अब्दुल रज़्ज़ाक़ गुरनाह को जब नोबेल पुरस्कार मिला, तो उनकी कुछ किताबें मंगवायी थी। उनमें से एक किताब उसी वक्त पढ़ी, और लगा कि इन लेखक में कुछ-कुछ नायपॉल वाली ही बात है।
आख़िर क्यों न हो? दोनों ही अपने-अपने मूल स्थान से प्रवासित होकर इंग्लैंड गए, और अपनी स्मृतियों को खंगालते रहे। गुरनाह के अंदर अफ़्रीका बसा है, मगर यह जंगलों और रेगिस्तानों के बीच नहीं, बल्कि बदलते हुए अफ़्रीका की दास्तान है। जहाँ कई संस्कृतियाँ मिलती हैं, टकराती हैं, भटकती हैं। स्मृतियाँ मिटती हैं, बनती हैं।
अब काला सिंह को ही लें, जो उनके उपन्यास ‘पैराडाइज’ का महत्वपूर्ण किरदार है। एक भारतीय सिख जो अफ़्रीका आकर बस गया और अब गाड़ी मेकैनिक है। काला सिंह भारत और वहाँ की आस्थाओं की कहानियाँ कहते हुए वाद-विवाद करता है। वह मानता है कि धरती पर पैराडाइज यानी स्वर्ग तो भारत में ही है। उसका साथी ज़िरह करता है।
“तुम्हारे अल्ला-वल्ला में क्या है?…”, काला सिंह पूछता है
उन दोनों की जिरह का गवाह है युसूफ़। इस कहानी का मुख्य किरदार।
युसुफ़ एक किशोर है, जिसे उसके माँ-बाप ने बेच दिया। या यूँ कहें कि वह एक अरबी अमीर का क़र्ज़ नहीं चुका सके। इस एवज में उनका यह बच्चा युसुफ़ उन्हें गवाना पड़ा। अब युसुफ़ एक गुलाम है, एक अमीर का, जिन्हें वह अपना चाचा समझता था। आखिर वह अक्सर उसके गाँव तोहफ़े लेकर आते थे। उसे क्या मालूम था कि वह अपने क़र्ज़ वसूली करने आते हैं।
युसुफ़ उनके साथ तंजानिया और मोज़ांबिक इलाकों में घूम रहा है। वह कई आस्थाओं को देख रहा है। इस्लाम को, सिखों को, हिंदुओं को, ईसाइयों को और अफ़्रीका के ‘असभ्य’ जनजातियों को। वह आकलन कर रहा है कि इसमें कौन सी जीवनशैली आखिर स्वर्ग का रास्ता है। उसे उत्तर नहीं मिलते, मगर वह अपनी नन्ही प्यारी आँखों से दुनिया देख रहा है।
युसुफ़ कमाल का खूबसूरत है। इतना कि गुलाम होकर भी वह अमीरों में अमीर दिखता है। जो भी उसे देखता है, आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता। चाहे पुरुष हो या स्त्री, सभी उससे सम्मोहित हैं। यहाँ तक कि उसके मालिक की रखैल जुलेख़ा भी।
यह बात इस किताब में लिखी नहीं, मगर युसुफ़-जुलेख़ा की कहानी क़ुरान में वर्णित है। जिन्हें वह कहानी मालूम है, वह उस कोण से उपन्यास को पढ़ सकते हैं। ज़ाहिर है यहाँ कहानी किसी और कालखंड की किसी और सोच से है, मगर यह पढ़ते हुए महसूस होता है कि लेखक के दिमाग में ये पात्र भी रहे होंगे।
कहानी प्रथम विश्व युद्ध के समय के अफ़्रीका की है। इसमें जर्मन ताक़तों के अफ़्रीका में दखल को महसूस किया गया है। गुजराती व्यापारियों की बढ़ती आर्थिक शक्ति को, और अफ़्रीका के मूल आस्थाओं पर इस्लाम के प्रभाव को। इससे उपजते भेद-भाव पर कई टिप्पणियाँ बस यूँ ही आँखों से गुजर जाती हैं।
मसलन एक किरदार कहता है कि भारतीय व्यापारी पैसे के लिए किसी हद तक नीचता कर सकते है। वहीं दूसरा कहता है कि अरबी व्यापारियों ने कई स्थानीय लोगों को गुलाम बना लिया। और तीसरा सचेत करता है कि भविष्य तो इन यूरोपीय लोगों का गुलाम बन कर रहना ही है, इसलिए हमें एक होकर रहना होगा।
इन तमाम आस्थाओं, नस्लों और पूँजी के टकराव से कहीं दूर युसुफ़ का वह स्वर्ग है।
(इस उपन्यास से इतर ‘काला सिंह’ उत्तरी अफ़्रीका में बस गए सिखों के लिए प्रयोग होने वाला एक सामूहिक नाम है।)
Author Praveen Jha narrates his experience about book Paradise by Nobel Prize Winning author Abdul Razzak Gurnah.
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