पिप को मालूम नहीं था कि उसके माता-पिता कैसे दिखते थे। वह कब्रगाह में खड़े होकर उनकी कब्रों से अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था कि पिता शायद घुंघराले काले बालों वाले हट्टे-कट्टे व्यक्ति थे, और माँ दुबली-पतली थी। उन कब्रों के साथ एक पंक्ति में लगे पाँच पत्थर उन पाँच भाइयों की स्मृति थी, जो अल्पायु मर गए। वह उनकी याद में डूबा ही था कि तभी बेड़ियों में बँधा, मैले-कुचैले कपड़ों में एक अपराधी ने उसे आकर पकड़ लिया।
उसने धमका कर कहा- जाओ! कहीं से एक रेती लेकर आओ! साथ में भोजन भी लाना! वरना तुझे कच्चा चबा जाऊँगा!
पिप भागा-भागा अपने बहन और लुहार जीजा के पास गया, और वहाँ से उस रात छुपा कर रेती, भोजन और कुछ शराब लेकर आ गया। अपराधी भोजन भकोसते हुए रेती से अपनी बेड़ियाँ काटने लगा।
बहरहाल, पिप की बहन हमेशा खिसियाई सी रहती, और जीजा लुहार-गिरी में व्यस्त रहता। पिप को अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा था। तभी उसे एक अवसर मिला।
एक रईस अधेड़ महिला ने मनोरंजन के लिए उसे बुलवाया। वहाँ उसकी खूबसूरत दत्तक पुत्री एस्टेला और यह गरीब पिप उसके सामने उसका मनपसंद खेल खेलते। इस मनोरंजन के लिए कुछ मामूली रकम मिल जाती, लेकिन पिप का दिल तो एस्टेला पर आ गया था। यह तो असंभव था। बेमेल था। एस्टेला ने ‘गरीब सर्वहारा’ कह कर उसका उपहास किया। हालाँकि वह रईस महिला पिप से खुश थी।
अब पिप की यही आकांक्षा थी कि किसी तरह वह सर्वहारा वर्ग से निकले। शिक्षा ले, पैसे कमाए। सूट-बूट पहन कर एस्टेला का हाथ माँगे। लेकिन उसकी फूटी किस्मत में तो लुहार-गिरी ही लिखी थी। तभी एक और चमत्कार हुआ!
एक वकील उसके दरवाजे पर आया, और कहा कि किसी पिप के नाम पर लंदन में संपत्ति और वार्षिक रकम का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव किनकी तरफ़ से है, यह नहीं बताया जा सकता।
पिप को लगा कि यह जरूर वह रईस मालकिन है, जो उसे गुप्त रूप से संपत्ति दे रही है, और अपनी पुत्री का हाथ सौंपना चाहती है। ख़ैर, वह लंदन जाकर तमाम सुविधाओं के बीच पढ़ने-लिखने लगा, छुरी-काँटे से खाने लगा, सूट-बूट में बड़े-बड़े लोगों के बीच बैठने लगा। वह धीरे-धीरे अपनी बहन और जीजा जैसे लोगों को निम्न कोटि का समझने लगा। जब वह अपने शहर भी लौटता तो उस रईस मालकिन के पास जाता, लेकिन अपनी बहन के घर नहीं जाता। वह एस्टेला से इश्क लड़ाने लगा।
इस मध्य उसकी बहन का देहांत हो गया, और एक दिन…
पिप की मुलाकात उस अपराधी से हुई, जो बचपन में कब्रगाह में मिला था। अब वह अपराधी भी सूट-बूट में आ गया था। पिप ने हाल-चाल पूछा और अकड़ कर कहा कि अब मैं गरीब नहीं रहा। अब मेरे पास सभी सुविधाएँ हैं। उस अपराधी ने कहा कि मैं भी न्यू साउथ वेल्स (ऑस्ट्रेलिया) चला गया था, और ठीक-ठाक कमा लिया, लेकिन तुम कैसे अमीर हुए?
पिप ने कहा कि एक रईस महिला की कृपा है, जो अपनी बेटी मुझसे ब्याहनी चाहती है।
उसने हँस कर कहा कि दरअसल यह किसी महिला की नहीं, मेरी कृपा है। मैंने जो भी कमाया, उसका एक अंश मैंने तुम्हारे लिए छोड़ दिया था कि तुम पढ़ो-लिखो और अपनी आकांक्षाएँ पूरी करो।
पिप यह सुन कर दंग रह गया, और अपराध-बोध में गड़ गया। वह इतने दिनों से एक अपराधी के टुकड़ों पर पल रहा था? वह रईस महिला अपनी बेटी उससे नहीं ब्याहना चाह रही थी? वह खुद को अभिजात्य मान कर ख़ामख़ा अपने बहन से दूरी बना रहा था?
पिप फैसला करता है कि अब उस अपराधी की एक फूटी कौड़ी नहीं लेगा। लेकिन अपराधी उससे इतने दिनों किए गए उपकार के लिए एक आखिरी माँग रखता है। उसके पीछे पुलिस लगी थी, और एक बार फिर पिप उसकी भागने में मदद करे…
क्या पिप ऐसा करेगा?
यह चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास ‘ग्रेट एक्सपेटेशन्स’ का एक सारांश है।
डिकेंस का बचपन पढ़ाई-लिखाई से दूर जूता चमकाते बीता था। उनके पिता को कारावास हो गयी थी। गरीबी में पल रहे डिकेंस किसी तरह पढ़-लिख कर अभिजात्य बनना चाहते थे। उनकी यह मंशा आखिर एक वसीयत से पूरी हुई, और वह युवावस्था में पढ़ाई पूरी कर सके। उनके उपन्यासों में इंग्लैंड के समाज के अंदर वर्ग-भेद उनके अपने जीवन से ही उभर कर आया है।
Author Praveen Jha narrates the short summary of book ‘Great Expectations’ by Charles Dickens