ी ने ऊँचे स्वर में सेट पर कहा- ‘देख लेना! एक दिन यह मनहूस शक्ल सुपरस्टार बनेगा, और आज के सुपरस्टार को पूछने वाला कोई न होगा’
यह खीज में निकली एक प्रतिक्रिया मात्र थी, मगर यह जैसे एक श्राप बन गयी। वाकई उस लड़के अमिताभ बच्चन ने सुपरस्टार राजेश खन्ना से गद्दी छीन ली। हद तो यह कि राजेश के दोस्त सलीम ख़ान और जावेद अख़्तर की जोड़ी ने ही उसे सुपरस्टार बनाया। राजेश के प्रिय निर्देशक शक्ति सामंत और गायक किशोर कुमार उस नए सुपरस्टार से जुड़ गए।
अमिताभ के सुपरस्टार बनने के बाद एक साक्षात्कार में राजेश खन्ना कहते हैं- अमिताभ जब-जब ग़लतियाँ करता है, मेरे मन में एक गुदगुदी सी होती है। मैंने वह दिन देखे हैं जब मैं सुपरस्टार था। आज इसका वक्त है। मुझे मालूम है एक दिन यह भी सुपरस्टार नहीं रहेगा, कोई और आ जाएगा।
लेखक गौतम चिंतामणि अपनी किताब में यह ध्यान दिलाते हैं कि ‘नसीब’ फ़िल्म (1981) के गीत ‘जॉन जानी जनार्दन’ में राजेश खन्ना के चेहरे पर अमिताभ के लिए हिकारत देखी जा सकती है।
यह सही भी है कि फ़िल्म से लेकर राजनीति तक राजेश खन्ना अमिताभ को वापस पछाड़ने का प्रयास करते रहे। राजेश खन्ना का सांसद चुना जाना कम से कम एक अखाड़े में छोटी जीत थी, लेकिन इस बात से सभी सहमत होंगे कि अमिताभ बच्चन ने लंबी पारी खेली और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नॉट आउट हैं।
लेकिन, एक भावुक क्षण भी आता है जब अमिताभ बच्चन के हाथ से राजेश खन्ना को IIFA लाइफ़ टाइम एचीवमेंट पुरस्कार मिलता है।
अमिताभ वहाँ कहते हैं-
सुपरस्टार क्या होता है, यह वही जानते हैं, जिन्होंने राजेश खन्ना का समय देखा है। मैंने राजेश खन्ना की गाड़ी की धूल को टीके की तरह लगाते लड़कियों को देखा है। वह दीवानगी न पहले कभी हुई, न शायद आगे कभी हो।
दोनों चिर-प्रतिद्वंद्वी वहाँ गले मिलते हैं। राजेश खन्ना बाकी के जीवन भर वह पुरस्कार बिल्कुल अपने सामने रखते रहे, और जो भी मिलता उससे कहते- यह पुरस्कार मुझे अमिताभ बच्चन के हाथ से मिला है। उसने कहा मैं सुपरस्टार हूँ।
लेखक उनके किंग-साइज जीवन को खोने की अफ़वाहों को ख़ारिज करते हैं। वह लिखते हैं कि यह बात सरासर झूठी थी कि राजेश खन्ना के लिए अपने घर ‘आशीर्वाद’ बेचने की नौबत आ गयी, और दामाद अक्षय कुमार ने मदद की। बल्कि मृत्यु के समय राजेश खन्ना की कुल संपत्ति 500 करोड़ थी! उन्होंने किसी की मदद नहीं ली, न ही आशीर्वाद बेचा।
बल्कि जब उनके मौत की अफ़वाह चलने लगी, तो वह एक दिन लुंगी पहन कर हाथ में शराब का गिलास और मुँह में सिगरेट लिए अपने बंगले के बाहर आकर खड़े हो गए। उन्होंने पत्रकारों को कहा- देख लो! राजेश खन्ना मरा नहीं। राजेश खन्ना नहीं मरते।
यह संवाद भी उनके ‘आनंद’ फ़िल्म के संवाद की ही याद दिलाता है।
आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं!
Author Praveen Jha narrates a summary of biography and walk-through of bollywood superstar Rajesh Khanna’s life.
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2 comments
बेहतरीन
राजेश खन्ना मुझे उतने पसंद नहीं आते जितना उनका कद बड़ा देखती हूं… पर एक आकर्षण जरूर था जो सहज ही नजरें हटने नहीं देता था, कभी इस पर ज्यादा सोचा नहीं पर आज यह लेख पढ़ कर लगा शायद उनका महानायक का कद न होना , मानवीय त्रुटियों वाला सुपर स्टार होना ही उन्हें आम से जोड़ देता है। अच्छा लेख… 👍🏻