क्रिसमस पर पिछले वर्ष वैटिकन और रोम का अनुभव लेने के बाद इस वर्ष पुर्तगाल की सैर पर निकला। भले ईसाई धर्म की एक धुरी रोम हो, मगर पुर्तगाल में उसका एक मुखर रूप दिखता है। जैसे ईसाइयत का ठेका उनके हाथ ही में हो, रोम तो सिर्फ़ नाम-मात्र का केंद्र हो।
मसलन टेगू नदी के ठीक किनारे पहाड़ी पर दोनों हाथ आगे फैलाए यीशु मसीह की ठीक वैसी ही ऊँची मूर्ति है जैसी रियो डी जेनेरो (ब्राज़ील) में। उसी नदी के दूसरे किनारे एक जहाज का स्मारक बना है, जिस पर तमाम पुर्तगाली नाविकों की हाथ में क्रॉस लिए मूर्ति बनी है। वास्को डी गामा उस पंक्ति में तीसरे स्थान पर खड़ा है, मैगलन पाँचवे। उस स्मारक से कुछ ही दूर वास्को डी गामा की कब्र भी मौजूद है, जहाँ भारत से उसके अवशेष लाकर रखे गए।
सड़कों पर गगनचुंबी क्रिसमस पेड़ों की लड़ियों को सजाया गया है। सड़क के किनारे हर वृक्ष सजा-धजा है। गलियों में ईसाई लड़कियाँ कैरोल गाती घूम रही हैं। हर किसी के हाथ में क्रिसमस के तोहफ़ों की झोली है। वाकई ऐसा माहौल मैंने रोम या किसी ईसाई राजधानी में नहीं देखा, जैसा लिस्बन में दिखा।
मगर उन्हीं गलियों से गुजरती एक अजूबी चीज और दिखी। लिखा था- ‘दुनिया की सबसे पुरानी सक्रिय किताब की दुकान’। उसके ऊपर गिनीज़ बुक का स्टिकर लगा था। यह दुकान 1732 ई से अब तक यानी लगभग तीन सौ वर्ष से सक्रिय है।
कई लोग दुकान के बाहर खड़े होकर सेल्फ़ी खींचते हुए तेज़ी से आगे निकल जा रहे थे। मगर एक अच्छी-ख़ासी भीड़ दुकान के अंदर भी मौजूद थी, जिन्हें वाकई किताबों की तलब थी। स्थानीय लोग जिनके माता-पिता, दादी-दादा, परदादी-परदादा, लकड़दादा आदि वहाँ आकर किताब खरीदते होंगे। ज़ाहिर है यह एक लोकप्रिय दुकान रही होगी। मुझे मालूम पड़ा कि इनकी कई शाखाएँ खुल गयी हैं, और वे प्रकाशक भी हैं।
अंदर जाकर देखा तो वहाँ पुर्तगाली और स्पैनिश भाषा की ही किताबें भरी थी। हज़ारों किताबें। अंग्रेज़ी किताबों का सिर्फ़ एक छोटा सा कोना था, मगर उस कोने में भी पुर्तगाली से अनूदित किताबों ने ही झंडा बुलंद कर रखा था। अंग्रेज़ी के नामचीन लेखक भी नदारद थे।
यह कोई अजीब बात नहीं, क्योंकि पुर्तगाली-स्पैनिश साहित्य अपने-आप में ही खासा समृद्ध है। समय-समय पर उन्होंने यह साबित किया है कि उनके पेसोआ, सारामागो, मार्खेज, रिबेरो, लोसा जैसे लेखकों की अलग ही दुनिया है। जैसे रूसी साहित्यकारों की। इनके अंग्रेज़ी अनुवाद दुनिया भर में पढ़े जाते हैं।
किताब की दुकान में अधिकांश लोग क्रिसमस के लिए किताबें पैक करा रहे थे। यह तोहफ़ा बाँटना शायद अधिक लोकप्रिय हो। किताबों का एक पिरामिड बना कर उसे भी क्रिसमस की तरह सजा दिया गया था। नए रस्मों और नए चहल-पहल के साथ दुनिया की सबसे पुरानी दुकान कायम थी।
दुकान में पीछे एक कैफे भी था, जहाँ लोग कॉफी पीते हुए लिख-पढ़ रहे थे। यह माहौल मैंने एक और पुरानी दुकान में था, जो पहले अखबार मिल हुआ करता था। अखबार बंद हो गया, तो उसमें किताबें बिकने लगी। इन किताब दुकानों को पुर्तगाली में ‘लिबरेरिया’ कहते हैं, जिससे लाइब्रेरी शब्द बना है। आखिर पुस्तक की दुकान भी सिर्फ़ दुकान थोड़े ही है, वह अपने-आप में एक पुस्तकालय है।
मैंने जब उनसे किताब ली, तो उन्होंने उस पर एक मुहर लगा दी।
मुहर पर लिखा था- “हम सत्यापित करते हैं कि यह किताब दुनिया की सबसे पुरानी दुकान से खरीदी गयी है”
मैंने देखा कि पुर्तगाली किताब का वह अनुवाद प्रकाशित भी उन्होंने ही किया था। जैसे मिठाई की दुकान से ताज़ा-ताज़ा जलेबी छन कर आ रही हो। किताब छाप कर वहीं रखी और बेची जा रही थी। खरीदने वाले को भी गर्व की अनुभूति हो रही थी कि देखो! आखिर किताब कहाँ से खरीदी है। लोग किताब हाथ में लिए खुशी से सीना ताने दुकान से निकल रहे थे।
दिल्ली में एक संवाद में मैंने सुना कि फलाँ को किताबों का बहुत अहंकार है। जितनी पढ़ता नहीं, उतनी दिखाता है। बड़ा घमंडी है।
दूसरे ने जवाब दिया कि कुछ भी कहो, मगर यह घमंड दुनिया की बाकी घमंडों से अच्छा है।
Author Praveen Jha narrates his experience about Livraria Bertrand – Chiado in Lisbon, the oldest book store in the world.
1 comment
अद्भुत जानकारी तीन सौ साल से किताबों की दुकान चल रही है।