वास्को डी गामा – खंड 4- सोने की चिड़िया

Vasco Da Gama arrival poster
Vasco Da Gama arrival
वास्को डी गामा का भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर आना यूरोप और भारत के इतिहास का महत्वपूर्ण बिंदु है। भारत कई मामलों में उस समय यूरोप से अधिक समृद्ध था। वहीं यूरोपीय अपने कदम बहुत संभाल कर रख रहे थे। इस खंड में उसी आरंभिक संवाद का विवरण है।

खंड 3 से आगे

(पहले खंड पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें)

7

अफ्रीका से चल कर एक महीने के अंदर वास्को डी गामा का जहाज भारत के तट पर पहुँच गया। उनका स्वप्न पूरा हुआ। गामा ने कहा –

“दोस्तों! आज जश्न मनाओ। हम इंडिया आ गए!”

कुछ भारतीय मछुआरे इस नए जहाज को देख कर पूछने आ गए, “कौन हैं आप लोग? किस देश से आए हैं?”

“ये लोग दूर पश्चिम के देश से आए हैं। यह कालीकट ही है न?”, उनके साथ आए व्यक्ति ने पूछा

“यह कप्पड़ है। कालीकट नगर कुछ दूर है।”

कप्पड़ में ही पहला यूरोपीय जहाजी उतरा, और उसने स्मृति के लिए पत्थर भी गाड़ दिया। लेकिन यहाँ यह भी लिखता चलूँ कि वह पहला व्यक्ति न तो वास्को डी गामा था और न ही उसके नाविक दल का कोई सदस्य था। यह तो एक गुमनाम क़ैदी था जिसे वे पुर्तगाल के जेल से उठा कर लाए थे।

कालीकट पहुँच कर उन्हें दो मुसलमान व्यापारी मिले, जो ट्यूनिशिया (उत्तरी अफ्रीका) के थे; अरबी और स्पैनिश बोलते थे।

“मेरा नाम मोन्खेद है। तुम लोग यूरोप से आए हो? किस देश से?” व्यापारी ने पूछा। [नामों में पुर्तगाली उच्चारण के कारण भेद हो सकता है]

“पुर्तगाल।”

“पुर्तगाल? क्या कैस्टील या वेनिस से अब तक कोई यहाँ नहीं आया?”

“नहीं। हमारे राजा किसी को आने देंगे भी नहीं।”

“चलो! यह अच्छा है कि तुम लोग आए। तुम्हें तो मालूम है कि तुम कहाँ आए हो?”

“इंडिया”

“हाँ! यहाँ जितनी संपत्ति पूरी दुनिया में कहीं नहीं। नीलम और पन्नों का देश है यह। किस्मतवाले हो कि इस देश में कदम रखा।”

“यहाँ का राजा कौन है?”

“यहाँ समूत्री होते हैं। बहुत भले आदमी हैं। अपार धन के मालिक। वह तुम लोगों से जरूर मिलना चाहेंगे लेकिन तुम्हारे पास कुछ बेचने के लिए है? उनकी कमाई तो खैर जहाजों के कर से ही हो जाती है। कालीकट से व्यस्त पोत दुनिया में कम ही हैं।”

कालीकट पूरी दुनिया के मसाला व्यापार की धुरी थी। पिछले दो सौ वर्ष से अरबी यहीं से मसाला लेकर यूरोप और अफ्रीका में पहुँचा रहे थे। वहाँ का बंदरगाह विशाल था। जहाज़ ही जहाज़। अरब और अफ़्रीका से आए जहाज़। यूरोपियों की तो यह सब देख आँखें चौंधिया गयी।

वहीं समुद्र तट के पास एक बाज़ार शुरू होता था। एक मील तक दुकानें ही दुकानें। पहले शृंखलाबद्ध मसाले की दुकानें जिसमें सिलॉन (लंका) की दालचीनी, मलक्का के लौंग, जायफल, इलायची और तमाम औषधियाँ। फिर बेशकीमती पत्थरों, मोतियों की शृंखला। मिट्टी के बने बर्तन। संदूक, कुर्सियाँ और मेज। हाथी-दाँत के शिल्प। रेशम और सूत के कसीदे किए हुए कपड़े, जिन पर सुनहरे बॉर्डर लगे हैं। धातु के बर्तन और कलाकृतियाँ। गुलाब जल और एक से एक खाद्य-सामग्री। क्या खूबसूरत मीना बाज़ार था यह।अधिकतर खरीददार विदेशी। कालीकट के ख़ज़ाने में अशर्फियाँ जमा होती जाती।

भारत की ख़ासियत मात्र संपत्ति नहीं थी, यहाँ के लोगों की ईमानदारी थी। कालीकट के सौदे में तनिक भी कपट नहीं था। एक अरबी व्यापारी मक्का से सोने लाद कर लाया। उसका जहाज कुछ क्षतिग्रस्त था, तो उसने सोना समुत्री (Samuthiri/Zamorin) के पास जमा करा दिया। उसके वापस लौटने पर वह सोना ज्यों-का-त्यों लौटा दिया गया!

वास्को डी गामा की प्रथम यात्रा विवरण में एक बड़ी त्रुटि है कि वे भारतीय धर्मस्थलों को गिरजाघर समझ बैठे। उन्हें लगा कि यहाँ भी यीशु और मैरी की ही मूर्ति बना कर पूजी जा रही है। हास्यास्पद यह है कि एक स्थान पर वर्णित है – भारत के कुछ ईसाई सर मुंडा कर शिखा रखते थे। हालाँकि मुसलमानों के रेशमी टोपी और लंबे कुर्ते का विवरण ठीक है। मुसलमानों के रीति-रिवाज और वेश-भूषा से यूरोप का परिचय पुराना था किंतु कुछ संस्मरणों के अतिरिक्त आमने-सामने हिंदुओं को उन्होंने लगभग नहीं देखा था।

8

कालीकट के समुत्री को संदेश भिजवाया गया कि पुर्तगाल से ईसाईयों का एक जत्था आया है। वह बंदरगाह से मीलों दूर जंगल के मध्य अपने महल में रहते थे। 

“पुर्तगाल? यह कहाँ है? खैर! उन्हें कहो कि हम अपनी बग्घी वहीं भिजवा रहे हैं। उन्हें चल कर आने की जरूरत नहीं।”

जब यह संदेश वास्को डी गामा तक पहुँचा, उसे खुशी के साथ अचंभा भी हुआ। वह पहले अफ्रीका में धोखा खा चुका था। 

“क्या कहते हैं आप, पाओलो? मुझे क्या इस राजा के पास जाना चाहिए।”, गामा ने अपने भाई को पूछा

“तुम मत जाओ गामा! मुझे राजा से अधिक यहाँ के मुसलमानों पर शंका है। जिस राजा के राज में इतने मुसलमान हैं, वह अगर ईसाई भी हुआ तो इनसे मिला हुआ ही होगा।”

“लेकिन, मैं यहाँ घूमने नहीं आया। मुझे सौदा तय करना है। यह मेरे अलावा कोई नहीं कर सकता। मुझे जाना ही होगा। तुम और निकोलाउ यहीं जहाज संभालोगे, मैं राजा से मिल कर आऊँगा।”

28 मई 1498

वास्को द गामा अपने शाही कमांडर लिबास में सज-धज कर तैयार हुआ। अपने तेरह अनुचरों के साथ एक छोटी नाव पर राजमहल की ओर रवाना हुआ। कालीकट के वली (गवर्नर) उसके स्वागत में खड़े थे। उसके पीछे कालीकट के दो सौ सिपाहियों की फौज थी। उन्होंने घुटनों तक धोती पहनी थी, कमर के ऊपर वस्त्र नहीं थे और उनकी चोटी लटक रही थी। सबके हाथ में तलवार या खंजर मौजूद था। वे सभी पतले, लंबे और शक्तिशाली दिख रहे थे। गामा को एक शाही बग्घी में बिठा कर राजमहल ले जाया गया। 

रास्ते में एक जगह नाश्ता करते हुए पहली बार यूरोपियों ने ऐसा घर देखा जिसकी मिट्टी की फर्श पर गोबर लीपा था, और सफाई का ख़ास ख्याल रखा गया था। यह पूरा इलाका सुंदर बगीचों और बड़े बंगलों से सुसज्जित था। समृद्धि पग-पग पर झलक रही थी। प्रजा इतनी संपन्न थी तो राजा कितना संपन्न होगा? यह सोच कर गामा मन ही मन आशान्वित था।

यहाँ भी वे किसी मंदिर को संभवतः गिरजाघर समझ बैठे। लिखा है कि उसके प्रांगण में कांसे का स्तंभ था, जिसके ऊपर एक चिड़िया की आकृति बनी थी। उसके द्वार पर सात घंटियाँ लटक रही थी। वहाँ उन्होंने एक देवी की मूर्ति देखी, जिन्हें वे ‘वर्जिन मैरी’ समझ बैठे। इसके आगे जर्नल में लिखा है

“उस प्रांगण में कुछ क़ाफी (quafee) मौजूद थे, जिनके कंधे से धागे लटक रहे थे; माथे, छाती, गर्दन और बाँहों पर भभूत लगा था और उन पर जल छिड़क रहे थे। गामा ने उतर कर वहाँ यीशु के नाम में शीश झुकाया…कई ईसाई संतों की तस्वीर भी दीवारों पर उकेरी थी। एक के दो दाँत बाहर थे, और कई के चार हाथ या आठ हाथ थे। अंदर एक छोटा तालाब भी था”

*Quafee का अर्थ स्पष्ट नहीं लेकिन विवरण के अनुसार नाम्बूदिरी पुरोहित हो सकते हैं। एक अनुवादक ने इसे अरबी के क़ाज़ी से जोड़ा है, जो उन्हें पादरी से मिलता-जुलता लगा।

जैसे-जैसे बग्घी राजमहल की ओर बढ़ रही थी, स्वागत करने वालों की भीड़ भी बढ़ती जा रही थी। स्थानीय लोग इन फिरंगियों को देखने उमड़ पड़े थे। औरतें बच्चे गोद में लिए सड़क किनारे खड़े होकर तमाशा देख रही थी। कई लोग अपने छत पर चढ़ गए थे। बच्चे पेड़ों के ऊपर लटके थे। 

राजमहल विशाल था। उससे भी अधिक उसमें लोग जमा हो गए थे। पहले एक विशाल कक्ष आया, जिसकी भीड़ को धकियाते फिरंगी एक कांसे के दरवाजे तक पहुँचे, और ऐसे चार दरवाजों को पार कर आखिर दरबार तक। राज-दरबार अपेक्षाकृत छोटा था। वहाँ एक बुजुर्ग ने आकर गामा को गले लगाया। वर्णन है- 

“राजा मसनद पर केहुनी टिकाए, हाथ में पीकदानी लिए, सुपारी चबाते बैठे थे। उनके दाहिनी ओर एक सोने का बड़ा बर्तन था, जिसमें कुछ पत्ते रखे थे जिन्हें ताम्बूर (Tambor) कहते थे। चाँदी के पात्र भी साथ रखे थे। सर के ऊपर सुसज्जित छत्र था।”

[ताम्बूर संभवत: ताम्बूल या पान के लिए प्रयोग किया गया]

गामा ने समुत्री के समक्ष दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम् किया। हाथ ऊपर आकाश की ओर ले गया, और नीचे लाकर मुट्ठियाँ बाँध ली। समुत्री यह भंगिमा देख कर मुस्कुरा उठे।

Vasco Da Gama stone
Vasco Da Gama stone

(आगे की कहानी खंड 5 में)

In part 4 of Vasco Da Gama series, author Praveen Jha describes the arrival of Portugese on Indian shores and first dialogue with the Zamorin of Calicut.

Books by Praveen Jha

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