उसकी माँ ने तीन वचन लिए थे। पहला कि वह कभी हथियार नहीं उठाएगा। दूसरा कि कभी किसी को धोखा नहीं देगा। तीसरा कि कभी नशा नहीं करेगा।
इन वचनों के साथ दस-बारह साल का बच्चा इनायत तालिबान-शासित अफ़ग़ानिस्तान से पलायन करता है। उसके पलायन की कई वजहों में एक यह थी कि वह हज़ारा समुदाय से था, जो शिया होते हैं। दूसरी वजह यह कि उसके समुदाय के लोगों की दाढ़ी नगण्य होती है। जब वह स्कूल में पढ़ रहा था, तो तालिबान आए और उसके शिक्षक को गोली मार कर चले गए।
यूँ तो ऐसी कहानियाँ कोई नयी नहीं है, मगर यह कहानी बच्चों की मासूमियत से लिखी गयी है। इसकी भाषा में कहीं सीधी आलोचना न होकर एक सपाट कथ्य है। जैसे यह बातें बड़ी ही सरल हो, प्राकृतिक हो। गोली मार दी तो मार दी। उसको भागना पड़ा, तो वह भागा। वह बस भागता चला गया, जैसे सभी भागते होंगे।
इनायत पहले पाकिस्तान पहुँचा, जहाँ यूँ ही किसी दुकानदार के लिए फेरी लगायी। सामान बेचे। सड़क पर सोया। फिर किसी ने कहा कि शिया लोगों के लिए ईरान बेहतर होगा। वह ईरान चला गया। वहाँ से भगाया गया, तो तुर्की चला गया। किसी ने कहा कि इस्तांबुल में काम मिलेगा।
इस्तांबुल से उसने समंदर देखा। उसने सुना था कि समंदर में मगरमच्छ होते हैं। वह एक डोंगी में बैठ कर एक दिन निकल गया, और ग्रीस पहुँच गया।
और एक दिन रोम।
फाबियो गेदा की ख़ासियत यह है कि इसमें साहित्यिक लच्छेदार भाषा न डाल कर इसे बालसुलभ भाषा में लिखा है। जैसे उन्हें इनायतुल्ला अकबरी ने सुनाया होगा। मगर इसे पढ़ते हुए कई साधारण वाक्य भी गहरी छाप छोड़ जाते हैं।
जैसे उसका यह कहना, “मैंने एक रात बैठ कर तारे गिने। तीन हज़ार तक। मैंने इसी तरह एक बार वे पुल गिने जो तालिबान ने उड़ाए थे।”
हालाँकि मैंने यह पुस्तक इतालवी से नॉर्वेजियन अनुवाद में पढ़ी, मगर यह अंग्रेज़ी में भी अनूदित है।
Author Praveen Jha writes a summary of the book In The Sea There Are Crocodiles by Fabio Geda.
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