इमरजेंसी की हथकड़ी

Emergency Jayaprakash Fernandes
इमरजेंसी के दौरान कुछ ऐसी स्थिति बनी कि सत्ता के ख़िलाफ़ समाजवादी, दक्षिणपंथी और वामपंथी नेता एक साथ आ गए। यह एक अजीबोग़रीब समीकरण था जिसे अपनी-अपनी सहूलियत और आरोप-प्रत्यारोप के लिए लोगों ने बाद में उपयोग किया। मगर मूल मुद्दा लोकतंत्र का वह रूप था जिसकी चिंता हर दौर में होती रही है

Excerpt from book JP- Nayak se Loknayak Tak. Click here for complete book. 


1 मई, 1976. बेंगलोर

‘लॉरेन्स फ़र्नांडीस?’

‘यस?’

‘कहाँ छुपा है तुम्हारा भाई?’

‘आइ डॉन्ट नो!’

पुलिस लॉरेन्स को उठा कर ले जाती है, और खूब डंडे मारती है। लॉरेन्स को जो भी मालूम था, वह बता देते हैं; लेकिन यह तो उन्हें भी नहीं खबर थी कि जॉर्ज फ़र्नांडीस आखिर कहाँ छुपे हैं। लगभग दो हफ़्ते के बाद मरणासन्न लॉरेन्स को अस्पताल ले जाया जाता है, जहाँ उनकी स्थिति गंभीर होती जाती है। फिर भी उनको महीनों बेंगलोर सेंट्रल जेल में सड़ने छोड़ दिया जाता है। लॉरेन्स का जुर्म आखिर क्या था?

उनके भाई जॉर्ज फ़र्नांडीस ने ‘74 में रेलवे हड़ताल किया था और इमरजेंसी के समय अंडरग्राउंड हो गए थे। खबर थी कि उनके विदेशी लिंक हैं और सी.आइ.ए. की मदद से प्रधानमंत्री के विरुद्ध षडयंत्र कर रहे हैं। यह बात हालांकि विकीलीक्स ने भी बाद में खुलासा किया। सुब्रह्मण्यम स्वामी नेपाल के रास्ते अमरीका भाग लिए थे, लेकिन जॉर्ज भारत में ही थे। वह भी जेपी की तरह सोशलिस्ट थे और उनकी सोच भी वैसी ही थी जैसी जेपी की उनके यौवन में थी। जॉर्ज भी सोचते थे कि वह अकेले क्रांति कर लेंगे।

हालांकि वह अकेले नहीं थे। उनकी मित्र और कन्नड़ अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी भी उनके साथ थी। आखिर स्नेहलता गिरफ्तार हुई, और उन्हें जेल में बेरहमी से यातना दी गयी। उस वक्त जेल में मौजूद लोगों ने लिखा कि उस मशहूर अभिनेत्री की चीख हर रोज पूरे जेल में सुनाई देती थी। और वह जेल से बाहर निकलते ही मर गयीं। आपातकाल की पहली खौफनाक मौत स्नेहलता की ही हुई।

10 जून, 1976 को जॉर्ज फ़र्नांडीस भी कलकत्ता में धर लिए गए।

जब फ़र्नांडीस बड़ौदा में डायनामाइट से रेल पटरियाँ उड़ाने की (झूठी) साजिश में कचहरी ले जाए गए, तो उन्होंने अपनी हथकड़ी हवा में लहरा दी और कहा,

‘यह हथकड़ी सिर्फ़ मेरे हाथ में बँधी जंजीरें नहीं है। यह एक तानाशाह की जंजीर है, जो पूरे देश पर बाँध दी गयी। इन जंजीरों को यह देश ही तोड़ेगा।’

फ़र्नांडीस की वह विजयी मुस्कान भरी तस्वीर आपातकाल की तस्वीर बनी, और उसी दिन से इंदिरा गांधी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गयी।

फर्नांडिस के साथ 1943-45 में सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी रहे सी.जी.के. रेड्डी भी उसी केस में गिरफ्तार हुए। ये दोनों जेल की ओर यूँ बढ़ रहे थे जैसे जेपी का वर्तमान और जेपी का यौवन साथ चल रहा हो।

कुछ महीने पहले जेपी चंडीगढ़ में बुरी तरह बीमार चल रहे थे। उनकी मृत्यु की योजना बनने लगी थी। बाक़ायदा ड्रिल हो रहे थे कि कैसे बॉडी वायुसेना जहाज से चुपके से ले जायी जाएगी। आखिर यह लगने लगा कि जेपी का आपातकाल के दौरान मरना भूचाल ला देगा। वहाँ से बंबई जसलोक अस्पताल शिफ़्ट करने का निर्णय हुआ।

हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल ने अफ़सरों को कहा,

‘चलो! अच्छा हुआ। मुसीबत छूट गयी। यहीं मर जाता तो सरदर्दी बनता। कहीं जाकर पड़ा रहे या मर जाए तो ठीक है।’

जेपी ने अस्पताल छोड़ते हुए जिलाधिकारी को कहा,

‘कह दो हुक्मरानों से! यह जेपी यूँ ही नहीं मरेगा। तुम्हारी मैडम को हरा कर ही मरेगा’

जेपी को जसलोक शिफ़्ट करना तो जरूरी था ही। कांग्रेस सरकार से ग़लती वहाँ हो गयी कि जॉर्ज फ़र्नांडीस को तिहाड़ जेल भेज दिया। अब उस जेल में जनसंघ, कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट, तीनों आ चुके थे।

पुस्तक ‘जे पी- नायक से लोकनायक तक’ का अंश

Excerpt from book JP- Nayak Se Loknayak Tak by Author Praveen Jha published by ESamaad Prakashan

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