जब मैंने इस किताब के विषय में सुना था, तो इसे अमरीका के राष्ट्रीय पुरस्कार की सूची में रखा गया था। एक तमिल किताब के लिए यह ऊँची छलाँग कही गयी थी। कुछ समीक्षाओं में इसकी तुलना जॉर्ज ऑरवेल के ‘एनिमल फार्म’ से की गयी थी। इसे रूपक कथाओं (Allegory) का अद्भुत उदाहरण कहा गया था। मगर यह किताब मेरे हाथ कुछ देर से आयी। अभी परसों ही डाक से। और कल देर रात यह पढ़ कर पूरी कर ली।
मेरा मानना है कि इस किताब का ‘एनिमल फार्म’ से कोई लेना-देना नहीं। ज़रूरी नहीं कि पशु आधारित किताब मानव समाज पर रूपक ही हो। हम बकरी में मनुष्य की छवि ढूँढने लगे, और उसकी बलि में मानवों की त्रासदी। यह भी तो हो सकता है कि वाकई एक पशु की कथा लिखी जाए। एक बकरी की जीवनी।
पूनाची नामक यह बकरी जब अपने मालिक के हाथ में आयी थी, तो बस हथेली बराबर। रुई के फाहे जैसी कोमल। उस बकरी को पालना कठिन था, क्योंकि उसकी माँ नहीं थी। मगर वह पली। दूसरी बकरियों के बीच। और बकरों के बीच।
एक बकरी की नज़र से दुनिया को देखना कठिन है। लेखक अपने नोट में लिखते हैं कि वह कुछ ही पशुओं को बेहतर जानते थे, उनमें एक थी बकरी। चूँकि उन्होंने बकरियों को पलते हुए देखा था, वह जीवनी लिख सकते थे।
बकरी का प्रेम। बकरी की इच्छाएँ। बकरी को जबरन गर्भवती कराया जाना। बकरे का जबरन बंध्याकरण किया जाना। बकरी के बच्चों को माँ से अलग करना, और उनके दूध का व्यापार। बकरी के प्रेमी को एक दिन देवी को बलि चढ़ा देना। बकरी का एक दिन स्वयं देवी बन जाना।
पेरुमल मुरुगन ने एक साधारण कथा लिखी है, जिसे पढ़ते हुए हम कई समानांतर ढूँढ सकते हैं। मगर ऐसे समानांतर ढूँढना क्या आवश्यक है? एनिमल फार्म जान-बूझ कर साम्यवाद को ध्यान में रख कर लिखी गयी थी। उसमें स्तालिन और लेनिन जैसे पात्रों को पशु रूप में रखा गया था। मगर इस पुस्तक पूनाची में ऐसा कुछ नहीं है। यह बकरी की ही जीवनी है। इसमें मनुष्य ढूँढना और ख़ामख़ा allegory बनाना भी एक अत्याचार ही है।
मेरी मानिए तो इसे एक बकरी पूनाची की जीवनी मान कर पढ़िए।
Author Praveen Jha narrates his experience about the book Poonachi- The Story of a Goat by Perumal Murugan.
हिंदी अनुवाद ख़रीदने के लिए क्लिक करें
1 comment
यह तो वाकई मजेदार, दिलचस्प किताब होगी।
समीक्षा भी मजेदार है।