Browsing Category
साहित्य
58 posts
रामभक्त रंगबाज़- कुछ क़िस्से कभी पुराने नहीं होते
राकेश कायस्थ ने यह उपन्यास एक चर्चित और संवेदनशील प्लॉट पर लिखा है। जब मंडल-कमंडल का समय था, रथयात्रा, बाबरी मस्जिद विध्वंस से बंबई बम धमाकों की पृष्ठभूमि बन रही थी, उस समय आप कहाँ थे? अगर आप किसी मुहल्ले में थे, तो आप स्वयं को वहीं बैठा पाएँगे
रुहज़न – रहमान अब्बास से क्यों नाराज़ होंगे कुछ लोग?
पारंपरिक मुसलमानों के लिए तो कई अंश सुपाच्य नहीं होंगे। मसलन इसकी नायिका सिगरेट फूँकती है, किंतु अपनी परंपरा के प्रति सचेत भी है। बुरके में आयी महिला मुंबई के खुले आसमान में संभोग करती है। वहीं एक महिला अपने पति के परोक्ष में संबंध रखती है
आइडिया से परदे तक
ऐसी किताबें पसंद आती है, जिसमें खामखा आडंबर नहीं होता और किसी प्राथमिक शिक्षक की तरह बेसिक से शुरू कर खेल-खेल में समझाया जाता है। लेखक समझाते हैं कि उपन्यास या अन्य गद्य के पाठक किताबों में रुचि वाले पढ़ाकू लोग हैं, जबकि फ़िल्म तो कोई भी देख लेता है।
झाँसी की रानी
वह नवयुवती, जिन्होंने कभी कोई किताब नहीं लिखी थी, बंगाल से कम निकली थी, वह बुंदेलखंड से मालवा की यात्रा पर निकल पड़ी। लक्ष्मीबाई को झाँसी में जाकर ढूँढा, लोगों से कहानियाँ सुनी, दस्तावेज़ों से मिलान किए, सब परख कर फिर से अपनी किताब शुरू की
कश्मीरनामा
पाठकीय रुचि चरम पर होती है जब शेख़ अब्दुल्लाह और आजादी का समय आता है। यहीं से तमाम भ्रांतियों का निवारण भी होता है। और यहीं लेखकीय परीक्षा भी है कि निष्पक्ष रहें तो रहें कैसे?
बलमा हमार फियेट कार ले के आया है
मुज़फ़्फ़रपुर का चतुर्भुजस्थान एक बदनाम रेड लाइट एरिया रहा है। लेकिन वह अपने-आप में एक सांस्कृतिक केंद्र भी रहा जहाँ शरतचंद्र चटर्जी तक के संबंध रहे। मुन्नी बदनाम हुई जैसे गीतों का मूल रहा। प्रभात रंजन अपने लच्छेदार गद्य में उस इतिहास को बतकही अंदाज़ में सुनाते हैं
साली-बहनोई का रिश्ता अस्सी और काशी का
काशी का अस्सी कुछ लोग इसलिए उठाते हैं कि इसमें खूब छपी हुई गाली-गलौज पढ़ने को मिलेगी। ऐसे शब्द जो किताबों में कम दिखते हैं। मगर इस पुस्तक का दायरा कहीं अधिक वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक हो जाता है, जब हम इसे पढ़ कर खत्म करते हैं।