फ्लाइट्स – ओल्गा तोकार्जुक

ओल्गा मात्र स्थान नहीं बदलती, समय में भी उड़ान लेती रहती है। वह कई सदी पीछे पहुँच कर एक अश्वेत के वंशज रूप में ऑस्ट्रिया के महाराज को चिट्ठी लिखती है। कभी वह संगीतकार शॉपिन की आखिरी इच्छा पूरी होते देख रही होती है, जब उन्होंने कहा था कि मरने के बाद उनके हृदय को उनके जन्मस्थान में दफ़नाया जाए।

इस पुस्तक के आखिरी कुछ खंड आज पूरे कर लिए। यह पुस्तक की ख़ासियत है कि इसमें सौ से अधिक खंड हैं। एक ट्वीट जितने छोटे खंड से लेकर एक तीस पृष्ठों के कथानक तक। यह किताब अपने-आप में एक प्रयोग है, जिसे खूबसूरत नोबेल विजेता लेखक ओल्गा ने एक ‘तारामंडल उपन्यास’ (constellation novel) कहा है।

जैसे इसकी कथावाचक कभी एक गोरैया की तरह एक डाल से दूसरी डाल फुदक रही हो, तो कभी एक साइबेरियाइ क्रेन की तरह लंबी उड़ान लेकर दुनिया के दूसरे कोने में पहुँच गयी हो। ऐसा करते हुए वह किसी पुर्जे पर, किसी अखबार के हाशिये पर, किसी नोटपैड पर, किसी टिशू पेपर पर, बस लिखती चली गयी हो। यह अनूठा गद्य ऐसा बिखरा हुआ है, जिसमें कमाल का सातत्य है। आप लेखक के साथ ही उड़ते चले जाते हैं।

ओल्गा की एक विचित्र दृष्टि है, जिसमें हास्य का पुट भी है और बारीकी भी। वह हवाई जहाज में बैठे हुए एक लिफ़ाफ़े पर दर्ज वाक्यों से एक गद्य रच देती है। वहीं, मानव-अंगों के संग्रहालय जहाँ माँसपेशियों, मस्तिष्क, और गुर्दों के लोथले लटके हैं, उन्हें भी बारीकी से बार-बार टटोलती है। कभी वह एक ऐसे चीनी व्यक्ति को ढूँढ निकालती है, जिसके पूर्वज बौद्ध थे और सिर्फ़ एक बार बोधिवृक्ष देखने की इच्छा थी। मगर बोधगया के मानव-समुद्र में पहुँच कर, पसीने से लथ-पथ, वह जब वृक्ष तक पहुँचता है तो उसे वहाँ कहीं बुद्ध की छाप नहीं दिखती।

ओल्गा मात्र स्थान नहीं बदलती, समय में भी उड़ान लेती रहती है। वह कई सदी पीछे पहुँच कर एक अश्वेत के वंशज रूप में ऑस्ट्रिया के महाराज को चिट्ठी लिखती है। कभी वह संगीतकार शॉपिन की आखिरी इच्छा पूरी होते देख रही होती है, जब उन्होंने कहा था कि मरने के बाद उनके हृदय को उनके जन्मस्थान में दफ़नाया जाए। शॉपिन की बहन मृत शरीर से वह हृदय चुरा कर आखिर पोलैंड में दफ़न करती है, ताकि शरीर भले पेरिस में रहे, मगर हृदय मूल स्थान में ही रहे।

यह पुस्तक एक मूलभूत कंसेप्ट की ओर इशारा करती है कि जीवन (और मृत्यु) एक बहुआयामी यात्रा है। हम स्थान, समय और दिशा बदलते रहते हैं। यह कभी रुकता नहीं। प्रवास एक अनिवार्यता है, विकल्प नहीं। हम सभी माइग्रेट कर रहे हैं, उड़ रहे हैं। इस वक्त भी जब आप यह पढ़ रहे हैं, मैं यह लिख रहा हूँ, हम किसी न किसी डाइमेंशन में प्रवास कर चुके है।

[यह मूल पॉलिश भाषा में ‘Beiguni’ नाम से थी, जो बौद्ध संन्यासियों की तरह घुमंतू स्लाव पंथ है। मुझे पता नहीं कि यह पुस्तक हिंदी में है या नहीं, लेकिन कम से कम युवाओं को मेरा सुझाव है कि जैसे-तैसे पठन-योग्य अंग्रेज़ी भाषा सीख लें। हर किताब हिंदी या किसी अन्य भाषा में अनूदित करना असंभव और अप्रायोगिक है। अंग्रेज़ी में तो करना ही पड़ता है।]

क्या बूकर पुरस्कृत पुस्तक रेतसमाधि समझ आयी? Click here to read about book Retsamadhi (Tomb of Sand) by Geetanjali Shree

Author Praveen Jha shares his reading experience about book Flights by Nobel laureate Olga Tocarczuk.

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