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पश्चिमी दुनिया की पहली मर्डर मिस्टरी कब लिखी गयी? क्यों लिखी गयी? किस तरह लोग इन हत्याओं में रुचि लेने लग गए?
जब साहित्य नीरस होता जा रहा था, उस वक्त मौत की कहानियों ने इसमें नयी जान डाल थी। युवाओं को शरलॉक होम्स की कहानियों में रुचि आने लगी। अगाथा क्रिस्टी को बच्चे-बच्चे पढ़ने लगे, और मन ही मन जासूस बनने लगे। लेकिन इस कड़ी की शुरुआत न लंदन में हुई, न अमरीका में। बल्कि ऐसी जगह हुई, जो हत्याओं के लिए ख़ास जाना नहीं जाता था।
यह जान कर हैरानी हो सकती है कि ध्रुवीय देशों में हत्याओं पर आधारित उपन्यास भारी मात्रा में लिखे और पढ़े जाते हैं। आइसलैंड के वीरान घरों में जासूसी उपन्यासकार बैठे हैं। यहाँ तक कि एक प्रधानमंत्री भी जासूसी उपन्यास लिख चुके। जबकि अपराध की स्थिति इसके ठीक विपरीत है। वहाँ पड़ी साइकल कोई नहीं चुराता, हत्या तो क्या ही करेगा? पुलिस भला क्या जाँच करेगी? उनके लिए ये उपन्यास कोरे गल्प हैं कि शहर में एक सीरियल किलर है, जो हत्या पर हत्या किए जा रहा है। जनसंख्या इतनी कम है कि सीरियल किलर को भी किसी को मारने के लिए मीलों चलना पड़ेगा, और पता नहीं मिलेगा भी या नहीं। मार कर लाश छुपाने में न कोई देखने वाला गवाह होगा, न कोई सबूत। कुल मिला कर उसके लिए यह कोई थ्रिल नहीं।
मैं जिस शहर कॉन्ग्सबर्ग (नॉर्वे) में रहता हूँ, वहाँ कभी चाँदी के खदान हुआ करते थे। हालाँकि इस चाँदी के आडंबर के पीछे दक्षिण भारत का एक नगर था, मगर यह विषयांतर हो जाएगा। वह कहानी फिर कभी।
जाहिर है चाँदी के खदान थे, तो इसके लिए मजदूर भी आए। नॉर्वे में ऐसे मजदूर कहाँ मिलते? उन दिनों यूरोप में खदानों के लिए सबसे कुशल मजदूर मिलते थे जर्मनी में (जो प्रशिया कहा जाता था)। वहाँ गरीबी भी थी, तो मजदूरी के लिए लोग दूर देशों में जाते थे। कॉन्ग्सबर्ग में भारी संख्या में जर्मन आए।
सैकड़ों फीट गहरी अंधेरी खदानों में काम करते हज़ारों पसीने से तर-बतर मज़दूर। अपने गाँवों से कोसों दूर। मनों चाँदी निकाल कर मुद्रा बना रहे थे। भ्रष्ट मालिक। त्रस्त कर्मचारी। क्राइम तो होना ही था!
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1840 में एक उपन्यासकार ने वह हत्या रहस्य उपन्यास लिखा, और दो वर्ष बाद मात्र 45 वर्ष की उम्र में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गयी। मॉरित्ज हांसेन के विषय में कल एक युवा शोधी को कहते सुना-
“जिस व्यक्ति ने हत्या, भ्रष्टाचार और अपराध कहानियाँ लिखने की शुरुआत की होगी, वह ज़रूर ऐसे लोगों से घिरा रहा होगा। संभव है कि वह स्वयं एक अपराधी रहा हो। उसकी असमय मृत्यु यूँ ही नहीं हो गयी होगी। अगर उस उपन्यास को दुबारा पढ़ें, तो वाक्यों के बीच शायद पता लगे कि लेखक की मृत्यु का ज़िम्मेदार कौन है।”
मैंने यह उपन्यास Mordet paa Maskinbygger Roolfsen (मशीन निर्माता रूल्फसन की हत्या) पढ़ी है। यह उपन्यास 1840 में प्रकाशित हुई। अगर आप गूगल करें कि दुनिया का पहला क्राइम उपन्यास कौन सा है, तो अमरीकी लेखक एडगर एलन पो की रचना Murders in the Rue Morgue (1841) सामने आएगी। क्या यह अजीब संयोग नहीं कि नॉर्वे और अमरीका में बैक-टू-बैक एक जैसे उपन्यास शीर्षक आए? बहरहाल, 1840 का उपन्यास इस रेस में एक साल से विजयी रहा।
इस उपन्यास में शहर का एक व्यक्ति अचानक गायब हो जाता है। उसे आखिरी बार एक निहायत ही लीचड़ व्यक्ति के घर जाते हुए देखा गया था। सभी गवाह-सबूत उस व्यक्ति को हत्यारा साबित करते दिखते हैं। मगर जाँच अधिकारी को इसमें लोगों के पूर्वाग्रह, गिरजाघर के षडयंत्र, रसूखदारों के भ्रष्टाचार और व्यभिचार नज़र आने लगते हैं। जिसे समाज लीचड़ कहता है, वह तो उसका बाहरी पक्ष है। वह अधिकारी कहता है-
“न मेरे लिए जनता की आवाज़ महत्वपूर्ण है, न ईश्वर की। मुझे तो न्याय की आवाज़ पर ही ध्यान देना है। संभव है कि वह व्यक्ति जनता में लोकप्रिय न रहा हो, गिरजाघर से वास्ता न रहा हो, मगर इसका अर्थ यह नहीं कि उसे मृत्युदंड दे दिया जाए। अपराध को सबूत की ज़रूरत होती नहीं, अनुमानों की नहीं”
आखिर एक दवा बनाने वाले व्यक्ति रासायनिक पद्धति से इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं। यह फ़ॉरेंसिंक जाँचों का एक प्रोटोटाइप कहा जा सकता है।
इस उपन्यास के बाद यह एक मॉडल ही बन गया। हत्या। हत्या की सुई एक या कई व्यक्तियों पर घूमना। जाँच अधिकारी की नज़र का इन व्यक्तियों से अलग होना। ऐसा व्यक्ति जिस पर किसी का शक न हो। और अंत में फॉरेंसिक से इसकी पुष्टि करना। आज तक यही मॉडल चल रहा है।
हत्या रहस्य कथाओं में रुचि रखने वालों को सनद रहे कि पहली पश्चिमी मर्डर मिस्टरी नॉर्वे के लेखक मॉरित्ज हांसन ने 1840 में लिखी। नाम था- मर्डर पॉ मशीनबिग्गर रूल्फसन।
Author Praveen Jha narrates about the first murder mystery of western world from Mautitz Hansen (Norway).