जब हिमालय की चौहद्दी नापी

Erika Fatland Hoyt
Erika Fatland Hoyt
हिमालय की चौहद्दी नापना असंभव है। कोई अपना जीवन लगा कर भी नहीं नाप सकता। नॉर्वे की यायावर लेखक एरिका फातलाँ ने इससे पहले दुनिया के सबसे बड़े देश रुस की पूरी चौहद्दी नाप कर पुस्तक लिखा। अब उन्होंने काराकोरम और हिंदुकुश होते हुए हिमालय के छोर नापे हैं। वह चीन से निकल कर पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान होते हुए भारत पहुँचती हैं। कश्मीर से अरुणाचल तक यात्रा करती हुई भूटान, नेपाल और तिब्बत के रास्ते वापस चीन पहुँचती हैं। उनकी 632 पृष्ठ की पुस्तक ‘Høyt’ (High/ऊँचा) मैंने पढ़ कर पूरी की। चूँकि यह पुस्तक मात्र नॉर्वेजियन में है, इसका एक खाका और कुछ अंशों के अनुवाद यहाँ रख रहा हूँ।

हिमालय की चौहद्दी नापना असंभव है। कोई अपना जीवन लगा कर भी नहीं नाप सकता। नॉर्वे की यायावर लेखक एरिका फातलाँ ने इससे पहले दुनिया के सबसे बड़े देश रुस की पूरी चौहद्दी नाप कर पुस्तक लिखा। अब उन्होंने काराकोरम और हिंदुकुश होते हुए हिमालय के छोर नापे हैं। वह चीन से निकल कर पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान होते हुए भारत पहुँचती हैं। कश्मीर से अरुणाचल तक यात्रा करती हुई भूटान, नेपाल और तिब्बत के रास्ते वापस चीन पहुँचती हैं। उनकी 632 पृष्ठ की पुस्तक ‘Høyt’ (High/ऊँचा) मैंने पढ़ कर पूरी की। इसका एक खाका और कुछ अंशों के अनुवाद यहाँ रख रहा हूँ।

काश्गर, शिंजिंयांग (चीन) के उइगर मुसलमान

जब मैं तीन साल पहले यहाँ आयी थी, तो इस इलाक़े में मुझे हिजाब लगाए महिलाएँ दिखती थी। अब हिजाब सिरे से गायब है। पुरुषों की दाढ़ी भी सफाचट हो चुकी है। पाँच बार नमाज़ अब नहीं पढ़े जाते। मस्जिदों में सिर्फ़ चीनी पर्यटक घूमते नज़र आ रहे हैं। मात्र तीन वर्षों में इतना सांस्कृतिक बदलाव किसी सामान्य प्रक्रिया से संभव नहीं…चीन ने दस लाख उइगरों को एक प्रशिक्षण-शाला में भर्ती कराया। शायद उन्हें अपने रंग में जबरन ढाल कर चीनी बनाया…मेरे मन के प्रश्नों के उत्तर मुझे नहीं मिल सकते, क्योंकि यहाँ प्रश्न पूछना और उत्तर देना, दोनों मना है।

खुंजेराब दर्रा- चीन और पाकिस्तान के मध्य विश्व की सर्वोच्च सीमा रेखा

‘पाकिस्तान अगर अपनी जमीन चीन को नहीं देती, तो सोवियत इसे ले लेती। अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियत ने इसी लिए कब्जा किया था, ताकि कराची पोत से समुद्र पर अधिकार जमा सके’, अब्दुल ने कहा

‘सच में?’

‘सभी जानते हैं, यही वजह थी’

हुंजा घाटी, पाकिस्तान

पाकिस्तान में चालीस प्रतिशत निरक्षर हैं, जबकि हुंजा घाटी में मात्र बीस प्रतिशत। इसकी वजह है आगा ख़ान जिनके नाम से यहाँ स्कूल चलते हैं। आगा ख़ान के अनुयायी को पाँच बार नमाज़ नहीं पढ़ना, और वे उदारवादी ढर्रे के मुसलमान हैं। वह कहते थे कि अगर घर में बेटा और बेटी हो, और सिर्फ़ एक को पढ़ाने का सामर्थ्य हो, तो बेटी को पढ़ाओ। मैंने वहाँ बारहवीं कक्षा की लड़कियों से पूछा कि आगे क्या पढ़ोगी।

‘मैं इंजीनियर बनूँगी’, एक ने कहा

‘मैं अर्थशास्त्र पढ़ने वाली हूँ’, दूसरे ने कहा

‘मैं लाहौर में डाक्टरी पढ़ने जा रही हूँ’, तीसरे ने कहा

मैं वहीं पाकिस्तान की इकलौती महिला काश्तकारी कारख़ाने में गयी, जहाँ की मालकिन और सभी बढ़ई महिलाएँ थी। उन्होंने बताया कि पहले सिर्फ़ पुरुष ही बढ़ई होते थे, अब हम भी अच्छे फर्नीचर बना रहे हैं।

हुंजा के लोग अन्य पाकिस्तानों को हिकारत की नज़र से देखते हैं, और खुद को अलग मानते हैं।

‘भारत मानता है कि हुंजा और गिलगिट-बाल्टिस्तान कश्मीर का हिस्सा हैं। हम भी खुद को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानते। हम पाकिस्तान के संसदीय चुनाव में मत नहीं डाल सकते…(हँस कर) अच्छी बात है कि हमें टैक्स भी नहीं देना पड़ता’

चित्राल के कलाश

यह पाकिस्तान का अति-अल्पसंख्यक मूर्तिपूजक समाज है, जो कलाश कहलाते हैं। मिथक है कि यह सिकंदर की सेना के यूनानियों के वंशज हैं। उनकी नीली आँखों को लोग यूनान से जोड़ते हैं।

‘क्या कई कलाश लोगों ने इस्लाम स्वीकार लिया?’

‘हाँ! जब यहाँ तालिबानों ने कब्जा किया, तो ऐसा हुआ था। लेकिन कई लोग छुप कर रहे, और हमारी संस्कृति बची हुई है’

पेशावर

अख़्तर ने पूछा कि आपको एक हिंदू मंदिर देखना है। मैंने चौंक कर पूछा कि वहाँ जाना सुरक्षित होगा।

‘हाँ हाँ! यह मेरे दोस्त के आंगन में है। शिव मंदिर। वह कश्मीरी मुसलमान है। उसने संभाल कर रखा है।’

वागा बॉर्डर

अमृतसर आते ही मुझे अकेली घूमती लड़कियाँ दिखने लगी। अपने खूबसूरत लंबे बाल लहराती। स्कूटर और मोटरसाइकिल चलाती। टी-शर्ट और जींस पहने। महीनों से मैंने ऊपर से नीचे ढकी हुई महिलाओं को देखा था। अमृतसर आते ही यह महिलाओं की उन्मुक्तता एक हवा का झोंका थी।

श्रीनगर

‘मैं चाहता हूँ कि कश्मीर आजाद हो जाए, और यहाँ शरिया कानून आ जाए’, जावेद ने कहा

‘यह बहुत ज्यादा क्रूर सोच नहीं है?’, मैंने पूछा

‘नहीं! यह ग़लतफ़हमी है कि शरिया कानून दहशत लाती है’, उसने मेरी बात काटी

‘लेकिन उसमें सजाएँ तो बहुत ही हिंसक हैं’

‘हाँ! अच्छा ही तो है। अगर किसी ने हिंसक अपराध किया, उसे जमीन में गाड़ देना हिंसा नहीं है। एक बार ऐसी सजा मिली, कोई अपराध नहीं करेगा’

कारगिल

‘मैंने कई लोगों से यहाँ बात की, जो आज़ाद कश्मीर चाहते हैं। आपकी क्या सोच है?’, मैंने पूछा

‘हम भारत के साथ रहना चाहते हैं। कश्मीर के सभी शिया मुसलमान भारत के साथ हैं’

लद्दाख

‘क्या आप सच में मानते हैं कि यीशु मसीह भारत आए थे?’, मैंने पूछा

‘आप ऐसा पूछने वाली, और मेरी बात पर विश्वास न करने वाली पहली ईसाई नहीं हैं। मेरे पास पुष्ट प्रमाण हैं। लिखित और पुरातात्विक दोनों। यीशु मसीह ने उसी गुफा में साधना की थी, जिसमें पद्मसंभव ने किया था। आप चाहें तो मैं वहाँ ले जा सकता हूँ। आपको स्वयं विश्वास हो जाएगा’

मलाना

‘हम भारतीय लोकतंत्र और कानून को नहीं मानते। हमारे अपने राजा हैं…हमारे लिए भांग और हशीश पवित्र है, इसलिए यह ग़ैरक़ानूनी होने का प्रश्न ही नहीं उठता’

स्पिति घाटी

‘मैं डाक्टर या इंजीनियर बन सकती थी, लेकिन वह मुक्ति का मार्ग नहीं…अब मैं सुबह पाँच से छह बजे बुद्ध के ग्रंथ पढ़ती हूँ। उसके बाद हम सब पूजा करते हैं। फिर हम साधना और योग करते हैं। साढ़े नौ बजे से बौद्ध दर्शन की कक्षाएँ शुरू होती हैं। बारह बजे वाद-विवाद होते हैं…’, ताशी ने कहा

‘यह सब करने से मुक्ति मिल जाएगी?’, मैंने पूछा

‘अभी मार्ग दिखने की शुरुआत ही है। लक्ष्य बहुत दूर है’

गंगटोक

भारत द्वारा सिक्किम पर अधिकार के बाद राजकुमारी सेमला अब अपने आवास में रहती हैं। यह पूछने पर कि भारत द्वारा अधिकरण उनके परिवार को कैसा लगा, राजकुमारी ने कहा

‘मेरा पिता के लिए यह बहुत बड़ा झटका था, क्योंकि हमारे भारत से अच्छे संबंध थे। जब उन्हें नज़रबंद रख कर आत्मसमर्पण करने कहा गया, वह दुखी हो गए। यह नैतिक और राजनीतिक, दोनों रूप से ग़लत हुआ। ऐसा जवाहरलाल नेहरू क़तई नहीं होने देते, जैसा इंदिरा गांधी ने किया। नेहरू को हिमालय से प्रेम था…’

ज्ञ्यात्सो ने कहा, ‘सिक्किम मात्र सात हजार किलोमीटर वर्ग किलोमीटर का राज्य है, जहाँ जगह-जगह बाँध बनाया जा रहा है। यही ग़लती सीमा के दूसरी तरफ़ चीन भी कर रहा है। नतीजतन हमें भूकंप और भूस्खलन झेलने पड़ रहे हैं, जो पिछले वर्षों में बढ़ते ही जा रहे हैं…सौ से ज्यादा नदियाँ थी, अब तीस रह गयी हैं। नदियाँ शिकायत नहीं करती, विरोध नहीं करती, चुपचाप बहती रहती हैं’

थिम्फू, भूटान

‘आपलोग सकल घरेलू उत्पाद मापते हैं। हम मापते हैं सकल घरेलू खुशहाली। इसके मानक हैं- जीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, समुदाय की शक्ति, समय का उपयोग, मानसिक स्थिति, प्रशासन और संस्कृति’, भूटान के उस विशेषज्ञ ने कहा

‘अगर ऐसा है तो विश्व के खुशहाल देशों में भूटान सबसे पीछे क्यों है?’, मैंने पूछा

‘आप यहाँ के लोगों से पूछिए। मात्र नौ प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे खुशहाल नहीं हैं। पश्चिम के आंकड़े पश्चिम ही जाने’

जीरो घाटी, अरुणाचल

‘अगर किसी को छाती में दर्द हो, आप कैसे इलाज करेंगे?’, मैंने वहाँ के तसांग (औघर) से पूछा

‘एक अंडे को अपने बाल से दो भागों में विभक्त करने के बाद हमें कुछ गुप्त प्रक्रिया करनी होती है’

‘अगर सरदर्द हो?’

‘अंडे और कुछ बीज उबाल कर बाल से विभक्त कर…तीन मुर्गों की बलि देकर…’

‘आपने कहा कि आप अब ईसाई धर्म मानते हैं, तो मिशनरी आपके इस उपचार से सहमत हैं’, मैंने पूछा

‘धर्म मानना अलग बात है, और अपनी संस्कृति बचा कर रखना अलग’

हुनली, अरुणाचल

‘आपका नाम क्या है?’, मैंने पूछा

‘निर्मल कुमार दूबे’, उसने कहा

‘आप ईसाइयत अपनाने से पहले किस जाति से थे?’

‘उच्च कोटि का ब्राह्मण’

‘आपके परिवार ने आपत्ति नहीं जतायी?’

‘उन्होंने तो मुझे बहिष्कृत कर दिया। भाई मारने दौड़े…यहाँ के गिरजाघर में तोड़फोड़ की गयी…फिर मेरे भाई को ल्यूकेमिया हो गया, तो ईसाई मिशन ने उपचार का खर्च उठाया। वह भी ईसाई बन गए!’

भारत-म्यांमार सीमा

‘आप इस चुनाव में किसे मत देंगे?’

‘नागालैंड पीपल फ्रंट’

‘वह तो भारत से स्वतंत्र होना चाहती है!’

‘मैं भी यही चाहता हूँ’

काठमांडू

कुमारी देवी एक जीवित देवी हैं, जिनका मासिक धर्म नहीं शुरू हुआ। उन्हें हिंदू तलेयु (काली) का अवतार मानते हैं, और बौद्ध वज्र देवी का। मैं जब एक भूतपूर्व कुमारी से मिलने गयी, तो वह युवती अपने आइफोन स्वाइप करती सोफा पर बैठी टीवी देख रही थी।

‘आपको कुमारी बनना कैसा लगता था?’, मैंने पूछा

‘अच्छा’, उन्होंने मोबाइल में कुछ विडियो देखते हुए जवाब दिया

‘आपको कुछ ख़ास बात याद आती है?’

‘नहीं’

‘अब इतने सालों तक देवी रह कर वापस घर लौटना कैसा लग रहा है?’

वह बिना उत्तर दिए टीवी देखने लगी

पाटन, नेपाल

यहाँ की भूतपूर्व कुमारी देवी ने कहा,

‘मुझे उस समय ऐसा लगता जैसा मैं काली का अवतार हूँ। मुझे यूट्यूब और विडियो गेम खेलने की इजाज़त थी, लेकिन मुझे लोगों के लिए देवी बन कर ही रहना होता। जब नेपाल और दुनिया के तमाम लोग मेरा आशीर्वाद लेने आते, मुझे सच में लगता कि मैं साक्षात देवी हूँ’

काठमांडू के एक सहकारी केंद्र में

‘गोरखपुर से हम नेपाली महिलाओं का धंधा संचालित होता था। हमें लुभा कर वे कहीं वेश्या, कहीं नौकरानी तो कहीं बेगार मजदूरी जैसे काम पर पूरे भारत में जगह-जगह भेजते। 1996 में भारत सरकार ने अभियान चला कर हमें मुक्त कराया, लेकिन नेपाल सरकार इतनी बेगैरत थी कि हमें वापस लेने को तैयार नहीं थी। उनका कहना था कि हमारे पास कागज नहीं हैं…’

सुरखेत, नेपाल

नेपाल के ग्रामीण हिंदू महिलाओं में एक प्रथा थी कि महिलाएँ मासिक धर्म के समय घर से बाहर बनी एक झोपड़ी में रहेगी। जहाँ यह भारत और नेपाल के अन्य हिस्सों में नहीं देखने को मिलती और ग़ैरक़ानूनी है, इस हिस्से में अब भी कायम है।

‘आप इस झोपड़ी प्रथा के विषय में क्या सोचती हैं?’, मैंने पूछा

‘हर संस्कृति का एक नियम होता है। मैं पालन करती हूँ’

‘अब तो यह देश के कानून से भी वर्जित है’

‘कानून हमसे हमारी संस्कृति नहीं छीन सकता। हमारे देवी-देवता नाराज़ हों, यह हम नहीं चाहते। मासिक धर्म एक अपवित्र समय है, जब हम रसोई में या पूजाघर में नहीं जा सकते, इसलिए हम बाहर झोपड़ी में रहते हैं। इसमें ग़लत क्या है?’

वहीं मिली महिला तारा ने कहा, ‘पहले मैं माओवादी थी, और जंगलों में बंदूक लेकर घूमती थी। हमारा प्रशिक्षण बहुत कठिन था, और हर वक्त जगह बदलते रहना पड़ता…लेकिन अब माओवादी सरकार बनने के बाद मुझे लगा कि हमारे साथ धोखा हुआ। अब मैंने नेपाल कांग्रेस की सदस्यता ली है’

सिमिकोट, नेपाल- तिब्बत सीमा

‘चीन के लोग बहुत अच्छे हैं। पहले तिब्बत गरीब और पिछड़ा था। अब यहाँ बढ़िया सड़कें, पक्के मकान और अच्छी शिक्षा-स्वास्थ्य है। अगर चीन हमारे इलाके पर भी कब्जा कर ले, मैं खुशी-खुशी चला जाऊँगा। नेपाल में तो सिर्फ़ गरीबी है’, शेरपा ने कहा

मानसरोवर

कैलाश पर्वत की चढ़ाई कोई नहीं करता, क्योंकि यह हिंदू और बौद्ध, दोनों के लिए पवित्र है। वह भगवान शिव के कोप का भाजन नहीं बनना चाहते। वह इसकी परिक्रमा करते हैं। यह स्वर्ग का मार्ग है।

‘मैंने तो सुना था कि बौद्ध धर्म में स्वर्ग-नरक की अवधारणा नहीं’, मैंने पूछा

‘स्वर्ग तो एक ही है। नरक कई हैं। यह दुनिया ही नरक से कम है क्या?’, जिंपा ने हँस कर कहा

ल्हासा, तिब्बत

‘हम तिब्बती यह मानते हैं कि कोई भी चीज अनंत नहीं होती। आज जो हमारे साथ हो रहा है, यह हमारे पापों का फल होगा। एक दिन हमें हमारा तिब्बत उसी रूप में मिल जाएगा, जैसा यह सदा से था’, साठ वर्ष के बुजुर्ग ने कहा

एक महिला ने कहा, ‘चीन ने हमें सड़कें दी, बिजली दी, विद्यालय दिए, लेकिन हमें अपने धर्म से दूर करने के प्रयास किए। हमें उम्मीद थी कि झी पिंग जब राष्ट्रपति बनेंगे, तो हमारी सहायता करेंगे, क्योंकि वह स्वयं बौद्ध परिवार से हैं। लेकिन उन्होंने तो यह और भी कठिन कर दिया…’

‘अगर भारत आपके लिए रास्ते खोल दे, तो आप भारत जाएँगी’

‘ज़रूर’

[इसके अतिरिक्त पुस्तक में अफ़ग़ानिस्तान सीमा, स्वात घाटी, गंगोत्री, हरिद्वार, असम, दार्जिलिंग, तिब्बत-चीन सीमा, एवरेस्ट बेस कैंप, शांगरी-ला आदि के अनेक संस्मरण हैं]

Author Praveen Jha gives a summary of book Høyt by Erika Fatland

एरिका की पुस्तक सोवियतिस्तान पर लेख यहाँ पढ़ें 

 

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