किसान आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है। अस्सी के दशक में एक नाम उभरे – महेंद्र सिंह टिकैत। एक समय उन्होंने दिल्ली हिला कर रख दिया था। इस शृंखला के पहले खंड में किसान आंदोलनों का फ़्लैशबैक
25 वर्ष के बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा ब्रिटिश सरकार को लिखी पहली खुली चिट्ठी विवादित रही। उन्होंने अफ़्रीकी मूल के लोगों को जंगली कहा। लेकिन, यह सत्याग्रह के आरंभिक दस्तावेजों में है।
चीनी राजतंत्र ने आख़िरी बार वापस खड़े होने की कोशिश की। उन्होंने ऐसे सुधार लाए जो चीन का भविष्य बदल सकते थे। लेकिन, नियति उन्हें किसी और ही दिशा में ले गयी। सौ दिनों का सुधार फ्लॉप रहा। चीन शृंखला के इस खंड में बात होगी उस घटनाक्रम की
गांधी ने लंदन पहुँचने के बाद विद्यार्थियों के लिए एक गाइड लिखने का निर्णय लिया। वह स्वयं भी विद्यार्थी थे, तो चाहते थे कि अन्य विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करें। कैसे एडमिशन लें, कहाँ रुकें, कैसे पैसे बचाएँ, ये सवाल तो अब भी हर विद्यार्थी के मन में होते हैं।
1984 के आखिरी महीनों में अमरीकी यूनियन कार्बाइड कंपनी के भोपाल यूनिट में ऐसी गैस लीक हुई जिसने प्रलय ला दिया। यह एक औचक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि इसकी आहट पहले से थी।
चंद्रशेखर आज़ाद की कहानी एक परिपक्व क्रांतिकारी की कहानी है, जिसमें जोश और विचारों का संतुलन दिखता है। आज़ाद पर यह पुस्तक अग्निपुंज उन लोगों के द्वारा लिखी गयी जिन्होंने उन्हें क़रीब से देखा, उनके साथ रहे।
चीन के लिए पश्चिमी दुनिया से कदमताल मिलाना आवश्यक था। लेकिन तियान्जिन और पीकिंग की संधि अफीम युद्ध में हरा कर की गयी। चीन की शर्मिंदगी में इज़ाफ़ा तब हुआ जब जापान से भी हार मिली। इस खंड में चर्चा है चीन पर पश्चिम के प्रभाव और जापान की
चंदन पाण्डेय समकालीन विषयों पर बेहतरीन गद्य लिख रहे हैं। उनकी पुस्तक वैधानिक गल्प एक थ्रिलर की तरह बुना गया गंभीर गद्य है। इसमें वह घटनाएँ नजर आती हैं, जो आज के दौर का सच है।