Nehru Mithak Satya Piyush Babele
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नेहरू मिथक और सत्य – पीयूष बबेले

एक आलोचना यह रहेगी कि जब आप किसी मरीज को कोई दवा दें, तो यह न कहें कि इस दवा में जादू है। इससे बेहतर दवा नहीं। यह अचूक है। बल्कि यह कहें कि इस दवा की यह हानियाँ हो सकती है, ये कमियाँ है, यह सौ प्रतिशत काम नहीं करती। ऐसे में मरीज को अधिक विश्वास होता है। लेखक कुछ स्थानों पर नेहरु को महामानव सिद्ध करने से बच सकते थे।
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Nadi Putra Ramashankar Singh
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सबका बेड़ा पार कराने वाले मल्लाहों का जीवन कैसा?

लेखक के अनुसार निषाद उत्तर प्रदेश के लगभग 25 प्रतिशत सीटों का भविष्य तय करते हैं। वहीं दूसरी तरफ़ एक पेशे के रूप में मछली मारना या केवट बनना घट रहा है। गैंगस्टर पूँजीवाद, माफ़िया खनन और कॉरपोरेट क्रूज़ चलने से निषादों के हाथ कुछ नहीं आ रहा।
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आलोचना का स्त्री पक्ष – सुजाता

पुरुषों के पढ़ने का तर्क मेरी नज़र में तो यही है कि किताबों के अंबार लगाने वाले पुरुषों की भी स्त्रीवाद पर कितनी समझ है? यह तो ऐसा क्षेत्र है जहाँ शंकराचार्य से सिगमंड फ्रायड तक उलझ गए।
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