Kaalo Thiu Sai
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कालो थियु सै- बाड़मेर का सम्मोहन

कहानियाँ किसी रोज़मर्रा की घटना से भी बुनी जा सकती है अगर कहने का शऊर हो। जब यह कहानी बाड़मेर जैसी जगहों से उपजती है तो एक अलग ही भँवर रचती है। किशोर चौधरी लिखित पुस्तक कालो थियु सै पर बात
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Four Single Mothers
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जब अर्जुन अपने पुत्र से हार गए

हमारी पीढ़ी पौराणिक कथाओं से क्या सीख सकती है? आज के समाज की स्वतंत्र स्त्रियाँ क्या महाभारत में ऐसी माँएँ तलाश सकती हैं। ऐसे समानांतर जहाँ स्त्री ने स्वयं ऐसी नियति चुनी हो? आशुतोष गर्ग की पुस्तक ‘4 सिंगल मदर्स’ पर चर्चा
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Begum Akhtar
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मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा- बेगम अख़्तर की याद

‘अख़्तरी’ किताब सिर्फ़ शुभा मुद्गल के एक लेख के लिए भी पढ़ी जा सकती है। संगीत की एक प्राथमिक शिक्षा देती है वह अध्याय।
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Haseenabad poster
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नचनिया गोलमी कैसे पहुँची संसद?

राजनटनी और अम्बपाली के बाद उसी विषय पर गीता श्री की तीसरी पुस्तक एक पूरक बन जाती है। हसीनाबाद बस्ती से निकल कर सोनपुर मेले में नाचने वाली गोलमी के मंत्री बनने तक की यात्रा
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Abhyutthanam Ajeet Pratap Singh
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नंद, अलेक्ज़ेंडर और चंद्रगुप्त मौर्य

अलेक्ज़ेंडर का भारत की सीमा पर आना, और मौर्य वंश का मगध का उदय लगभग एक कड़ी की तरह हुआ। क्या ऐसा संयोग बना कि तक्षशिला में चंद्रगुप्त मौर्य ने अलेक्ज़ेंडर की छावनी देखी? क्या उस घटनाक्रम से मगध की सत्ता और भारत के स्वरूप पर दूरगामी प्रभाव पड़ा? आज की दुनिया पर? आज के भारत पर? अजीत प्रताप सिंह लिखित पुस्तक ‘अभ्युत्थानम्’ पर एक चर्चा
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Nalasopara Chitra Mudgal
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एक किन्नर की चिट्ठी अपने माँ को

कुछ किताबें दिल-ओ-दिमाग में एक गहरी छाप छोड़ जाती है। चित्रा मुद्गल लिखित पोस्ट बॉक्स 203 नाला सोपारा एक लाइफ़-चेंजिंग किताब के खाँचे में बैठती है।
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Meena Kumari Satya Vyas
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हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है

कुछ किरदार कभी पुराने नहीं होते। वे आज भी यहीं कहीं मौजूद होते हैं। मीना कुमारी यूँ तो सत्तर के दशक के आग़ाज़ से पहले ही दुनिया छोड़ गयी, मगर उन पर पढ़ना एक ताज़गी लिए अनुभव रहा। सत्य व्यास लिखित ‘मीना मेरे आगे’ पर बात
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Kachh Katha Abhishek Srivastav
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कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा

यात्रा संस्मरणों का ढर्रा कभी एक नहीं रहा, लेकिन इस विधा में हिंदी साहित्य नित नए प्रतिमान रच रहा है। यात्राएँ कई खेप में, कई चीजों को तलाश रही हैं। इंटरनेट युग में भी ऐसे अनसुलझे, अनजाने रहस्यों से परिचय करा रही है, जो बिना घाट-घाट पानी पीए नहीं मालूम पड़ेगी। अभिषेक श्रीवास्तव लिखित कच्छ कथा उसी कड़ी में
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Rajesh Khanna
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मेरे फ़ैन्स कोई नहीं छीन सकता- राजेश खन्ना

हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार का जीवन हमें इस बात का अहसास दिलाता है कि बाबू मोशाय! ज़िंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए। और यह भी कि ज़िंदगी एक ऐसी पहेली है जो कभी हँसाती है तो उससे अधिक रुलाती भी है
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Sone ka Kila
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जैसलमेर का जासूस- फेलू दा

सत्यजीत रे एक बेहतरीन फ़िल्मकार के साथ-साथ कहानीकार भी थे। उनके द्वारा बनाए गए जासूसी पात्र फेलू दा हमें रोचक यात्रा पर ले जाता है। ‘सोने का किला’ इसी कड़ी में उनकी एक कहानी है
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