मानव खंड 4 – भगवान

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भगवान हैं या नहीं, यह प्रश्न बचपन का एक शाश्वत कौतूहल है। मानव इतिहास में ऐसा निर्माण कब हुआ होगा, यह कयास लगते रहे हैं। पाषाण युग से कांस्य युग में प्रवेश और लिपि का आविष्कार ऐसी ही एक कड़ी है।

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1
जब आदमी जंगल में शिकार करते घूमते थे, उस समय भी शायद कोई भगवान मानते हों। सूरज को, चाँद को, पेड़-पौधे को, या पशुओं को। यूरोप में नियंडरथल मिले, तो उनके शवों के साथ कुछ पशु दफनाए मिले। वे मानते थे कि आदमी के पास मरने के बाद भी खाने-पीने की व्यवस्था रहे। उसी तरह मध्य प्रदेश में एक आठ हज़ार वर्ष पुरानी त्रिकोणाकार आकृति मिली। हो सकता है उनके भगवान हों। 

जब वे जंगल में रहते थे, संभवतः भगवान की जरूरत कम रही। जब खेती-बाड़ी शुरू हुई, फिर कभी बारिश होती, कभी सूखा पड़ता। उन्हें लगने लगा कि यह कोई भगवान कर रहे हैं। उन्होंने धरती, आकाश, बरसात, सूर्य को भगवान मान लिया। वे खुश रहेंगे तो खाना मिलेगा। अपने राजा को भी भगवान मानने लगे, और पत्थर पर उनकी तस्वीरें बनाने लगे। इस तरह आदमी ने लिखना शुरू किया, तस्वीरों से। यह मिस्र (इजिप्ट) में कहलाता है- हीरोग्लिफिक्स यानी चित्र बना-बना कर लिखना। 

वहाँ के सूर्य भगवान कहलाए ‘रा’। आकाश के भगवान कहलाए ‘होरस’। होरस के पिता ‘ओसिरिस’ मृत्यु का फैसला करते थे। उनकी पत्नी का नाम था ‘इसीस’। इसी तरह हर जगह अपने-अपने भगवान के सेट बनने शुरू हुए।

मिस्र के लोग पत्थर पर लिखते थे, जो बहुत भारी होते। सोचिए, अगर आपकी किताब के बदले दस बड़े पत्थर रख दिए जाएँ, और वही लेकर स्कूल जाना पड़े? उस समय कागज तो था नहीं, क्या करते?

सुमेर के लोगों को एक बेहतर आइडिया आया। वह दो नदियों (टिगरिस और यूफ्रेटस) के पास रहते थे, तो उनके पास गीली मिट्टी बहुत थी। वह उसके स्लेट बनाने लगे। उस गीली मिट्टी पर वह एक पतली तीली लेकर आकृति बनाने लगे। जब वह मिट्टी सूख जाती, उसे जमा कर लेते। यह पत्थर के मुकाबले हल्की थी, और इसमें चित्रों में रेखाएँ खूब होती। यह कहलाई ‘क्यूनिफॉर्म’ लिपि।

मिस्र में राजा हुए नारमेर। सुमेर में राजा बने सारगोन। उन्होंने सभी छोटे-मोटे सरदारों को हरा दिया, और बड़ा राज्य बना लिया। वे भी भगवान बन गए।

जब ये राजा भगवान बनने लगे, तो मनमानी करने लगे। कोई कानून तो था नहीं। फिर एक राजा को लगा कि कुछ कानून बनाना चाहिए। उनका नाम था हम्मूराबी। 

राजा हम्मूराबी का राज कहलाता था बेबिलोन। वहाँ उनको किसी देवता की तरह माना जाता था। आज से लगभग चार हज़ार साल पहले उन्होंने कुछ कानून बनाए। 

उन्होंने कहा कि अगर किसी की एक दाँत कोई तोड़ता है, तो उसके बदले एक दाँत तोड़ दी जाएगी। अगर एक हड्डी तोड़ता है, तो उसकी भी एक हड्डी तोड़ दी जाएगी। अगर कोई किसी का पेड़ या किसी की बकरी चुरा लेता है, तो उसे उसकी दस गुणी कीमत चुकानी होगी। अगर कोई बेटा ग़लती करता है, तो उसे पहली बार पिता माफ करेंगे, मगर दूसरी बार घर से निकाल देंगे।

हम्मूराबी स्वयं सूर्य के उपासक थे। जैसे सूर्यवंशी राजा। उनके राज में आकाश के तारों और सूर्य को देख कर लोगों को लगा कि शायद यह सूर्य धरती का चक्कर लगा रही है। उन्होंने इस पूरे चक्कर को एक साल कहना शुरू किया। फिर उसके बारह महीने बनाए। चौबीस घंटे का दिन बनाया। साठ मिनट का एक घंटा बनाया। इस तरह दुनिया के पहले कैलेंडर बनने तैयार हुए।

बेबिलोन के उत्तर में एक नगर था असुर। वहाँ के राजा थे शम्सी-अदाद। वह कुछ तानाशाह मिजाज के राजा थे। वह वायु और तूफ़ान के भगवान की पूजा करते थे, और उनके मंदिर बनाने लगे। वह असुर-वासियों का पूरी दुनिया पर राज चाहते थे।

इस समय तक आदमी के पास लड़ने के लिए कुछ और भी चीज आ गयी थी। एक दिन जब कुछ लोग आग के किनारे बैठे थे, तो वहाँ देखा कि पत्थर पर गर्मी से कुछ पिघल कर चमकने लगा है। यह सख़्त भी है, और इसे पिघला कर आकार भी दिया जा सकता है। यह पत्थर में मौजूद तांबे और अन्य धातुओं से बना काँसा (ब्रोंज) था। इस से औजार और हथियार बनने लगे। युद्ध होने लगे। यह युग पाषाण-युग (स्टोन एज) के बजाय अब कांस्य-युग (ब्रोंज एज) कहलाने लगा। 

एक दिन राजा हम्मूरावी की सेना ने असुर राज पर चढ़ाई कर दी, और विजयी हुए। वह पूरे मेसोपोटामिया के राजा हुए। मगर इन असीरियनों (असुरवासी) और बेबिलोन वासियों के मध्य संघर्ष आगे भी चलती रही।

इन दोनों ही राज्यों के कुछ कॉमन भगवान भी थे। जैसे एक थे गिलगमेश जो बहुत शक्तिशाली थे, और एक हाथ से पेड़ उखाड़ लेते थे। मगर जब वह जनता पर अत्याचार करने लगे, तो सभी लोग भगवान अनु के पास मदद माँगने गए। उन्होंने एक आधे पशु और आधे आदमी के रूप में एंकिडु का निर्माण किया। गिलगमेश और एंकिडु में युद्ध हुआ। गिलगमेश ने एंकिडु का मन भटकाने के लिए एक अप्सरा भेजी। लेकिन, अंत में गिलगमेश अपनी गलती मान कर मित्र बन गए। जब धरती पर प्रलय आया, गिलगमेश ने जीवों की रक्षा की। 

ऐसी गाथाएँ, ऐसे देव, ऐसे असुर, ऐसे युद्ध। ये सिर्फ बेबीलोन ही नहीं, हर सभ्यता में थे।

ऐसा क्यों था? आपको क्या लगता है?

A. आदमी की सोच एक जैसी थी, चाहे वह दुनिया के किसी कोने में रहें

B. वे आपस में जब व्यापार करने लगे या यात्रा करने लगे तो एक-दूसरे को कथाएँ सुनाने लगे

C. वाकई ऐसे सूर्य, वायु, समुद्र के भगवान थे जो मनुष्यों से संपर्क में रहते थे

D. अन्य कारण (अपने विचार रखें)

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2

मेसोपोटामिया के एक प्राचीन शहर में दो व्यापारी बातें कर रहे थे-

‘सुना है असीरिया में इस वर्ष बारिश नहीं हुई?’

‘हाँ! क्यों न हम अपना गेंहू लेकर वहाँ चलें? अच्छे दाम मिलेंगे।’

‘जा तो सकते हैं, मगर पिछली बार बैलगाड़ी के पहिए बीच रस्ते में टूट गए थे। याद नहीं?’

‘इस बार मेरे पास दूसरा आइडिया है। हम नाव से चलते हैं’

भले ही रुपया-पैसा व्यवस्थित रूप से न आया हो, मगर आदमी व्यापारी बनने लगा था। रास्ते नहीं बने थे, मगर सफर करने लगा था। चूँकि पहियों में रबर नहीं लगे होते थे, बढ़िया हाइ-वे और ब्रिज नहीं थे, इसलिए बेहतर था कि नाव से यात्रा हो। यह एक और वजह थी कि नदी के पास ही बसा जाए। टिगरिस और यूफ्रेटस नदियाँ मध्य एशिया के बीचों-बीच गुजरती थी। इससे मेसोपोटामिया में कहीं भी जाया जा सकता था। जब पश्चिमी छोर पर पहुँच गए, वहाँ से मिस्र भी पास ही था। 

पूरब में क्या था? उन पहाड़ों के पीछे कैसे-कैसे लोग थे? यह मेसोपोटामिया के लोग भी सोचते थे। मगर वहाँ जाएँ कैसे? इतने बीहड़ को न बैलगाड़ी पार कर सकते हैं, न नाव।

एक दिन फ़ारस की खाड़ी में एक नाव आकर रुकी। वहाँ के लोगों को लगा कि समंदर में मछली मार कर आ रहे होंगे। मगर वे किसी दूर देश से आ रहे थे। उनको खुद नहीं पता था कि वे कहाँ आ गए हैं। वे पहाड़ के दूसरी तरफ के लोग थे। सिंधु नदी में नाव चलाते हुए समुद्र में आए, और वहाँ से फ़ारस की खाड़ी होते हुए टिगरिस (दजला) नदी में आ गए। इस तरह हिमालय को बायपास कर गए!

भविष्य में ये पूरब के लोग भारतीय कहलाए। जब मिस्र और सुमेर में शहर बन रहे थे, राजा बन रहे थे, सेनाएँ बन रही थी, खेती-बाड़ी हो रही थी, देवी-देवता बन रहे थे; उस समय भारत में भी यही हो रहा था। वहाँ लड़ाई के चांस कुछ कम थे, इसलिए  उनका फोकस अपनी नगर व्यवस्था पर अधिक था।

ऐसा अनुमान है कि आज से छह-सात हज़ार साल पहले के भारत में लोग नदियों के किनारे बसे हुए थे। बलूच के मेहरगढ़ में एक सुनियोजित नगर था, जहाँ अपार्टमेंट बना कर और कॉलनी बना कर लोग रहते थे। जैसे आज-कल दिल्ली-बंबई में रहते हैं। 

बेलन घाटी (आज का उत्तर प्रदेश) में गाँव-देहात था, यानी उस समय का ‘काउ बेल्ट’। विंध्य और सतपुड़ा के जंगलों में पुराने वनवासी रहते थे, जो बाद में आदिवासी कहलाए। सरस्वती नदी और कई झीलों के किनारे कुछ अधिक समृद्ध खेतिहर रहते थे, जो कटहल और अन्य फल उगाते थे। अब तो खैर राजस्थान का वह अधिकांश इलाका रेगिस्तान है। भीमबेतका (मध्य प्रदेश) की गुफाओं में कुछ बेहतर प्रबुद्ध शिकारी रहा करते थे, जो जगह बदलते रहते थे। दक्षिण में कई मछुआरे और नाविक बसते थे, क्योंकि उनके पास समुद्र था।

भारत ही नहीं, ऊपर चीन के ह्वांगहो (येलो रिवर) और याग्त्सौक्यांग (यांग्से) नदी के किनारे भी घनी बस्तियाँ थी। कुल मिला कर पूरब अपने डिज़ाइन में फल-फूल रहा था, और किसी से आगे या पीछे नहीं था। जब भारत की नाव मेसोपोटामिया में लगी तो कई द्वार और खुल गए।

क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मपुत्र घाटी के दाओजली हेडिंग स्थान पर तीन हज़ार वर्ष पूर्व मानव की बस्तियों के चिह्न मिले?

3

’आप यह कैसे कह सकते हैं कि मानवों की बस्तियाँ पूरी दुनिया में थी जबकि सभ्यता के चिह्न गिने-चुने जगह ही मिले?’

’इसके लिए पहले बताए गए मानव प्रवास पर नज़र डालिए। मानव तो हिम-युग से पहले ही पूरी दुनिया में पसर चुके थे। मानव के चिह्न भी हर क्षेत्र में मिले। यह सत्य है कि सभ्यता कहने के लिए हर स्थान उपयुक्त नहीं।’

‘मतलब मनुष्य हर स्थान पर थे, मगर सभ्यता नहीं थी?’

‘कुछ हद तक। अभी अगर भारत के हर स्थान ध्वस्त कर दिये जाए, तो हमें क्या मिलेगा? जहाँ फूस की या मिट्टी की झोपड़ियाँ होंगी, वहाँ शायद कुछ न मिले। शहर की बड़ी इमारतों की नींव शायद मिल जाए। इसका अर्थ यह नहीं कि सिर्फ शहर में सभ्यता थी।’

‘लेकिन, सभ्यताओं में भी जितना लिखित हमें सुमेर में मिलता है, उतना मेहरगढ़ या मिस्र में नहीं मिलता।’

‘इसकी वजह एक तो यह भी है कि बलूचिस्तान के राजनैतिक हालात ऐसे नहीं कि वहाँ तरीके से छान-बीन की जा सके। मगर हमें भिन्न-भिन्न कालखंडों के नगर भिन्न-भिन्न गहराइयों में मिले। जैसे एक नगर दब गया, उसके ऊपर दूसरा नगर बसा।’

‘मिस्र में तो यह बात नहीं थी। वहाँ क्यों नहीं मिले?’

’इसका एक विचित्र कारण है। मिस्र एक कदम आगे बढ़ गया था। वहाँ पेपिरस (काग़ज़) पर लिखने की शुरुआत पहले हो गयी थी, जबकि सुमेर में गीली मिट्टी पर ही लिखा जा रहा था। काग़ज़ और वह भी हज़ारों वर्ष पुराना काग़ज जो कहीं दब-गल गया, उसका मिलना और उस पर लिखी स्याही का सही सलामत बचना असंभव है। फिर भी लगभग साढ़े चार हज़ार वर्ष पुरानी ‘मेरर की डायरी’ तो मिली ही।’

‘संभव है ऐसा ही भारत के तालपत्रों और भोजपत्रों के साथ भी हुआ हो?’

‘संभव है। संभव तो यह भी है कि आज अगर दुनिया तबाह हो जाए, तो कंप्यूटर और क्लाउड के करोड़ों दस्तावेज स्वाहा हो जाएँगे, लेकिन मौर्यकालीन शिलालेख फिर भी बचे रह जाएँगे। इसका अर्थ यह तो नहीं कि मानव ने पढ़ना-लिखना छोड़ दिया था’

‘लेकिन, यह कैसे कहा जा सकता है कि भारत में भिन्न-भिन्न स्थान पर मानव आगे बढ़ रहे थे?’

’हमें प्रगति के अन्य चिह्न मिलते रहे हैं। पाषाण युग से कांस्य युग और लौह युग की प्रगति के वैसे ही प्रमाण मिले हैं। भीमबेतका में भी कई कालखंडों के चित्र हैं, जिसका अर्थ है कि वहाँ हज़ारों वर्षों तक मनुष्य रहे। संगीत-रंगकर्म से जुड़े चित्र भी हैं। क्या इसे सभ्यता न कहा जाए?’

‘तो क्या महाभारत और रामायण के कालखंडों को भी माना जाए?’

‘यहाँ मैं सामाजिक आस्था की बात नहीं कर रहा। कार्बन और यूरेनियम डेटिंग की चर्चा पहले की है। वैज्ञानिक रूप से काल-खंड उसी से निर्धारित होता है। चाहे सुमेर हो या मिस्र हो या भारत, अब काल-गणना उसी आधार पर होती है। यह बात ज़रूर है कि जिसकी डेटिंग नहीं हुई, या जो खोजा नहीं जा सका, उसके विषय में वैज्ञानिक रूप में कहना कठिन है। यह काम तो आप में से किसी एक को भविष्य में करना है।’

आगे की कहानी खंड 5 में

In this part of Human history for children and young, Author Praveen Jha describes transition from neolithic age to Bronze age. 

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