‘संभोग रूहज़न यानी आत्मा की उदासी का आसान इलाज है’, चोर बाज़ार के उस बूढ़े ने किताब-उल-हिकमत बैन-उल-आफाक़ से जोर से पढ़ते हुए कहा
– पुस्तक रूहज़न में रहमान अब्बास
उर्दू की दुनिया के नए मंटो मिज़ाज के यह लेखक दस वर्ष तक मुकदमा लड़ चुके हैं। पिछली किताब में इस्लामिक संस्थाओं ने इन पर अश्लीलता परोसने का आरोप लगाया था। अब तो इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल गया और समाज द्वारा ठीक-ठाक स्वीकार्यता मिल गयी है। वैसे भी पाठक को इन कचहरीबाज़ी और मज़हबी मसलों से क्या?
कलकत्ता एयरपोर्ट पर किताब दिखी तो उठा ली। हालाँकि शीर्षक का सही हिज्जे और अर्थ अब तक समझ नहीं आया। रोहजिन है या रूहजिन या रूह-ज़िन्न? ये उर्दू के जानकार बताएँ। विडंबना तो यह भी है कि उर्दू की किताब अंग्रेज़ी में पढ़नी पड़ गयी, क्योंकि देवनागरी लिपि वाली किताब दुकान में दिखी नहीं।
क़िस्सा यूँ है कि कोंकणी मछुआरों की एक बस्ती से असरार नामक युवक मुंबई आता है, जहाँ कोंकणी मुसलमानों के रहने का ठिकाना ‘जमात की खोली’ है। यहाँ पहुँच कर वह जीवन में प्रेम और संभोग की भूमिका को समझने की कोशिश करता है। उसे बाज़ार में दो किताबें दिखती है। पहली किताब जिसका उद्धरण ऊपर लिखा है, में दुनिया के सभी रहस्य छुपे हैं। वहीं, दूसरी किताब का शीर्षक है- संभोग करने का इस्लामी तरीका। यह तो हुई थ्योरी।
पूरी पुस्तक में वह किसी निर्विकार अन्वेषक की तरह कभी कोंकण में अपनी शिक्षिका मिस ज़मीला, कमातीपुरा की वेश्या शांति, और अपनी प्रेमिका हिना के माध्यम से इस पहेली को सुलझाने का प्रयास करता है। विषय के हिसाब से परंपरावादियों को यह सॉफ्ट-पॉर्न साहित्य नज़र आ सकती है, मगर इसमें कुछ ओशो रजनीश की दार्शनिक छाप दिखती है (एक स्थान पर नाम सहित संकेत भी है)।
पारंपरिक मुसलमानों के लिए तो कई अंश सुपाच्य नहीं होंगे। मसलन इसकी नायिका सिगरेट फूँकती है, किंतु अपनी परंपरा के प्रति सचेत भी है। बुरके में आयी महिला मुंबई के खुले आसमान में संभोग करती है। वहीं एक महिला अपने पति के परोक्ष में संबंध रखती है। लेकिन, रहमान अब्बास ने इन अंशों को लिखा कुछ इस अंदाज़ में है कि चीजें असहज या अतिशयोक्ति नहीं लगती।
इस पुस्तक की कुछ और परतें भी हैं। जैसे मुंबा देवी एक केंद्रीय पात्र हैं जो मुंबई की घटनाओं को देख रही हैं। ज़िन्न और फ़रिश्ते कथा में यूँ आ रहे हैं, जैसे वे वास्तविक पात्र ही हों। लेखक ने उनका उपयोग उन घटनाओं के लिए किया है, जो मुंबई से जुड़े थे, मगर मूल कथा से नहीं। अजमल कसाब से दाऊद इब्राहीम तक के नाम पुस्तक में इन्ही डोंगियों पर ऊब-डूब कर रहे हैं।
इसी तरह एक और परत इस्लाम पर प्रश्नों की है। एक पात्र अपने पारसी मूल, दूसरा अपने अल्जीरियाई मूल, और एक अजीबोग़रीब ईसाई कल्ट की तरफ़ आकर्षित या जुड़ा हुआ दिखता है। ऐसा क्यों है, यह किताब पढ़ कर सबकी अपनी-अपनी समझ बनेगी।
एक कमी यह लगी कि अंग्रेज़ी अनुवाद में उर्दू और बंबइया भाषाओं का प्रवाह पूरी तरह नहीं आ पाया है। अनुवादक भी यह बात समझती थी, इसलिए शायद शायरी, ग़ज़ल और संवादों में कई जगह मूल उर्दू या बंबइया ही रहने दिया है। लेकिन, इससे कम से कम उसका प्रवाह टूट जाता है जो यह तीनों भाषाएँ समझते हैं।
कुछ अलग कलेवर, अलग मिज़ाज की है। हिंदी में अनूदित है या नहीं, इस पर शंका है। स्वादानुसार पढ़ी जा सकती है।
Author Praveen Jha narrates his experience about book Rohzin by Rahman Abbas
अब यह पुस्तक हिंदी में अनूदित हो चुकी है।