मेरी घड़ी में रात के ग्यारह बजने को हैं। मैं अपनी दिनचर्या के आखिरी चरण में हूँ।
मेरी सुबह प्रतिदिन छह बजे होती है। किसी भी दिन। मैं गरम पानी और चाय पीकर डिजिटल अखबार पढ़ता हूँ। पिछले कुछ समय से एकांत में गाने का रियाज करता हूँ। सप्ताह में तीन दिन सुबह छह से सात जिम जाने का प्रयास करता हूँ।
नित्य-कर्म के बाद मैं आठ बजे सुबह काम पर निकलता हूँ।
मैं क्या काम करता हूँ?
लेखन मेरा प्राथमिक कार्य नहीं है। मैं रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सक हूँ। मरीजों के एमआरआई, सीटी स्कैन आदि की रिपोर्ट बनाता हूँ। मेरा काम और वेतन लंबे समय से उत्पादन-आधारित है। सौ मरीजों के एमआरआई देखने और उसे एक डिक्टाफोन पर नॉर्वेजियन भाषा में बोलने में लगभग आठ से बारह घंटे लगते हैं। आज का आखिरी स्कैन एक घंटे पहले देखा।
इसके लिए मेरे घर में भी एक ऑफिस है, जहाँ तीन बड़े स्क्रीन लगे हैं। ठीक वैसे ही जैसे मेरे ऑफिस में। मरीज हर तरह के होते हैं, मगर मेरी विशेषज्ञता खेल से जुड़ी चोट से है। वह एक पूरी अलग दुनिया है जिसमें चोट से अधिक यह ज़रूरी है कि खेल के किस पहलू में, किस मेकैनिज्म से चोट लगी।
कैसे और कब पढ़ता-लिखता हूँ?
चूँकि यह समय मेरे अनुसार तय होता है कि मैं कब कौन से मरीज का स्कैन देखूँ, तो मैं इस मध्य छोटे-बड़े विराम लेता हूँ। अक्सर एक घंटे काम के बाद दस मिनट। या चार घंटे काम के बाद आधे घंटे का ब्रेक। विरामों में मैं कुछ पढ़ता-लिखता हूँ। सप्ताह में तीन दिन शाम को एक घंटा टहलने का प्रयास करता हूँ।
एक बड़ा हिस्सा इम्पल्स में पढ़ना-लिखना है। जैसे मान लें कि कहीं भगत सिंह पर किताब की फ़ोटो देखी, मैं उन विरामों में उसे पढ़ गया। मेरे पास वह जादुई डिजिटल छड़ी (किंडल) है कि मनचाही किताब एक क्लिक में मेरे पास आ जाती है।
कोशिश रहती है कि जल्दी पढ़ जाऊँ, और काम की बातें डिजिटली मार्क कर लूँ। उस झोंक में पढ़ी, देखी, सोची चीजों का कुछ हिस्सा सोशल मीडिया पर गिरता है। कुछ मसखरी। तनाव घटाने के लिए। दूसरों के पोस्ट-टिप्पणी पढ़ना कम या नहीं हो पाता है।
मेरे लेखन-पठन का दूसरा हिस्सा सोचा-समझा या ऑर्गैनाइज्ड है। प्रोजेक्ट-आधारित।
वह चिकित्सकीय कार्य के सभी खंड खत्म होने के बाद अक्सर देर रात दस बजे शुरू होता है। पहले संपूर्ण लेखन मोबाइल (iOS-Pages) पर ही होता था, डेढ़ वर्ष से कुछ हिस्सा कंप्यूटर के ऑफिस 365 पर होता है। उसमें एक विषय पर ही सभी किताबें बाँच कर, सुन कर, देख कर और सोच कर लेखन होता है।
उस लेखन के दो रूप है।
पहला अधिक व्यवस्थित और लंबा कार्य है, जो अब तक तीन किताबों में किया। दो छपे, एक छपने के लिए गयी है। एक चल ही रहा है, धीरे-धीरे। उनका कलेवर अलग है।
दूसरा है नियमित एक विषय पर चार-पाँच सौ शब्द लिखना, उन शब्दों के निमित्त संदर्भ देख लेना, और संदर्भ एक जगह नोट कर रख लेना। वह प्रक्रिया मेरे फ़ेसबुक पेज पर भी कुछ देर सार्वजनिक होती है। लिखा सीधे वहीं एपिसोड बना कर जाता है, करेक्शन भी वहीं लगते हैं। कई बार तो करेक्शन टिप्पणीकार ही करते जाते हैं।
उस दूसरे तरीके से मेरी सात पतली किताबें किंडल पर आयी, कुछ ऑडियो बनी, कुछ प्रिंट में संपादित होकर आयी। भले वह मैं मुफ़्त में शेयर कर चुका होता हूँ, पर कई लोग संकलित पढ़ना चाहते हैं। वह मेरे लिए अनुशासन का माध्यम है कि रोज कुछ पढ़ना और लिखना है। चूँकि लोग प्रतीक्षा करते हैं, मैं भी समय निकाल कर लिख ही लेता हूँ। दो पतली किताबें यात्रा के दौरान लिखी थी, वह ज्यों-की-त्यों किंडल पर आ गयी।
यह सब कुछ करने के लिए सप्ताह के दिनों में मेरे पास प्रतिदिन अठारह घंटे होते हैं, जिसमें ज़ाहिर है कि संगीत, भोजन, अन्य परिवार कार्य, गृह कार्य, वित्तीय कार्य, धर्म आदि गुँथे हुए होते हैं, जिन्हें मैं सार्वजनिक नहीं करना चाहता।
सप्ताहांत में समय कुछ अधिक होता है, जिसमें फ़िल्में अधिक देखता हूँ, या सैर पर निकलता हूँ।
[Originally written 15th September 2021]Author Praveen Jha shares his daily routine.
1 comment
अच्छा लगा पढ़ के।