एक दिन वसंत राव देशपांडे जी के पास ले गए, तो उन्होंने कहा, “यह क्या कर रहे हो? हुनर कोई नुमाइश की चीज है कि बच्चा बढ़िया ढोल पीटता है? दो-चार लोगों ने वाह-वाह क्या कर दी, खुश हो गए? हुनर है तो उसे तराशो! दुनिया में भीड़ बहुत है, ऐसे हज़ारों बच्चे घूम रहे हैं। इसे बाक़ायदा तालीम दो, और यह नुमाइश बंद करो!”
“तुम्हें कहाँ गाना है? यह तो तुम्हारे अंदर बसा धारवाड़ गाएगा। बस अब्दुल करीम ख़ान साहब की एक बात ध्यान रखो कि जब मंच पर बैठोगे, तब तुम राजा हो। और जब मंच से उतरोगे तो निरीह। अपना अभिमान और अपनी असीम शक्ति मंच तक ही रहेगी।”
पंडित जी को मैंने करीब से देखा है, और उनके गायकी से पहले ही उनके चेहरे पर भाव आ जाते हैं। उनकी भृकुटी, उनकी आँखें, उनके होंठ, उनका गला सब भिन्न-भिन्न रसों के हिसाब से बदल जाते हैं
आप इसे इत्तेफाक ही कहेंगे लेकिन वाकई इसको दो बारी बजाते समय बारिश हुई और एक समय यह मैं जंगल के बीच खुले आसमान में बजा रहा था और द्रुत के समय बारिश होने लगी। यह अनुभव अलौकिक था, जैसे किसी वैज्ञानिक का प्रयोग सफल हो गया हो।
हिंदुस्तानी संगीत है तो घराने हैं। घराने हैं, तो कथाएँ हैं। कथाएँ हैं, तो उनमें रस है। उतना ही, जितना कि संगीत में। क्योंकि कथाएँ बनी ही संगीत से है। मुश्किल ये है कि यह कोई बताता नहीं
एक श्रोता के लिए राग पहचानने के फेर में अधिक पड़ना आवश्यक नहीं। गायक-वादक यूँ भी राग और ताल पहले बता देते हैं। सी.डी. या यू-ट्यूब पर भी यह लिखा ही होता है, तो यह कोई छुपा रहस्य नहीं कि इसे जानना ही हो। लेकिन रागों की समझ हो तो आनंद बढ़ने लगता है
मुझे किसी ने पूछा कि किन्हीं पाँच स्वरों को मिला कर क्या राग बन जाएगा? यूँ गणित से राग नहीं बनता। जैसे किसी भी चार अक्षर मिला कर शब्द नहीं बनाया जा सकता। उस शब्द का कोई अर्थ तो हो कि शब्द बोलते ही एक ख़ास चीज ध्यान आए। ‘अमरूद’ कहें तो एक फल ध्यान आए
मैं अमरीका में अलझाइमर पर शोध से जुड़ा था। उस समय मुझे एक शोध-पत्र मिला कि अलझाइमर के मरीज जिनकी स्मृति क्षीण हो चुकी है, वह गीत की धुन या पहली पंक्ति सुन कर अगली पंक्ति गुनगुनाने लगते हैं। बाद में यह मैंने मरीजों में देखा भी कि अखबार पढ़ने की क्षमता खत्म हो गयी, लेकिन संगीत का आनंद ले रहे हैं।
एक विश्वविद्यालय आयोजन याद आता है। किनकी प्रस्तुति थी, यह नहीं कहूँगा लेकिन दर्शकों में कॉलेज़ के लड़के बैठे थे। बमुश्किल पांच मिनट में पीछे से खिसक कर भागने लगे, तो दरवाजे पूरी तरह खुलवा ही दिए गए। जब गायक बंदिश पर आए, कई उसी दरवाजे से आकर बैठने भी लगे, और आखिर अच्छी-खासी युवाओं की भीड़ आ ही गयी