क्या गांधी और अंबेडकर दिल्ली में कभी मिले?

Gandhi delhi vivek shukla
विवेक शुक्ल दिल्ली के चलते-फिरते ज्ञानकोश हैं। इस पुस्तक में उन्होंने गांधी और दिल्ली के संबंध को टटोला है। ऐसा लगता है जैसे हर चीज जो देख रखी है, उसमें बहुत कुछ देखना बाकी है।

मुझे जो किताब कहीं दिखती है कि पढ़नी चाहिए, अपने नोटपैड में जोड़ लेता हूँ। सूची बन जाती है, मगर सभी पढ़ना तो असंभव है। नॉर्वे जैसे ग़ैर-अंग्रेज़ी और कुछ हद तक अमेजन-विरोधी देश में हर किताब किंडल पर मिलती भी नहीं। यह किताब आज उठायी कि दो-चार दिन बाद पढ़ लूँगा, मगर शुरुआत ही हुई कि लेखक बेन किंग्सले से मुलाक़ात करते हैं, तो आगे बढ़ता गया। इसे मैंने रसोई में और कुछ अन्य मैनुअल काम करते हुए मोबाइल पर पढ़ा, इसलिए गंभीर पाठक की शर्त तो वहीं खत्म। मगर यह पुस्तक की रोचकता के विषय में एक संकेत तो देती ही है कि पाठक खड़े-खड़े पढ़ जाए।

गांधी पर कुछ नियमित पढ़ने और थोड़ा-बहुत एक प्रकाशन के अपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए लिखने के बावजूद इस किताब में बहुत कुछ था, जो मेरे ध्यान में नहीं था। मैं कुछ प्रश्न रखता हूँ-

१. गांधी की पहली जीवनी किसने लिखी? (आत्मकथा नहीं, जीवनी)

२. गांधी और अंबेडकर दिल्ली में आस-पास ही रहते थे। वे दिल्ली में कितनी बार मिले?

३. गांधी अपने जीवन में दो धर्मस्थलों पर दो बार गए। वे धर्मस्थल कौन से थे? (संकेतः उत्तर बिरला मंदिर नहीं है)

४. भारत के किस वाणिज्यिक संस्था की स्थापना में गांधी की प्रमुख भूमिका थी?

५. ऐसे कौन से व्यक्ति थे, जो पहले मुस्लिम लीग के अध्यक्ष रहे, और उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष बने?

६. हरिलाल गांधी कुछ समय के लिए मुसलमान बनने के बाद किस स्थान पर पुनः हिंदू धर्म में आए?

इन प्रश्नों के उत्तर तो किताब में पढ़ सकते हैं। एक उत्तर लिख देता हूँ कि गांधी और अंबेडकर दिल्ली में काफ़ी करीब निवास करने पर भी कभी नहीं मिले।

यह पुस्तक एक मंजे हुए और दिल्ली की रग-रग से वाक़िफ़ पत्रकार ने लिखी है, जिन्होंने किताबों से कॉपी कर कम और साक्षात्कार कर या घूम कर अपने नोट्स लिखे हैं। इसलिए इसमें बहुत कुछ नया है। गांधी की मृत्यु के चश्मदीद के साक्षात्कार भी हैं। कुछ पुराने प्रश्नों पर चर्चा है जैसे कि भगत सिंह के लिए गांधी ने कब-कब किससे मुलाक़ात की, कहाँ चिट्ठी लिखी। ये बातें कई बार दोहराए जाने के बाद भी पढ़नी चाहिए, ताकि आपकी समझ बेहतर बने।

पुस्तक के अंत में एक मज़ेदार चर्चा है जो बोनस पैकेज़ की तरह है। वहाँ राजघाट के रजिस्टर पर भिन्न-भिन्न राष्ट्राध्यक्षों के लिखे नोट हैं। व्लादिमीर पूतिन से बैरक ओबामा तक ने जो भी गांधी पर पंक्तियाँ दर्ज़ की। वहाँ लेखक परवेज मुशर्रफ़ की पंक्तियों की जाँच कर एक रोचक निष्कर्ष देते हैं, जो मैं यहाँ नहीं बताऊँगा। उसके लिए किताब खरीद लिया जाए, और अन्यथा भी।

मुझे ग्लानि भी हुई कि दिल्ली में पाँच-छह साल बिताने के बाद भी मैं हर उस स्थान पर नहीं गया जिसकी पुस्तक में चर्चा है। वे स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन चर्चा से ही गायब हैं।

लेखक ने भूमिका में लिखा है कि हिंदी अनुवाद भी कर रहे हैं।

पहली बार दर्ज़- 24 दिसंबर 2021

Author Praveen Jha narrates his experience about Book Gandhi’s Delhi by Vivek Shukla.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like
Sigmund Freud
Read More

सिग्मंड फ्रॉय्ड के घर में क्या था?

मनुष्य के दिमाग को समझने में सिग्मंड फ्रॉय्ड का नाम एक मील के पत्थर की तरह है। वियना के उनके घर और क्लिनिक में जाकर इस अनूठे मनोविश्लेषक के दिमाग को समझने की एक छोटी सी कोशिश
Read More
Vegetarian Gandhi Lecture
Read More

क्या शाकाहारी भोजन बेहतर है? – गांधी

गांधी ने लंदन में विद्यार्थी जीवन में भारतीय आहार पर भाषण दिया। इसमें सरल भाषा में भारत के अनाज और फल विदेशियों को समझाया। साथ-साथ भोजन बनाने की विधि भी।
Read More
Read More

वास्को डी गामा – खंड 1: आख़िरी क्रूसेड

यूरोप के लिए भारत का समुद्री रास्ता ढूँढना एक ऐसी पहेली थी जिसे सुलझाते-सुलझाते उन्होंने बहुत कुछ पाया। ऐसे सूत्र जो वे ढूँढने निकले भी नहीं थे। हालाँकि यह भारत की खोज नहीं थी। भारत से तो वे पहले ही परिचित थे। ये तो उस मार्ग की खोज थी जिससे उनका भविष्य बनने वाला था। यह शृंखला उसी सुपरिचित इतिहास से गुजरती है। इसके पहले खंड में बात होती है आख़िरी क्रूसेड की।
Read More