एक चौराहे पर एक वृत्ताकार इमारत है। अंग्रेज़ी में कहें तो सिलिंड्रिकल बिल्डिंग। जैसे संसद भवन, थिएटर या स्टेडियम हो। मगर यह इमारत कुछ बेतरतीब सी है।
इसका आधा हिस्सा उन चूना पत्थर के स्तंभों से बना है, जो सदियों पहले बनने बंद हो गए। आधा हिस्सा ऐसी ईंट से बना है, जो सदियों पहले थे ही नहीं। इमारत के साथ कुछ ठूँठ स्तंभ हैं। यह किसी ऐसे मंदिर के थे, जिसके उपासक ही दुनिया में नहीं बचे। अगर कोई पूछे कि इस इमारत की उम्र क्या है, तो इसका कोई उत्तर नहीं। जैसे पेड़ के तने उम्र के साथ मोटे होते हैं, मोतियों के सीप पर परतें चढ़ती हैं, उसी तरह यह इमारत उम्र के साथ बदलती जा रही है। इसकी नींव और आधा हिस्सा दो हज़ार वर्ष पुराना है, दूसरा हिस्सा दो सौ वर्ष पुराना, अंदर के रंग-रोगन एक दशक पुराने। साथ में खड़े तीन खंभे ढाई हज़ार वर्षों से इसे टूटता-बनता देख रहे हैं।
यह रोम की ऐसी कई इमारतों में एक इमारत है।
दुनिया के शहर बनते-बिखरते रहे हैं, मगर वे नए सिरे से बसना पसंद करते हैं। जैसे अगर न्यूयार्क की दो इमारतें ध्वस्त हो गयी तो नयी नींव, नयी इमारत तैयार होगी। एक खबर देखी कि चीन में नियत समय पर पूरी इमारत गिरा कर नए सिरे से इमारत बना रहे थे। मगर रोम तो सदियों से आधे-अधूरे मलबों पर खड़ा होता आ रहा है। जैसे नयी कमीज़ के बदले रफ़ूगर चिप्पियाँ चिपका रहे हों।
मैं एक भीड़-भाड़ वाली सड़क पर चल रहा था। नीचे पत्थरों के बीच ऐसी ही एक चिप्पी की तरह पीतल जड़ा पत्थर दिखा। उस पर अंकित था-
‘जॉर्जियो लेवी
जन्म- 1926
गिरफ़्तारी- 16.10.1943
ऑशविट्ज ले जाए गए
कभी नहीं लौटे’
हज़ारों लोग एक यहूदी की गुमनाम स्मारक के ऊपर से गुजर रहे थे, जो शायद कभी उस मुहल्ले में रहा करते थे। अब उस यहूदी मुहल्ले से यहूदी साफ़ हो चुके।
वहीं कुछ दूर एक बैरोक वास्तुकला से सुसज्जित सफेद इमारत पर एक धुँधली सी पट्टिका दिखी। उसके ऊपर चार अक्षर लिखे थे, जो रोम के हर गली, हर चौराहे, हर नाले, हर बड़ी इमारत पर लिखे हैं। ये सदियों पुराने रोमन गणतंत्र के चार अक्षर हैं- SPQR जिसका पूर्ण नाम है Senatus Populus Que Romanus.
जब कैमरे को ज़ूम कर तस्वीर ली, तो देखा कि उन चार अक्षरों के नीचे एक नाम लिखा है- बेनिटो मुसोलिनी। यह इटली के आखिरी तानाशाह थे, जिनका नाम रोम से पूरी तरह मिटा नहीं है। रोम शायद कभी इतिहास को ढंग से मिटाता नहीं। वह अपनी कोशिश से तोड़ता है, रौंदता है, दफ़न कर देता है। मगर इतिहास उन मलबों से फिर भी झाँकते रहते हैं। एक गहरी जमी हुई काई की तरह सदियों तक जमे रहते हैं।
यूँ देखें तो रोम यूरोप के सबसे बदसूरत शहरों में है। मलबों पर खड़ी बेतरतीब इमारतों का ज़िक्र तो कर ही दिया। सड़कें संकरी है, गाड़ियाँ खड़ी करने की जगह नहीं, जल-निकास आदम जमाने का, गंदगी बेइंतहा, कोलाहल और भीड़भाड़। मगर रोम में कहीं भी खड़े होकर इत्मीनान से अगर दूर तक नज़रें दौड़ाएँ, तो जैसे वास्तुकला का एक पूरा घराना ही नज़र आ जाए। श्रेष्ठ आकृतियों के प्रतिमान दिख जाएँ। सृजन का चरमोत्कर्ष।
मिसाल के तौर पर मेरी नज़र एक खूबसूरत इमारत पर गयी। उसके सामने तस्वीर खिंचवाने वालों का एक पूरा मजमा लगा था। उसके हर मुख्य स्तंभ पर रोम के किसी प्रसिद्ध नैयायिक की मूर्ति बनी थी। उसके कोनों और मेहराब पर लहरदार आकृतियाँ थी, जो यूरोपीय पुनर्जागरण की पहचान है। यह आधुनिक रोम का सबसे सुंदर और विशाल भवन यहाँ का सर्वोच्च न्यायालय है। मैं उसके करीब गया तो वहाँ उसका विवरण लिखा था-
‘यह भवन रोम के बदसूरत भवन (Ugly buillding) के नाम से जाना जाता है!’
भला दुनिया के सबसे महान आधुनिक शिल्पकार माने जाने वाले माइकल एंजेलो के स्थापित मानकों पर खरा कौन उतरे? हम जिसे खूबसूरत माने बैठे हैं, वह उनकी नज़र में बदसूरत है। हमें जो रोम सबसे गया-गुजरा नज़र आ रहा है, वह अद्वितीय है। पश्चिम का शाश्वत नगर (eternal city) है। इसके दाग़ गिनते-गिनते भी इससे नज़र हटाना कठिन है। इसके ठूँठ खंभों, बिना छत की टूटी दीवालों, क्षत-विक्षत मूर्तियों, पलस्तर की चिप्पियों के पीछे एक भव्यता है।
यूँ लगता है कि काश दुनिया के हर नगर में इसी तरह इतिहास अपनी उम्र के साथ मौजूद होता। बूढ़ा इतिहास भी जीवित होता। युवा इतिहास के बगल वाली खाट पर लेटे हुक्का पीते।
शीशमहलों से सजे आधुनिक नगर अपनी कृत्रिमता लिए होते हैं। हम उन नगरों में रहना पसंद करने लगे, जो पहले समतल किए गए। फिर वहाँ इमारतें खड़ी हुई। मुझे नोएडा से बाहर स्मार्ट सिटी में रहने वाले चालीस वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति ने गर्व से कहा- ‘मैं इस नगर के पहले नागरिकों में से हूँ’।
मैं यह वाक्य सुन कर काँप उठा। जैसे एक नयी सभ्यता का जन्म हो रहा हो। पुरानी सभ्यता और इतिहास को आमूल-चूल खत्म कर। मानव सभ्यता के चालीस हज़ार से अधिक वर्षों के बाद एक नगर बसा, जिसका पहला नागरिक मेरे समक्ष खड़ा है!
खैर, यह उनके मन का भ्रम था। न जाने उस स्थान पर कितने नागरिक आए-गए होंगे। कितने नगर बसे और उजड़े होंगे। रोमवासियों को ऐसे भ्रम मुमकिन ही नहीं। अगर मुसोलिनी की इमारत कहेगी कि हम पहले आए, तो उसे वैटिकन के पोप की इमारत टोकेगी कि पहले तो हम आए। वहीं सामने एक पुराने गिरजाघर के गर्भ से एक रोमन राजा कहेगा- ‘तुमने हमारी क़ब्र पर गिरजाघर बना ली, मगर आए तो हम पहले थे’। ऊपर पैलेटाइन पहाड़ी से उभरे हुए पत्थर कहते- ‘हमें ग़ौर से देखो! न हम होते, न रोम होता’।
इसे बेहतर व्यक्त करती एक पोलिश कविता मैंने सदानीरा पोर्टल पर पढ़ी-
‘तीर्थयात्री अगर रोम के बीच में
आप रोम को देखना चाहते हैं,
रोम में आपको शायद
रोम का कुछ भी नहीं दिखाई दे,
देखो दीवारों के वृत्त, थिएटर, मंदिर
और टूटे हुए खंभे,
सब मलबे में बदल गए,
ये मिलकर रोम हुआ करते थे!…’
मिकोआई सेंप षजिंस्की की पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें
आगे का संस्मरण खंड 2 में। यहाँ क्लिक करें
Author Praveen Jha writes a travelogue on Italy.
तस्वीरें
8 comments
एक नए तेवर का यात्रा संस्मरण।
तस्वीर के नीचे विवरण के फॉन्ट का रंग बहुत ही फीका है। पढ़ने में समस्या पैदा कर रहा है। संभव हो तो ठीक कर दें।
धन्यवाद। अब फॉन्ट ठीक कर दिया है।
मैं आप को पडते रहता हूं fb पर.
इस आर्टिकल में मुझे लगा कि शब्दों के चयन में कुछ झोल हैं
जैसे:- आधा हिस्सा ऐसी ईंट से बना है, जो सदियों पहले थे ही नहीं
यहां आप जरूर आज के सन्दर्भ में यह बात कही लेकिन technically गलत हो रही हैं कि *ब्रिक्स की दिवाळे * हजारो साल पूर्व से ही बनतीं हैं कम से कम 7 हजार साल से भी पहले 🙏
विभिन्न ईंटों के परतदार लेयरिंग के विषय में लिखा है। नयी आरसीसी ईंटें पुरानी चूना पत्थर और बलुआ ईंटों के ऊपर लगायी गयी है। पुरानी ईंटों के भी कुछ लेयर हैं। बाहरी परत में आधुनिक ईंटें हैं। ऐसा प्राचीन इमारतों के रिनोवेशन में होता ही है। जब पुरानी पर नयी ईंट की परत है, तो ज़ाहिर है कि पहले भी ईंटें ही थी, सिर्फ़ उनकी संरचना भिन्न है।