मानव खंड 1- वे कहाँ से आए?

Human history poster 1
क्या पूरी दुनिया के पूर्वज एक ही थे? क्या सभी मानव अफ़्रीका से आए? यह बात हमें कैसे पता लगेगी? मानव इतिहास पर आधारित इस शृंखला के पहले खंड में इन प्रश्नों के हल ढूँढते हैं।

1

हमें मालूम है कि हम कहाँ पैदा हुए। लेकिन, क्या हमने खुद को पैदा होते हुए देखा? हमने शायद पुराने एल्बम में तस्वीरें देखी होगी। उनसे हमें पता लगा होगा कि हम बचपन में कैसे दिखते थे। हमारे माँ-बाप बचपन में कैसे थे, यह कैसे पता लगेगा? अगर उनके पास एल्बम न हुई तो? शायद दादी या नाना से पूछ कर पता लग जाए। और दादा-दादी का बचपन? अब उनके मम्मी-पापा तो रहे नहीं। शायद कोई पुरानी डायरी मिल जाए। अगर नहीं मिली तो? यह पता करना ही क्यों है?

जैसे हम डॉक्टर के पास जाते हैं, तो वह पूछते हैं कि कल क्या खाया था, पहले क्या बीमारी हुई थी, पापा या नाना को कोई बीमारी तो नहीं? वह आज की बीमारी का पता कल को अच्छी तरह समझ कर ही लगा सकते हैं। 

मान लीजिए- किसी गाँव में एक पुरानी चिट्ठी मिली जो दो सौ साल पहले एक ने दूसरे को लिखी थी, 

‘पुराना बाँध टूट गया है। अब हर साल यहाँ बाढ़ आती है। लगता है हमें गाँव छोड़ कर जाना पड़ेगा’

इस चिट्ठी में ही वह रहस्य (सीक्रेट) छुपा है कि गाँव के लोग क्यों ऊँची जगह पर जाकर बस गए। शायद पुराना गाँव डूब गया?

पहले राजा-महाराजा जब कोई लड़ाई जीत लेते तो वहाँ एक खंभा गाड़ देते, और उस पर लिख देते कि हमने यहाँ ज़ंग जीत ली। वे सच में जीते या हारे, मालूम नहीं, मगर वह स्तंभ (खंभा) तो यही कहता है। कभी-कभी राजा किसी से कह कर पूरी किताब ही लिखवा लेते कि उन्होंने कैसे युद्ध जीता।

जब वह लिख-पढ़ भी नहीं पाते थे, तब भी अपने चिह्न, फुटप्रिंट्स छोड़ जाते थे। हमें हर पत्थर, हर दीवाल, हर नदी, हर पहाड़ पर वे सबूत ढूँढने हैं। तभी तो हमें आज की बीमारी पता लगेगी।

यह चित्र देख कर अंदाज़ा लगाएँ कि कितनी पुरानी होगी? हज़ार वर्ष, दस हज़ार वर्ष, लाखों वर्ष? 

Bhimbetka
भीमबेटका, मध्य प्रदेश (चित्र- रिज़ा अब्बास)

आज से बीस-तीस लाख वर्ष पहले हमारे पूर्वज अफ़्रीका के जंगलों में रहते होंगे। वे उन दिनों अन्य पशुओं की तरह जंगल के ही फल या पत्ते खाते होंगे। जब उन्होंने आग बनाना सीखा होगा, और जब वे पत्थर को घिस कर हथियार बनाने लगे होंगे, तो वे शिकार भी करने लगे होंगे।

उनके घर कैसे होंगे? किसी गुफा में रहते होंगे, या यूँ ही घने पेड़ों की छाँव में। लाखों वर्षों तक वे यूँ ही शिकार करते अफ़्रीका में घूमते रहे। एक दिन घूमते-घूमते अफ़्रीका से निकल कर आज के इज़रायल की तरफ़ आ गए। वहाँ से किसी दिन भारत आ गए, यूरोप चले गए, ऑस्ट्रेलिया चले गए, अमरीका चले गए। 

हमें कैसे मालूम कि वह किस रास्ते से कहाँ आए?

मान लेते हैं कि एक लड़की थी अमला। उसका परिवार पूर्वी अफ़्रीका के जंगलों में रहता था। एक दिन कुछ मौसम खराब हुआ, तो वे सब भागने को मजबूर हुए। अमला का परिवार कई महीने जगह बदलता रहा। वे जहाँ-जहाँ रुकते, वहाँ कुछ पत्थर के औजार बनाते, और वहीं छोड़ कर अगली जगह चले जाते। कुछ मिट्टी के बर्तन भी वहीं छोड़ देते। ये पकी हुई मिट्टी और पत्थर हज़ारों वर्ष तक ज्यों-के-त्यों रह जाते हैं। 

हम कुल्हड़ में चाय पीकर खुश होते हैं कि वह प्लास्टिक की तरह नहीं है, वह मिट्टी की तरह गल जाएगी। सच तो यह है कि उस कुल्हड़ को वापस मिट्टी बनने में सदियों लग जाएँगे। अमला ने जिन कुल्हड़ों में पानी पीया होगा, वह वहीं कहीं मिट्टी में गड़ी मिल जाएगी। उन कुल्हड़ों से ही उसकी पूरी यात्रा थोड़ी-थोड़ी समझ आ जाएगी।

जो लोग इस तरह पत्थर, मिट्टी के बर्तन आदि ढूँढते रहते हैं, वे पुरातत्ववेत्ता (आर्कियोलॉजिस्ट) कहलाते हैं।

ऐसे ही एक व्यक्ति एक दिन ट्रेन में बैठ भोपाल से इटारसी जा रहे थे। उन्हें ट्रेन की खिड़कियों से कुछ अजूबे चट्टान नज़र आए। वह वहीं उतर गए। जब उन चट्टानों तक पहुँचे तो कई गुफाएँ दिख गयी। उनमें एक स्थान पर लाल रंग से बने चित्र दिखे, जिसमें कुछ लोग शिकार के लिए तीर-धनुष हाथ में लेकर खड़े हैं। ऐसे ही चित्र यूरोप में मिले, इज़राइल में मिले, अफ़्रीका में मिले, इंडोनेशिया में मिले। उस समय ये चित्र ही उनकी भाषा थी।

ऊपर जो चित्र आपने देखा, वह भोपाल के निकट भीमबेटका में बनी। यह पाँच से दस हज़ार वर्ष पहले बनायी गयी। 

क्या वाकई एक अमला थी, और उसका परिवार अफ़्रीका से चल कर पूरी दुनिया में पसर गया?

Bering Strait
कयास लगते हैं कि रूस और अमरीका के मध्य स्थित बेरिंग जलडमरुमध्य (Bering Strait) से मानवों ने अमरीका में प्रवेश किया

2

हम हर दिन घर नहीं बदलते। हर दिन तो क्या हर महीने भी नहीं बदलते। लेकिन, हमारे पूर्वज अपनी जगह बदलते रहते थे। बेहतर फलों के लिए। बेहतर शिकार के लिए। बेहतर जगह छुपने के लिए। जहाँ घने जंगल हों, लंबी घास हो, आस-पास कोई नदी हो। वे ऐसे स्थान तलाशते-तलाशते सैकड़ों किलोमीटर चलते जाते। यह उनकी मर्ज़ी कि नयी जगह पर टिक जाएँ, या वापस लौट जाएँ। इसे ख़ानाबदोश (नोमैडिक) जीवन कहते हैं।

जब अमला का परिवार अफ़्रीका से चल कर आज के अरब या भारत तक आया होगा, तो उन्हें कितना वक्त लगा होगा?

अगर वे रोज बीस-पच्चीस किलोमीटर चलते हों तो एक साल से कुछ अधिक वक्त। अगर वह महीना-दो महीना रुक-रुक कर चलते हों तो पाँच-दस साल भी लग गए होंगे। उनको कोई जल्दी तो थी नहीं। उन्हें तो खुद नहीं पता था कि वे कहाँ जा रहे हैं। शायद अमला का परिवार कभी पहुँच ही न पाया हो। उनके सौ साल बाद कोई दूसरा परिवार आया हो।

जब वे भारत आए तो क्या उन्हें किसी दूसरे आदमी का परिवार मिला? ऐसा परिवार जो उनसे पहले अफ़्रीका से भारत आ चुका हो? या एक ‘मेड इन इंडिया’ आदमी, जो भारत में ही इवॉल्व हुआ हो? 

एक पुरातत्वविद (आर्कियोलॉजिस्ट) को नर्मदा किनारे घूमते हुए कुछ मानव हड्डियाँ मिली, जो दो-ढाई लाख वर्ष पुरानी थी। वह नर्मदा-स्त्री कहलायी। इसी तरह तमिलनाडु में एक डेढ़ लाख वर्ष पुराने बच्चे की हड्डी मिली। उनके जैसे कई और मानव भारत में रहे होंगे। जब अफ़्रीका से मानव चल कर आए, तो उनको देख कर ‘हाय हेलो’ हुई होगी। संभव है उनसे झगड़े हुए हों, या प्यार हुआ हो। उनके बच्चे हुए हों। 

आज के मनुष्य ‘होमो सैपिएन्स सैपिएन्स’ कहलाते हैं। लेकिन, नर्मदा किनारे मिला कंकाल होमो सैपिएन्स का नहीं था। नर्मदा मानव जैसी होमो इरेक्टस प्रजातियाँ धीरे-धीरे खत्म हो गयी। अब सभी सैपिएन्स ही हैं, मगर हमारे अंदर किसी नर्मदा-स्त्री का अंश मिल सकता है। 

यह पता कैसे लगेगा कि हमारे अंदर किसका अंश है? उनके द्वारा छोड़े गए पत्थर के औजारों से, या मिट्टी के बर्तन से? इस तरह ढूँढते हुए तो उम्र बीत जाएगी। 

खुशी मनाइए कि हम ऐसे युग में हैं, जब हमारे पास जादू की छड़ी है। हमें कहीं कुछ ढूँढने की ज़रूरत नहीं। हमारे मुँह के अंदर एक रुई डाल कर लार (saliva) का एक सैंपल लेकर हज़ारों वर्ष पुराने पूर्वज का पता निकल आएगा। हमारे डीएनए से! 

Fertile crescent mesopotamia
दजला (Tigris) और फरात (Euphrates) के मध्य स्थित वह जमीन जो अफ़्रीका और एशिया को जोड़ती थी। इसे मानव सभ्यता का पालना या Fertile Crescent कहा जाता है।

3

कई बड़े परिवार के लोग एक बड़े घर में रहते हैं। तीन पुश्तें एक साथ रहती हैं। उनके पड़ोस में उनके दादा के भाइयों का परिवार रहता है। इस तरह पूरे गाँव में एक बड़ा परिवार रहता है, जिनके पूर्वज कभी एक ही रहे होंगे।

कई स्थानों पर पूर्वजों का पता ख़ास उपनाम से लगता है। जैसे दुनिया भर के माउंटबेटन उपनाम के व्यक्ति आपस में जुड़े हैं। अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और नागपुर के एंग्लो-इंडियन बाइडेन परिवार के पूर्वज एक हैं। भारत में माना जाता है कि एक गोत्र और मूल के लोगों के पूर्वज एक हैं। लेकिन, इस बात को पक्का करना हो, तो कौन सी तरकीब लगानी होगी?

हम सबका एक डीएनए है, जो हमारा हस्ताक्षर है।

वह यूनीक है, किसी से नहीं मिलता। सगे भाई-बहन के डीएनए में कम से कम एक लाख अंतर होते हैं। एक परिवार के दो व्यक्तियों में दो-तीन लाख अंतर मिल सकते हैं। हमारे माता-पिता से भी हमारा डीएनए अलग होता है। 

यूँ समझ लें कि माता और पिता ने ताश के पत्तों की दो गड्डियाँ सामने रखी, और मिला कर शफ़ल कर दी। अब जो पुत्र रूप में ताश की गड्डी मिली, उसमें पत्ते तो उनके ही हैं, मगर उन्हें भी नहीं मालूम कि कौन सा पत्ता कहाँ लगा है। फिर कैसे पता किया जाए कि पूर्वज कौन?

दरअसल हर माँ गुप्त रूप से एक जोकर का पत्ता छोड़ जाती है। वह शफ़ल नहीं होता। इसे ‘माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए’ (mtDNA) कहते हैं। यह पत्ता हमारी माँ, नानी, परनानी, और हमारे सभी मातृ-पूर्वजों से बिना अदल-बदल कर चलता आ रहा है। अगर हमारा वह डीएनए किसी युगांडा के व्यक्ति से हू-ब-हू मिल जाए, तो इसका अर्थ है कि हज़ार वर्ष पहले हम दोनों की मातृ-पूर्वज एक थी। हम एक ही परिवार से हैं। लेकिन, इस पत्ते से दादा-परदादा का पता नहीं लग सकता। उसके लिए दूसरी तरकीब है। 

पिता भी एक सीक्रेट जोकर का पत्ता छोड़ते है। वह Y क्रोमोसोम डीएनए कहलाता है। वह एक पुरुष से दूसरे पुरुष तक बिना अदल-बदल कर जाता है। अगर उसका मिलान कर लिया जाए, तो यह पता लग जाएगा कि किन दो पुरुषों के पितृ-पूर्वज एक हैं।

Mt dna y chromosome
पिता, दादा, परदादा से चली आ रही Y क्रोमोसोम डीएनए। माँ, नानी, परनानी से चली आ रही माइटोकोंड्रियल डीएनए।

लेकिन, इससे क्या हासिल हुआ? अगर दुनिया के सभी मनुष्यों के पास ऐसे जोकर के पत्ते हैं और ये कभी बदले नहीं गए, तो सबके पूर्वज एक ही हो जाएँगे। बाइबल के आदम-हव्वा की तरह।

कोई यह भी कह सकता है कि एक नहीं, सौ अलग-अलग आदि पूर्वज होंगे। उन सबने अपने-अपने ब्रांड के जोकर पत्ते आगे पास किए होंगे। यानी सौ आदम और सौ हव्वा।

लेकिन, क्या यह नहीं हो सकता कि कोई इस मध्य चुपके से पत्ते बदल देता हो? डीएनए में एक जरा सा निशान लगाने से आने वाली कई पुश्तें ही बदल जाती हो? यह उत्परिवर्तन (mutation) कहलाता है। इस तरह कई समूह और शाखाएँ तैयार होती है। एक पुराने बरगद के पेड़ की तरह। 

जब वैज्ञानिकों ने यह मिलान किया तो वह चौंक गए। अफ़्रीका से बाहर पूरी दुनिया में एक ही L3 समूह के मातृ डीएनए मिले, और एक ही CT समूह के पितृ डीएनए मिले। यानी अफ़्रीका से बाहर के लगभग हर व्यक्ति के आदि-पिता और आदि-माता एक ही थे?

प्रश्न-

एक विद्यार्थी विक्रम अपने पूर्वजों का पता लगाना चाहते हैं। इनमें से किस पूर्वज का पता न Y क्रोमोसोम से लग सकता है, न mt DNA से?

1. नानी

2. दादी

3. दादा

4. परदादा

आगे की कहानी खंड 2 में। पढ़ने के लिए क्लिक करें

Author Praveen Jha writes a series on Human history for young students and children.

Read other series here

किसान

चीन

मेघालय

लद्दाख

वास्को डी गामा

 

3 comments
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like
Sigmund Freud
Read More

सिग्मंड फ्रॉय्ड के घर में क्या था?

मनुष्य के दिमाग को समझने में सिग्मंड फ्रॉय्ड का नाम एक मील के पत्थर की तरह है। वियना के उनके घर और क्लिनिक में जाकर इस अनूठे मनोविश्लेषक के दिमाग को समझने की एक छोटी सी कोशिश
Read More
Vegetarian Gandhi Lecture
Read More

क्या शाकाहारी भोजन बेहतर है? – गांधी

गांधी ने लंदन में विद्यार्थी जीवन में भारतीय आहार पर भाषण दिया। इसमें सरल भाषा में भारत के अनाज और फल विदेशियों को समझाया। साथ-साथ भोजन बनाने की विधि भी।
Read More
Read More

वास्को डी गामा – खंड 1: आख़िरी क्रूसेड

यूरोप के लिए भारत का समुद्री रास्ता ढूँढना एक ऐसी पहेली थी जिसे सुलझाते-सुलझाते उन्होंने बहुत कुछ पाया। ऐसे सूत्र जो वे ढूँढने निकले भी नहीं थे। हालाँकि यह भारत की खोज नहीं थी। भारत से तो वे पहले ही परिचित थे। ये तो उस मार्ग की खोज थी जिससे उनका भविष्य बनने वाला था। यह शृंखला उसी सुपरिचित इतिहास से गुजरती है। इसके पहले खंड में बात होती है आख़िरी क्रूसेड की।
Read More