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किताब गली
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किताबों की समीक्षा का ढर्रा बदल रहा है। अब दो पंक्तियों में भी पुस्तक की बात हो जाती है। मसालेदार और विवादित समीक्षाएँ भी दिखती है। धीर-गंभीर भी। उन सभी का लक्ष्य है किताबों की बातें करना। यह अच्छा हो कि उसका कोई फॉर्मैट न हो। लोग किताबों पर सहजता से बात करें। किताब गली ऐसा ही प्रयास है।
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आइडिया से परदे तक
ऐसी किताबें पसंद आती है, जिसमें खामखा आडंबर नहीं होता और किसी प्राथमिक शिक्षक की तरह बेसिक से शुरू कर खेल-खेल में समझाया जाता है। लेखक समझाते हैं कि उपन्यास या अन्य गद्य के पाठक किताबों में रुचि वाले पढ़ाकू लोग हैं, जबकि फ़िल्म तो कोई भी देख लेता है।
झाँसी की रानी
वह नवयुवती, जिन्होंने कभी कोई किताब नहीं लिखी थी, बंगाल से कम निकली थी, वह बुंदेलखंड से मालवा की यात्रा पर निकल पड़ी। लक्ष्मीबाई को झाँसी में जाकर ढूँढा, लोगों से कहानियाँ सुनी, दस्तावेज़ों से मिलान किए, सब परख कर फिर से अपनी किताब शुरू की
कश्मीरनामा
पाठकीय रुचि चरम पर होती है जब शेख़ अब्दुल्लाह और आजादी का समय आता है। यहीं से तमाम भ्रांतियों का निवारण भी होता है। और यहीं लेखकीय परीक्षा भी है कि निष्पक्ष रहें तो रहें कैसे?
बलमा हमार फियेट कार ले के आया है
मुज़फ़्फ़रपुर का चतुर्भुजस्थान एक बदनाम रेड लाइट एरिया रहा है। लेकिन वह अपने-आप में एक सांस्कृतिक केंद्र भी रहा जहाँ शरतचंद्र चटर्जी तक के संबंध रहे। मुन्नी बदनाम हुई जैसे गीतों का मूल रहा। प्रभात रंजन अपने लच्छेदार गद्य में उस इतिहास को बतकही अंदाज़ में सुनाते हैं
साली-बहनोई का रिश्ता अस्सी और काशी का
काशी का अस्सी कुछ लोग इसलिए उठाते हैं कि इसमें खूब छपी हुई गाली-गलौज पढ़ने को मिलेगी। ऐसे शब्द जो किताबों में कम दिखते हैं। मगर इस पुस्तक का दायरा कहीं अधिक वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक हो जाता है, जब हम इसे पढ़ कर खत्म करते हैं।
नीम का पेड़
आधा गाँव’ देश के विभाजन और ज़मींदारी प्रथा की समाप्ति के समय की कहानी है। कटरा बी आरज़ू देश में आपातकाल लगने के समय की कथा है। जबकि नीम का पेड़ इन दोनों काल-खंडों से गुजरते हुए समाजवाद के उदय की कथा है, जब एक दलित उठ कर संसद में पहुँच जाता है।