Retsamadhi poster
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रेतसमाधि

इस पुस्तक ने मेरे मस्तिष्क को पिछले एक हफ्ते से बंदी बना लिया था, क्योंकि एक पढ़ाकू का अभिमान पाले हुए भी, मैं इस चंपू-गद्य या पद्यात्मक गद्य से पराजित था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कथा कहाँ जा रही है।
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Rambhakt Rangbaaz poster
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रामभक्त रंगबाज़- कुछ क़िस्से कभी पुराने नहीं होते

राकेश कायस्थ ने यह उपन्यास एक चर्चित और संवेदनशील प्लॉट पर लिखा है। जब मंडल-कमंडल का समय था, रथयात्रा, बाबरी मस्जिद विध्वंस से बंबई बम धमाकों की पृष्ठभूमि बन रही थी, उस समय आप कहाँ थे? अगर आप किसी मुहल्ले में थे, तो आप स्वयं को वहीं बैठा पाएँगे
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Poster of the book Rohzin
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रुहज़न – रहमान अब्बास से क्यों नाराज़ होंगे कुछ लोग?

पारंपरिक मुसलमानों के लिए तो कई अंश सुपाच्य नहीं होंगे। मसलन इसकी नायिका सिगरेट फूँकती है, किंतु अपनी परंपरा के प्रति सचेत भी है। बुरके में आयी महिला मुंबई के खुले आसमान में संभोग करती है। वहीं एक महिला अपने पति के परोक्ष में संबंध रखती है
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अकबर

शाज़ी ज़माँ साहब अगर अकबर पर उपन्यास या नाटक लिखते, तो यह मुगल-ए-आजम फ़िल्म जैसी कुछ जानदार मिसाल बनती। लेकिन, वह पूरे उपन्यास में तथ्य रखने में इस कदर उलझ गए कि यह न सौ फ़ीसदी उपन्यास रहा, न इतिहास
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माँझल रात

मुझे इस पुस्तक की सबसे रोचक कहानी लगी- लालजी पेमजी। उसका एक हिस्सा अपने शब्दों में सुनाता हूँ- “जैसलमेर में एक सुविख्यात चोर हुए लालजी भाटी। जब वह वयोवृद्ध हुए, उन्हें यह चिंता सताने लगी कि चौर्यकला अब लुप्त हो रही है।
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Idea Parde Ramkumar Singh
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आइडिया से परदे तक

ऐसी किताबें पसंद आती है, जिसमें खामखा आडंबर नहीं होता और किसी प्राथमिक शिक्षक की तरह बेसिक से शुरू कर खेल-खेल में समझाया जाता है। लेखक समझाते हैं कि उपन्यास या अन्य गद्य के पाठक किताबों में रुचि वाले पढ़ाकू लोग हैं, जबकि फ़िल्म तो कोई भी देख लेता है।
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Jhansi Rani Mahashveta Devi
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झाँसी की रानी

वह नवयुवती, जिन्होंने कभी कोई किताब नहीं लिखी थी, बंगाल से कम निकली थी, वह बुंदेलखंड से मालवा की यात्रा पर निकल पड़ी। लक्ष्मीबाई को झाँसी में जाकर ढूँढा, लोगों से कहानियाँ सुनी, दस्तावेज़ों से मिलान किए, सब परख कर फिर से अपनी किताब शुरू की
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कश्मीरनामा

पाठकीय रुचि चरम पर होती है जब शेख़ अब्दुल्लाह और आजादी का समय आता है। यहीं से तमाम भ्रांतियों का निवारण भी होता है। और यहीं लेखकीय परीक्षा भी है कि निष्पक्ष रहें तो रहें कैसे?
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Kothagoi Prabhat Ranjan
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बलमा हमार फियेट कार ले के आया है

मुज़फ़्फ़रपुर का चतुर्भुजस्थान एक बदनाम रेड लाइट एरिया रहा है। लेकिन वह अपने-आप में एक सांस्कृतिक केंद्र भी रहा जहाँ शरतचंद्र चटर्जी तक के संबंध रहे। मुन्नी बदनाम हुई जैसे गीतों का मूल रहा। प्रभात रंजन अपने लच्छेदार गद्य में उस इतिहास को बतकही अंदाज़ में सुनाते हैं
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Kashi Ka Assi Kashinath Singh
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साली-बहनोई का रिश्ता अस्सी और काशी का

काशी का अस्सी कुछ लोग इसलिए उठाते हैं कि इसमें खूब छपी हुई गाली-गलौज पढ़ने को मिलेगी। ऐसे शब्द जो किताबों में कम दिखते हैं। मगर इस पुस्तक का दायरा कहीं अधिक वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक हो जाता है, जब हम इसे पढ़ कर खत्म करते हैं।
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