ऊपर और नीचे की दो दुनिया

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यह दुनिया दो खानों में बँटी है। एक जो ऊपर के कमरों में रह कर आदेश देते हैं। दूसरे जो नीचे के कमरों में रह कर आदेशों का पालन करते हैं। लेकिन क्या ये दो दुनिया एक ही नहीं है? ब्रिटिश उपन्यास और टीवी सीरीज़ ‘अपस्टेयर्स डाउनस्टेयर्स’ पर बात

शहर में एक टेलिफोन बूथ है, जिसमें अब टेलिफोन की ज़रूरत नहीं रही। उस खोमचे को अब एक लघु पुस्तकालय बना दिया गया। उसमें इतनी ही जगह है कि बीस-तीस किताबें रखी जा सके। राह चलते लोग कुछ देर उस बूथ में बैठ पढ़ सकें। इसका उपयोग कुछ यूँ होता है कि लोग अपनी एक किताब वहाँ लाकर रखते हैं, और एक किताब अपने घर ले जाते हैं। यह सिलसिला चलता रहता है। 

मैं भी एक थ्रिलर नॉवेल वहाँ लेकर गया, जिसे दुबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं थी। बदले में एक 1971 प्रिंट की लाइब्रेरी बाइंडिग वाली किताब ले आया। यह एक ब्रिटिश लेखक जॉन हॉक्सवर्थ की लिखी किताब थी, जिस पर दो-दो बार टेलीविजन धारावाहिक बने। यह ‘अपस्टेयर्स डाउनस्टेयर्स’ सीरीज़ कहलाती है। ऊपर वाले और नीचे वाले। मालिकों और नौकरों की दुनिया। 

ईटन पैलेस इंग्लैंड का एक बड़ा बंगला है, जो बकिंघम पैलेस से कुछ ही छोटा है। यहाँ इंग्लैंड के राजा एडवर्ड स्वयं कभी-कभार अपनी गाड़ी से आते हैं, और चाय-नाश्ता कर निकल जाते हैं। इससे समझा जा सकता है कि यहाँ कितने रसूखदार लोग रहते होंगे। इसकी मालकिन को उनके पिता से यह विरासत में मिली थी। अब उनके पति रिचर्ड बेलामी, उनकी बेटी एलिज़ाबेथ और बेटा जेम्स वहाँ रहता है। मगर ये लोग तो ऊपर के कमरे में रहते हैं। 

नीचे के कमरों में भी एक कुनबा है। मुख्य सेवक (बटलर) के नेतृत्व में तमाम सेवक-सेविकाओं के कमरे। उनकी दुनिया में भी उतनी ही चहल-पहल है। उनकी भी अपनी इच्छाएँ हैं, सिवाय इसके कि वे जानते हैं कि वे कभी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते!

बहरहाल, इन ऊपर-नीचे की दुनिया के बीच फासला भले ही सिर्फ़ एक छत का हो, भेद ग्रेंड कैन्यन की खाई से कम नहीं। मालिक के बेटे जेम्स बेलामी को एक नौकरानी सारा से इश्क हो जाता है, और वह गर्भवती हो जाती है। जब परिवार को यह बात पता लगती है तो वे संकट में फँस जाती है। पिता रिचर्ड जो टोरी पार्टी के नेता हैं, भला समाज को क्या मुँह दिखाएँगे? उनके बेटे के संबंध एक नौकरानी से? ख़ैर, अब जब संबंध बन गया, और परिवार का संतान नौकरानी के पेट में है, तो उसे धक्के मार कर निकाला भी नहीं जा सकता। 

सजा जेम्स को मिलती है। जेम्स बेलामी को ब्रिटिश दस्ते में ‘इंडिया’ भेज दिया जाता है। उसके बच्चे की माँ सारा ईटन पैलेस में ही रह जाती है।

दूसरी तरफ़ बेटी एलिज़ाबेथ की शादी इंग्लैंड के एक युवा नामचीन कवि से तय होती है। लेकिन वह तो ठहरे कवि। वह एलिज़ाबेथ के सौंदर्य पर कविता रच सकते थे, मगर संबंध बनाने में कोई रुचि नहीं थी। उन्हें एलिज़ाबेथ के माध्यम से संपत्ति तो मिल गयी, मगर वह किताबों की दुनिया में ही खोए रहते थे। समलैंगिक होने की संभावना भी थी। जब एलिज़ाबेथ ने बच्चे की जिद की, तो उन्होंने यह इच्छा पूरी कर दी। अपने एक मित्र को एलिज़ाबेथ के साथ हमबिस्तर कर! 

जब यह बात ईटन पैलेस को पता लगी, तो इस रहस्य को भी किसी तरह छुपाने की कोशिश होने लगी। गर्भवती एलिज़ाबेथ अपने पति से तलाक़ चाहती थी, मगर इससे परिवार की बदनामी होती। यही तय हुआ कि एलिज़ाबेथ भले वहीं पैलेस में आकर रहे, मगर कोई तलाक़ न हो।

ऊपर वालों की इस संकीर्ण और पाखंडी दुनिया से अलग नीचे वालों की एक दुनिया भी थी। वहाँ एक तेज़-तर्रार रंगरूट युवक आया था, जो जितने अच्छे जूते पॉलिश करता था, उतनी ही अदाओं से प्यार का इज़हार भी। उसने कुछ ही दिनों में एलिज़ाबेथ की मित्र सेविका रोजी से संबंध बना लिया। यहाँ तक कि जेम्स की गर्भवती सारा से भी। हालाँकि यह बातें भी ईटन पैलेस से बाहर नहीं जा सकती थी।

इस बीच दुनिया बदल रही थी। सामंतवाद के दिन ढल रहे थे। बड़े-बड़े पैलेस में रहने वाले लाटसाहेबों को आटे-दाल का भाव पता चल रहा था। नयी दुनिया में नए साहबों का उदय हो रहा था। जमीन-जत्था के मालिक नहीं, बल्कि व्यवसाय की समझ रखने वालों का। यानी आज का बिजनेस क्लास। 

एक आर्मीनियाई व्यापारी युवक से एलिज़ाबेथ को भी इश्क हो जाता है। वह ऐसे मौके पर मदद भी करता है, जब पैलेस बिकने की नौबत आ जाती है। लेकिन ये आर्मीनियाई लोग भला ब्रिटिशों के साथ कब से उठने-बैठने लगे? पैसों की समझ भले हो, मगर लाटसाहेब तो नहीं? एलिज़ाबेथ का यह संबंध भी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, अन्यथा टोरी पार्टी क्या सोचेगी?

कहानी में इस ऊँच-नीच का अनंत सिलसिला चलता रहता है। ईटन पैलेस के अंदर की दुनिया और उसके बाहर की दुनिया जैसे एक जैसी हो। इंग्लैंड की इस कहानी से वे तमाम कहानियाँ जुड़ जाती हों, जहाँ इस तरह के पूर्वाग्रह और भेदभाव कायम हों।

पुस्तक में एक दृश्य है जब कवि अपने सेवक से कहते हैं, “अपनी जगह से ऊपर उठो। जूते के फीते बाँधने वाले कभी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री नहीं बने”

सेवक उनके फीते बाँध कर मुस्कुराते हुए कहता है, “प्रधानमंत्री तो खैर कोई कवि भी आज तक नहीं बन सका। एक दिन ऐसा आएगा जब ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने के लिए ऐसी शर्त न होगी”

Author Praveen Jha narrates a summary of novel from Upstairs Downstairs series.

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