मानव खंड 2- अफ़्रीका से भारत

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मानव का अफ्रीका से पूरे दुनिया में पसरने के सबूत अब पक्के होते जा रहे हैं। डीएनए ने इस गुत्थी को बहुत आसानी और तेज़ी से सुलझाना शुरू कर दिया है।

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1

अफ़्रीका से चलते-चलते मनुष्य पूरी दुनिया में पसर चुके थे। यह जो भी क़ाफ़िला था, वह संभवत: एक ही आदम गाँव या एक ही परिवार का था। एक ही वंश के लोग। बात अज़ीब है, मगर डीएनए तो यही कहता है। ये सभी होमो सैपिएन्स थे, जिनकी मुलाकात दुनिया के अन्य मानव प्रजातियों से हो रही थी। 

जब ये भारत आए तो घूमते-फिरते वह भोपाल के निकट भीमबेतका (भीम बैठक) की गुफ़ाओं में बस गये। ऐसी और भी गुफ़ाएँ थी, मगर यह एक बड़ा केंद्र था। यह उनका हेडक्वार्टर था। यहीं से योजना बना कर वह पूरे दक्षिण एशिया, चीन, अंडमान, फ़िलीपींस, इंडोनेशिया, लंका और यहाँ तक कि ऑस्ट्रेलिया तक गए। अब सवाल यह है कि क्या आज आप भारत से टहलते हुए ऑस्ट्रेलिया जा सकते हैं? फिर वे कैसे चले गए, और इसके प्रमाण क्या हैं? 

एक प्रमाण तो डीएनए ही है। दूसरी बात कि उस समय यानी आज से पचास-साठ हज़ार वर्ष पहले समुद्र उथला था, और कुछ उछल-कूद करते, कुछ छोटी डोंगियाँ बना कर पहुँचा जा सकता था। यह माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया उससे पहले एक वीरान द्वीप था, जहाँ आदमी तो क्या बंदर, गुरिल्ला आदि भी नहीं थे। संभवतः वहाँ के पहले वानर प्रजाति होमो सैपिएंस (मानव) ही थे, जो भारत-मलय उपमहाद्वीप के रास्ते पहुँचे थे। ये लोग अपने साथ कुछ मार्गदर्शक कुत्ते भी ले गए थे, जो ऑस्ट्रेलिया में ‘डिन्गो’ प्रजाति कहलाते हैं।

होमो सैपिएन्स ने धीरे-धीरे अपनी बुद्धि से अन्य मानव प्रजातियों का खात्मा शुरू कर दिया। उन्होंने कई लड़ाईयाँ लड़ी, जो पानीपत की लड़ाई और विश्व-युद्धों से कम न रही होगी। हमने इतिहास की किताबों में ऐसी लड़ाई नहीं पढ़ी जिसमें एक पूरी नस्ल ही खत्म हो गयी हो। उस जमाने के इस होलोकॉस्ट का ज़िम्मेदार कोई न कोई सैपिएन्स सरदार रहा होगा। 

यह लड़ाई कई जगहों पर कई बार लड़ी गयी। जैसे आज के इज़रायल में। आंध्र के ज्वालापुरम में सत्तर हज़ार वर्ष पुराने हथियार मिले। इस लड़ाई और बाद में एक टोबा ज्वालामुखी विस्फोट के बाद भारत के आदि-मानव खत्म हो गए, सिर्फ़ सैपिएन्स बच गए। 

सैपिएन्स की सबसे भीषण लड़ाई नियंडरथल नामक मानव प्रजाति से हुई। वह युद्ध पूरे यूरेशिया में कई जगह हुए, और कई हज़ार वर्ष चले। गोली-बंदूक या तलवार तो थी नहीं, ये लड़ाइयाँ तीर-धनुष और पत्थरों से ही होते होंगे। 

नियंडरथल से सैपिएन्स का प्रेम भी हुआ होगा। आज के अधिकांश यूरोपीय, अरबी, और उत्तर भारतीयों के डीएनए का दो प्रतिशत अंश नियंडरथलों का है। ऐसे पूर्वजों का, जिनकी नस्ल को हमारे ही पूर्वजों ने खत्म कर दिया।

इन युद्धों के बाद जब दुनिया में सिर्फ़ सैपिएन्स ही बच गए, पृथ्वी पर हिम-युग आ गया। पच्चीस हज़ार वर्ष पूर्व दुनिया बर्फ़ से ढक गयी, और सभी सैपिएन्स गुफ़ाओं में छुप गए। जब दस साल बाद यह बर्फ़ की चादर पिघली, तो देखा कि प्रलय आ गया। कई इलाके जलमग्न हो गए। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और इंडोनेशिया जाने का रास्ता बंद हो गया। अब जो मनुष्य जहाँ-जहाँ पहुँच गए थे, वे वहीं रह गए। हज़ारों वर्षों तक मनुष्य को पता भी नहीं लगा कि कोई अमरीका या ऑस्ट्रेलिया जैसी जगह भी है, जहाँ हमारे हिम-युग के बिछड़े भाई-बंधु रहते हैं।

 

2

‘हमें कैसे पता लगता है कि पचास हज़ार या एक लाख वर्ष पहले क्या हुआ था? हम कैसे कह सकते हैं कि वह कंकाल इतना पुराना है?’

‘आपने रेत-घड़ी देखी होगी। आवर-ग्लास। उसमें रेत जब पूरी नीचे गिर जाती है, तो हम कहते हैं कि आधा घंटा हो गया, या एक घंटा हो गया। इसी तरह कार्बन लगभग छह हज़ार वर्ष में टूट कर आधा हो जाता है, बारह हज़ार वर्ष में चौथाई, अठारह हज़ार वर्ष में आठवाँ हिस्सा। उसे माप कर हमें पता लग जाता है। अगर हमें यूरेनियम उन पत्थरों में मिल गए, तो वह साढ़े चार अरब वर्ष या उससे पुरानी तारीख़ भी बता देगा!’

‘लेकिन यह कैसे पता लगता है कि वह सैपिएन्स हैं या नियंडरथल?’

‘यह उनके कंकालों के आकार-प्रकार से पता लगता है। नियंडरथल कद में छोटे, कुछ मोटे-तगड़े और चौड़ी नाक वाले होते थे। उनकी खोपड़ी भी बड़ी होती थी। मुमकिन है कि वह आप से फुटबॉल में हार जाते, मगर कुश्ती में आपको धोबिया-पाट दे देते! अब उनके डीएनए भी मिल गए हैं, तो यह अधिक आसान हो गया है’

‘नियंडरथल का डीएनए?’

‘हाँ। उनके कंकाल से उनका डीएनए निकल गया, और उसकी पूरी जीनोम यानी उसका पूरा चिट्ठा भी। अब वह मिलान करने से हमें पता लगा कि हमारे अंदर उनके अंश हैं। हमने उनसे कई गुण लिए, ख़ास कर ठंड में जीने की ताक़त’

‘लेकिन, यह कैसे पता कि वे आपस में लड़े थे?’

‘हम यह जानते हैं कि वे खत्म हो गए। हम ये नहीं जानते कि वे या अन्य मानव किस तरह खत्म हुए। ख़ास कर नियंडरथल तो काफ़ी ताकतवर, कठिन तापमान में जीने वाले, और बड़े दिमाग वाले थे। इज़राइल में कुछ गुफाओं में एक ही समय के सैपिएन्स और नियंडरथल के कई कंकाल और पत्थर के औजार मिले। संभव है, वे साथ रहते हों। या वहाँ कोई लड़ाई हुई हो। पचास हज़ार वर्ष पूर्व तक उनके कंकाल कई जगह मिलते हैं, लेकिन उसके बाद के कंकाल सिर्फ यूरोप के एक छोटे प्रांत में मिले। जैसे उनकी सत्ता सिकुड़ कर उतनी ही रह गयी हो’

‘हो सकता है उन्हें कोई बीमारी हो गयी हो?’

‘बिल्कुल। मौसम बदला हो। बीमारी हुई हो। एक वैज्ञानिक ने यह भी ढूँढा कि जिनके डीएनए में नियंडरथल के अंश हैं, वे कोरोना से अधिक गंभीर पीड़ित हो रहे हैं’

‘यानी नियंडरथल कोरोना जैसी बीमारी से खत्म हो गए?’

‘यह तो पता नहीं। वजह चाहे जो भी थी, उस वक्त सैपिएन्स बच गए’

‘हम यह कैसे कह सकते हैं कि मानव अफ़्रीका से ही आए?’

‘मानव अफ़्रीका से ही नहीं आए। होमो सैपिएन्स अफ़्रीका से आए, यह माना जाता है।‘

‘यानी मानव प्रजातियाँ अन्य स्थानों पर थी?’

‘इसके एक नहीं कई सबूत हैं। भारत में नर्मदा स्त्री, रामापिथिकस, चीन में दाली मैन, इंडोनेशिया में जावा मैन आदि’

’मगर सैपिएन्स अफ़्रीका से ही आए, यह कैसे कहा जा सकता है? हो सकता है भारत में भी रहे हों?’

’जब तक अफ़्रीका से पुराने सैपिएन्स मिल नहीं जाते, कुछ और कहा नहीं जा सकता। अफ़्रीका में तीन लाख वर्ष पुराने सैपिएन्स मिले, लेकिन अन्य स्थानों पर तीस से साठ हज़ार वर्ष पुराने ही मिल सके। ऐसा नहीं कि खोजा नहीं गया। भारत ने तो डायनॉसोर के अंडे तक खोज लिए, कई मानव अस्थियाँ मिली। यूरोप में नियंडरथल खूब मिले। मगर सैपिएन्स प्रजाति में अफ़्रीका अभी लाखों वर्षों की लीड लेकर चल रहा है’

‘इस बात की क्या गारंटी है कि अफ़्रीका से ही भारत या अन्य स्थानों पर गए?’

’आज से तीन-चार दशक पहले यह सब पक्का कहना कठिन था। लोग उनके औजारों से, भाषा से, रस्मों से, रंग से, बनावट से, धर्मग्रंथों की बातों से, आज के ब्लड ग्रुप से मिलान करते रहते। मगर डीएनए ने सभी गणित बदल कर रख दिए। आज के समय वह ऐसी पत्थर की लकीर है, जिसे काटना कठिन है’

‘तो क्या वाकई अफ़्रीका से बाहर हर व्यक्ति के पूर्वज एक ही थे?’

’हर व्यक्ति का डीएनए तो जाँचा नहीं गया। मगर पूरी दुनिया के उपलब्ध डीएनए डाटा का एक बैंक बना, जिसे जीनोम बैंक कहते हैं। यह एक ओपेन-एक्सेस डाटा-बैंक है, जिसमें हर दिन सैकड़ों जीनोम जमा होते हैं। हैदराबाद का परीक्षण भी वहाँ अपलोड होता है, सिडनी का भी। उनके आधार पर समूह तैयार होते हैं’

‘कैसे समूह?’

‘एक जैसे डीएनए अक्षर और एक जैसे म्यूटेशन के समूह। इसे हैप्लोग्रुप कहते हैं। जैसे अफ़्रीका के अंदर मूल L समूह के कई उपसमूह मिलते हैं, जबकि अफ़्रीका के बाहर सिर्फ़ L3 समूह ही बहुधा मिलते हैं। उस समूह की M और N शाखा एशिया, और अधिकांश N शाखा यूरोप में’

‘भारत में कौन सी शाखा है?’

’वर्तमान डाटा के अनुसार, भारत में N की उपशाखा R और उसकी उपशाखा U अधिक है’

‘इसका क्या अर्थ निकलता है?’

’इसका एक अर्थ तो यह है कि सभी भारतीयों के पूर्वज लगभग एक ही आदि-मूल शाखा से हैं। उपशाखाओं का अर्थ है कि भारत एक जंक्शन था, जहाँ भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से मानव आए, कई आकर बसे, और कई अन्य स्थान गये’

‘जैसे आपने लिखा कि भारत से ही ऑस्ट्रेलिया गये? कूद-फाँद कर गये? ऐसा कैसे मुमकिन है?’

’आप मानचित्र पर ग़ौर फरमाइए और बताइए कि यह कैसे मुमकिन है? किस रास्ते से मुमकिन है? थाइलैंड से मलेशिया से इंडोनेशिया से ऑस्ट्रेलिया तक कई टूटे पुल शायद दिख जाएँ? शायद कोई रीफ़ (उथले चट्टान/शैलभित्ति) दिख जाए? यह अंदाज़ा लगे कि हिम-युग में बर्फ़ जमने से रास्ते बने हों? सबसे अकाट्य सत्य तो वहाँ के  आदिवासियों के डीएनए का मिलान ही होगा। आदमी क्या, किसी जानवर की भी कुंडली निकल जाएगी। जैसा एक ख़ास कुत्ते का जिक्र किया है’

‘हाँ! मैंने पढ़ा है कि ऑस्ट्रेलिया कभी भारत से जुड़ा हुआ था, और बाद में कट कर अलग हुआ’

‘वह घटना तो मानव के आने से लाखों वर्ष पुरानी बात है। मानव के आने के बाद डगर कठिन थी। मगर वे जहाँ तक पहुँच सकते थे, बिना हवाई जहाज के और बिना जीपीएस के, पहुँचे!’

Human migration
हैप्लोग्रुप और मानव प्रवास (स्रोत- विकीमीडिया कॉमन्ज)

3

सैपिएंस (Sapiens) एक लातिन शब्द है, जिसका अर्थ है- ज्ञानी या बुद्धिमान। होमो सैपिएंस बाकी मानव प्रजातियों से अधिक बुद्धिमान थी। 

हमने अब तक जाना कि कई मानव प्रजातियों में अंतत: होमो सैपिएन्स ही बच पाए। हमने यह भी देखा कि मानव अफ़्रीका से निकल कर पूरी दुनिया में फैल गए। मुमकिन है कि एक ही परिवार का एक व्यक्ति अमरीका चला गया, और उसका एक दूर का भाई ऑस्ट्रेलिया। यह सब उन्होंने जंगलों, नदियों, हिम-सेतु (लैंड ब्रिज़) को लाँघते हुए किया।

वे अपने लिए एक बेहतर जगह तलाश रहे थे, जहाँ आराम से भोजन मिले, शिकार मिले। जहाँ ख़तरनाक जानवर कम हों, और जहाँ मौसम अच्छा हो।

अफ़्रीका रहने के लिए बुरी जगह नहीं थी, मगर वहाँ का मौसम बुरा था। कभी भीषण गर्मी और सूखा, तो कभी पूरी नील नदी में बाढ़। उतने ही भयावह जंगली जानवर। इस कारण आज से तीस हज़ार साल पहले सबसे अधिक जनसंख्या आज के एशिया क्षेत्रों आकर बस गयी, जहाँ की नदियों के दोनों तरफ़ फलते-फूलते जंगल होते। यही अनुपात आज तक कायम है और आधी से अधिक आबादी एशिया में ही है। 

उस समय उनके पास न एयरकंडीशर था, न अच्छे कपड़े। न वह पक्के घर बनाते, न उनके पास वाहन थे। यह ज़रूर मालूम पड़ता है कि जंगली कुत्ते उनके शिकार में मदद करते, मगर उनमें स्वयं मौसम और ख़तरा भाँपने की क्षमता भी थी। वे वैज्ञानिक, इंजीनियर, खोजी, डॉक्टर, योद्धा सब कुछ थे। पूरे ऑलराउंडर। 

जब आइस-एज ख़त्म हुआ तो आज से लगभग बारह हज़ार साल पहले एक नया युग शुरू हुआ। यह अभिनव युग (होलोसीन) कहा जाता है। होलोसीन में वर्तमान काल-खंड को मेघालय युग (Meghalayan Age) कहते हैं। बिल्कुल नया युग, जिसमें हम आज रह रहे हैं। इस युग की सबसे बड़ी ख़ासियत थी- ऋतुओं का आना-जाना। इस युग में गर्मी, बरसात, ठंड नियमित रूप से बदलने लगे। आपने कभी यह देखा-सुना कि पूरे देश में बाढ़ आ गयी, आधी दुनिया बर्फ़ के चादर से ढक गयी? ऐसे विचित्र मौसम हज़ारों वर्ष पहले ही बंद हो गए। 

होमो सैपिएंस ने इस समय तक न सिर्फ़ नियंडरथल जैसे मानव शत्रुओं बल्कि विशालकाय मैमथ जैसे पशु शत्रुओं से मुक्ति पा ली थी। लाखों वर्षों तक यहाँ-वहाँ भटकते मनुष्य ने इस अभिनव युग में अपनी ख़ानाबदोशी (नोमैडिक जीवन) पर कुछ ब्रेक लगाने की सोची। 

उनमें से एक ने दूसरे से अपनी भाषा में कहा होगा, ‘यार! बहुत चल लिए। अब कहीं रुक जाते हैं’

दूसरे ने कहा होगा, ‘अरे पागल! रुक गया तो खायेगा क्या?’

आगे की कहानी खंड 3 में।  पढ़ने के लिए क्लिक करें

In this part of human history series for children and young, Author Praveen Jha narrates human migration.

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