गांधी के यात्रा वृतान्त कम लोकप्रिय रहे। मगर उसे वह बहुत विनोद और सरलता से लिखते थे। बाइस वर्ष के विद्यार्थी गांधी जब लंदन से जहाज पर लौटे तो उस अनुभव को कुछ यूँ दर्ज़ किया
1888 ई. में उन्नीस वर्ष के मोहनदास लंदन पहुँच तो गए पर उन्हें लग गया कि लंदन के लायक उनके पास धन नहीं, तो छात्रवृत्ति की अर्जी देनी शुरू की। हालांकि यह छात्रवृत्ति उन्हें मिली नहीं।
महात्मा गांधी पहले विद्यार्थी मोहनदास थे। बाइस वर्ष की उम्र में एक विद्यार्थी का दिया साक्षात्कार अपने आप में अनूठा है। इसमें गांधी का अपरिपक्व रूप भी है, और परिपक्वता की झलक भी
दिल्ली में किसानों को लेकर जाना महेंद्र सिंह टिकैत का चरम बिंदु था। वहाँ राजनीति के संपर्क में आना उनके लिए कुछ हानिकारक भी रहा। लेकिन, वह दिन भी आया जब महेंद्र सिंह टिकैत का विरोध पेरिस पहुँचा। इस आखिरी खंड में उन घटनाओं पर बात
चीन में हुए बॉक्सर विद्रोह को दोनों पक्षों ने क्रूर कहा। उन्नीसवीं सदी के अंत में चीन में इतना रक्त बहा कि चीन एक बार फिर घुटनों पर आ गया। इस खंड में चर्चा है उसी क्रांति की
मेरठ किसान सत्याग्रह आज तक के सबसे लंबे सत्याग्रहों में है। इसी से महेंद्र सिंह टिकैत को वह ज़मीन भी मिली जिसके बदौलत वह दिल्ली कूच कर सके। इस खंड में चर्चा उसी आंदोलन की
जब गांधी पहली बार दक्षिण अफ़्रीका के नटाल कचहरी गए तो उन्हें पगड़ी उतारने कहा गया। इस घटना की खबर वहाँ अखबार में छपी जिसका शीर्षक था The Unwelcome Visitor। यह उसी खबर और गांधी के उत्तर का अनुवाद है।
महेंद्र सिंह टिकैत की लम्बे भाषणों में रुचि नहीं थी। उनका तरीक़ा था कि बात ऐसे हो जैसे गाँव के चौपाल में होती है। उन्होंने किसानों को बिना किसी राजनीतिक दल के सहारे अपनी बात रखने का गँवई हुनर दिया। इस खंड में चर्चा होगी ऐसे ही एक आरंभिक आंदोलन की।
भारत जैसे विशाल देश के किसानों को एक छत्र में लाना लगभग असंभव है। ऐसे प्रयास आज़ादी के पहले से होते रहे, किंतु सफल नहीं हुए। इस खंड में चर्चा होगी उन संगठनों की
किसान आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है। अस्सी के दशक में एक नाम उभरे – महेंद्र सिंह टिकैत। एक समय उन्होंने दिल्ली हिला कर रख दिया था। इस शृंखला के पहले खंड में किसान आंदोलनों का फ़्लैशबैक