कई दिनों से एक ही किताब पढ़े जा रहा था। यह पृष्ठ संख्या 965 से शुरू होकर 1 पर खत्म होने वाली किताब जून में पढ़नी शुरू की। सौ पृष्ठों के बाद जुलाई आ गया और मैं यात्रा पर चला गया। अगस्त में वापस लौटा तो फिर से शुरू करनी पड़ी।
एक चेतावनी- ‘अगर आपने सौ अंग्रेज़ी किताबें नहीं पढ़ी तो यह किताब न उठाएँ’
अठहत्तर पढ़ ली है, तो बाइस और पढ़ कर उठाएँ।
पहला कारण कि मोटी है, दूसरा कि पॉलिश से अनूदित है, तीसरा कि नोबेल पुरस्कृत लेखक की है, चौथा कि लगभग सौ से अधिक पात्र हैं, जिनके नाम क्लिष्ट हैं, पाँचवा कि अठारहवीं सदी के कुछ कम-सुने ऐतिहासिक पात्र पर है, छठा कि…, सातवाँ की…
यह किताब है क्या (उनके लिए जो यह किताब नहीं पढ़ेंगे)-
फ़र्ज़ करिए। फ़र्ज़ ही करिए क्योंकि मुमकिन कतई नहीं। यह कि तीनों इब्राहिमी धर्म जिनका मूल एक है, वे एक हो जाएँ। यहूदी, ईसाई और मुसलमान एक हो जाएँ। यहूदी इस बात पर मान जाएँ कि यीशु मसीह वाकई एक मसीहा थे। ईसाई यह मान जाएँ कि पैगम्बर भी थे। बाकी, कुरान, बाइबल और तोहरा तो एक जैसे ही हैं। क्या आप जानते हैं कि इतिहास में एक ऐसा सनकी किरदार हुआ जिसने यह कोशिश की, और वाकई यह होने लगा? क्या आप फ्रैंक जैकब नामक व्यक्ति का नाम सुन चुके हैं?
यह पुस्तक उसी जैकब पर आधारित है।
किताब में ख़ास क्या (उनके लिए जो यह किताब पढ़ेंगे) –
यह सुंदरी जब लिखती है, तो पहले तमाम किताब पढ़ डालती है, यात्राएँ कर डालती है, स्केच बना डालती है, उसके बाद जब लिखती है…
तो उसके पात्र अगर सपने भी देखते हैं तो लगता है कि हाँ, उस जैकब ने वाकई यही सपना देखा होगा। उसके मित्र नाहमन ने जो चिट्ठी लिखी, उसमें यही लिखा होगा। उस यहूदी-आकर्षित ईसाई मोलिवडा ने वाकई जैकब से यही कहा होगा। गिरजाघर के अंदर यहूदियों और जैकब-वादियों की जिरह कुछ यूँ ही हुई होगी।
यह सात खंडों/पुस्तकों में विभाजित एक पुस्तक है।
यह शुरू होती है जब एक विवाह में ‘सच्चे आस्तिक’ लोग एकत्रित हैं, और परिवार की सबसे बूढ़ी औरत बस मरने ही वाली है। उसे तब तक जिंदा रखना होगा, जब तक शुभ-कार्य संपन्न नहीं होता। उस बूढ़ी येन्ते की आत्मा मृत्यु और जीवन के मध्य अटखेलियाँ खाती ऊपर आकाश में पहुँच जाती है, और बनता हुआ इतिहास देखती है।
वह देखती है कि एक जैकब महोदय हैं जो कहते हैं कि यहूदियों पर हो रहे अत्याचार की एक वजह यहूदी खुद भी तो हैं। वे कब तक यह तालमुद लेकर घूमते रहेंगे, जो वह इज़रायल से भागते वक्त लाए थे। जिसमें यह लिखा था कि ईसाई बच्चों का खून बहाना होगा। और ईसाई?
वे तो यहूदियों को निम्न से भी निम्न मानते हैं। अछूत। पापी। यीशु के गुनाहगार। शातिर। यह मानते हुए वे ईसाई खुद कितने नीचे गिर जाते हैं?
जैकब को तुर्क पसंद है। वह पहले याकूब बन जाता है। मुसलमान बन कर कुरान पढ़ता है। यह यहूदी जैकब का पहला धर्मांतरण था। मगर मुसलमानों के हाथ यूरोप तो था नहीं। न पोलैंड, न रूस।
वह पहले यहूदियों को कैथॉलिक बनाने की योजना बनाता है। एक बार उन्होंने यीशु को मसीहा मान लिया, फिर मुसलमान तो यीशु को मसीहा मानते ही हैं।
मगर जैकब को यह भी लगता है कि उसकी बात तो लोग तभी मानें जब वह खुद एक मसीहा हो। सर्वज्ञानी हो। उसके अनुयायी हों। बारह प्रेषित (apostle) हों। वह ये पूरा आडंबर रच लेता है।
जैकब क्या इसे संभाल पाएगा? ऐसे कल्ट में कब सामूहिक मैथुन शुरू हो जाए, सनक सवार हो जाए, किसने देखा है?
यह किताबों की दुनिया, जो दुनिया को चलाने लगी, बड़ी ही अजीब बन गयी। न जाने कितने क्रूसेड, कितने पोग्रोम हुए। इस सवाल को उठाए तो उठाए कौन? और किस किताब से उठाए?
पुस्तक की आखिरी पंक्ति है,
“जिस व्यक्ति ने भी मसीहा के मामलों पर काम किया, असफल लोगों पर भी, सिर्फ़ कहानी कहने के लिए भी, उसके साथ भी उसी तरह व्यवहार होगा जैसा प्रकाश के शाश्वत रहस्यों का अध्ययन करने वाले के साथ होता आया है”
Author Praveen talks about the book ‘Books of Jacob’ by Nobel laureate Olga Tocarzcuk based on a controversial historical prophet Frank Jacob.
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