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अरब के मशहूर पत्रकार जमाल अहमद खाशक़्जी इस्तांबुल में अपनी प्रेमिका के साथ कॉफी पी रहे थे। वह अपने दूसरे विवाह को लेकर उत्साहित थे। वह अपने मित्रों के बधाई संदेश का उत्तर दे रहे थे और साथ-साथ वाशिंगटन पोस्ट के लिए एक लेख पूरा कर रहे थे।
वह लिख रहे थे कि भविष्य का अरब कैसा होगा। महिलाओं के अधिकार कैसे होंगे? पश्चिम एशिया के देशों में आपसी तकरार कब और कैसे खत्म होगी?
अपने विवाह से संबंधित काग़ज़ातों के लिए वह इस्तांबुल के दूतावास में दाखिल हुए। उन्होंने अपनी मंगेतर को कहा कि अगर दो घंटे में नहीं लौटा तो अमुक मंत्री को खबर कर देना। वह दो घंटे तो क्या कभी वापस नहीं लौटे!
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दुगान के कानों में यह खबर पहुँची, तो सऊदी दूतावास की ख़ुफ़िया रिकॉर्डिंग सुनी गयी।
जब दिन के डेढ़ बजे खाशोक़्जी अंदर दाखिल हुए तो एक व्यक्ति ने अरबी में कहा था, ‘आ गया बलि का बकरा!’
खाशोक़्जी ने कहा, ‘यह आपलोग क्या कह रहे हैं?…मुझे इंजेक्शन क्यों दे रहे हैं? रुकिए! मैं रियाध जाने को तैयार हूँ’
थोड़ी देर बाद ये आवाज़ें बंद हो गयी और एक आरा मशीन की आवाज़ें आने लगी।
एक व्यक्ति कह रहा था, ‘इसकी लाश को कैसे काटें? पहले टाँग काट कर अलग कर दें या गले से शुरू करें?’
इस ऑडियो के सार्वजनिक होते हुए दुनिया भर में खबरें प्रसारित हुई- पत्रकार जमाल खशोक़्जी की इस्तांबुल के सऊदी दूतावास में दिन-दहाड़े निर्मम हत्या।
जब वाशिंगटन पोस्ट ने जमाल का आखिरी लेख प्रकाशित किया तो सऊदी में कुछ लोगों ने कहा- “अच्छा हुआ, मार दिया गया। ईरानियों और तुर्कों का चमचा था कमीना! ऐसी सजा देने की हिम्मत तो एक अपने मोहम्मद में ही है”
मोहम्मद यानी मोहम्मद बिन सलमान। सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ का बेटा। दुनिया के सबसे ताकतवर इंसानों में एक।
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इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त मोहम्मद की उम्र महज 37 वर्ष है, लेकिन वह ऐसे शोध में निवेश कर रहे हैं, जिससे मनुष्य की उम्र बढ़ायी जा सकती है। मोहम्मद की इच्छा है कि अपने पिता की मृत्यु के बाद कम से कम दो-तीन सौ वर्ष सऊदी पर राज करें।
यह कोई मज़ाक़ की बात नहीं, मोहम्मद वाकई अरबों डॉलर निवेश कर सऊदी के उत्तर पूर्व वीराने में एक छोटा सा राज्य ही बना रहे हैं। विज्ञान के सभी आधुनिकताओं से भरपूर, जहाँ के नागरिक रोबोट होंगे, जहाँ गाड़ियाँ हवा में उड़ा करेंगी, और समंदर में जलपरियाँ घूमेगी। यह कहा जाएगा नियोम (NEOM)। इसका निर्माण यूरोप, जापान और अमरीका की तमाम कंपनियाँ कर रही हैं। इस स्थान पर लोगों की आयु बढ़ाई जाएगी। इसके लिए चाहे जो भी कीमत लगे।
लेकिन, यह सब करने के लिए मोहम्मद को ज़रूरत है असीम शक्ति और धन की। हालाँकि सऊदी के शहज़ादे के पास तेल से कमाया अकूत धन और ठीक-ठाक ताक़त पहले से है, लेकिन अभी भी कुछ बाधाएँ हैं। तेल के दाम घटते-बढ़ते रहते हैं, कई विदेशी कंपनियों पर निर्भरता है, और वह कोई अकेले शहज़ादे तो हैं नहीं। सऊदी में तो घर-घर शेख़ हैं, और राजपरिवार की इतनी शाखाएँ हैं, कि न जाने कब कौन ऊपर चढ़ जाए। कब अरब में क्रांति आ जाए। कब विदेशी हमले हो जाएँ। कब जनता और मीडिया का रुख़ बदल जाए। मोहम्मद को फूँक-फूँक कर कदम रखना होता है।
मसलन एक दफ़ा मालदीव के एक द्वीप-समूह में एक भव्य निजी उत्सव का आयोजन हुआ। चूँकि मालदीव सरकार का आदेश है कि घरों की ऊँचाई पेड़ों से अधिक न हो, इसलिए पहले ऊँचे-ऊँचे पेड़ ही उठा कर ले आए गए। फिर उसके बराबर ऊँचाई के घर बने। दुनिया की तमाम बिकनी मॉडल वहाँ पहले आयीं, और उनका यौन-रोग परीक्षण हुआ। उसके बाद आए मोहम्मद और उनके साथी। लेकिन, जब मीडिया में खबर लीक हो गयी कि इस्लाम देश सऊदी का शहज़ादा मालदीव में अय्याशी कर रहा है, यह सारा सब्ज़बाग़ छोड़ कर उन्हें आना पड़ा। वह अपनी गद्दी पर ज़रा सी भी आँच नहीं आने दे सकते।
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आज सोशल मीडिया का ज़माना है। ट्विटर और फ़ेसबुक पर लोगों की छवि बनती-बिगड़ती है। मोहम्मद बिन सलमान को भी अगर सऊदी की गद्दी चाहिए तो दुनिया के अरबों मुसलमानों का चहेता बनना होगा। ख़ैर, यह काम भी मुश्किल नहीं अगर धन हो। मोहम्मद ने हज़ारों एकाउंट खुलवा लिए, जिनमें कई तो पहले से वेरीफाइड भी थे। वे सभी मोहम्मद की लॉबिंग करने लगे।
एक रहस्यमय ट्विटर यूजर था, जो मोहम्मद की ही बदनामी करने लगा। रोज उनके विरोध में एक ट्वीट। उस यूज़र का अता-पता कैसे किया जाए? मोहम्मद ने ट्विटर के अमरीका ऑफिस में ही एक सऊदी का अधिकारी ढूँढ लिया, और उसे खरीद लिया!
जब एफबीआई तक यह खबर पहुँची, तो उन्होंने ट्विटर पर नकेल कसी। वह व्यक्ति वापस सऊदी भाग आया, और उसे मोहम्मद ने वहीं एक आइटी प्रोपोगैंडा में रख लिया। एक समय तो ऐसा आया जब डोनाल्ड ट्रंप सऊदी आए, तो स्वागत में यह व्यक्ति भी था, जिसे कभी एफबीआई ढूँढ रही थी!
डोनाल्ड ट्रंप के दामाद जैरेड कुश्नर और मोहम्मद बिन सलमान जल्द ही अच्छे दोस्त बन गए। उन्होंने सोचा कि मिल कर कुछ बड़ा करते हैं। भले ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद मुसलमानों के लिए अमरीका में बाधाएँ खड़ी करते रहे, मगर सऊदी के बिन लादेन भाइयों से तो उनका पुराना रिश्ता था। ओसामा बिन लादेन का एक भाई तो बाक़ायदा ट्रंप टावर में रहा था!
कुछ बड़ा मतलब क्या?
पहला तो यह कि सऊदी का काया-कल्प हो जाए। सिर्फ़ तेल पर निर्भरता न रहे, निवेशों का दायरा बढ़ जाए। आइटी कंपनियों में, दुनिया के मैनुफ़ैक्चरिंग और इंफ़्रास्ट्रक्चर उद्योगों में, युद्ध हथियारों के बाज़ार में, खनिजों में, स्वास्थ्य में, शोध में, विश्वविद्यालयों में। मोहम्मद बिन सलमान का विज़न 2030 इस कायाकल्प की ओर बढ़ रहा है।
दूसरा यह कि पश्चिम एशिया पर धौंस जमायी जाए। यमन पर हमला कर दिया जाए। क़तर पर पाबंदी लगा दी जाए, पाकिस्तान को जूतियों तले रखा जाए। लेबनान के तो प्रधानमंत्री को ही रस्से से बाँध दिया गया।
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लेबनान सऊदी का पड़ोसी देश है, जिसके पास प्रतिभा तो भरपूर रही, मगर तेल नहीं था। जब सऊदी के पास तेल और पैसा आया, तो उसे खड़ा करने में लेबनान की प्रतिभाएँ काम आयी। ज़ाहिर है नौकर बन कर ही, मगर काम तो आयी।
लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी के पिता भी सऊदी अरब में काम कर ही अमीर बने। दोनों बाप-बेटे जो बारी-बारी से प्रधानमंत्री बने, कहीं न कहीं सऊदी के एहसान और ताक़त तले दबे थे। सऊदी के शाह जब चाहे उन्हें अपने दरबार में बुलवा सकते थे। डाँट-डपट सकते थे। यह ध्यान रहे कि लेबनान में ये लोकतंत्र द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री थे, और अच्छा-ख़ासा करिश्मा भी था, लेकिन सऊदी के सामने कुछ नहीं।
एक मामूली सी लगती बात हुई। साद हरीरी ने शिया गुटों और ईरान से कुछ समझौते करने शुरू किए। यह बात मोहम्मद बिन सलमान को क़तई पसंद नहीं आयी। उन्होंने लेबनान के प्रधानमंत्री को बुलवाया, कथित रूप से लात-जूते भी मारे गए, और आखिर ज़बरदस्ती इस्तीफ़ा दिलवाया गया। डरा-धमका कर विडियो संदेश दिलवा कर।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान मलेशिया में एक इस्लामी देशों सम्मेलन जाने लगे, तो मोहम्मद बिन सलमान ने फ़ौरन बुलवाया। दरअसल इस सम्मेलन में तुर्की, ईरान आदि देश सऊदी के ख़िलाफ़ गोलबंदी कर रहे थे। पाकिस्तान तो काफ़ी हद तक सऊदी के टुकड़ों पर पल रहा है, क्योंकि उसके हज़ारों लोग वहीं से पैसा भेजते हैं।
मोहम्मद बिन सलमान ने इमरान ख़ान से कहा, “अगर आपने मलेशिया में कदम रखा, सारे पाकिस्तानियों को धक्के मार कर पाकिस्तान भेज दूँगा। सारी मदद बंद कर दी जाएगी”
उसी शाम इमरान ख़ान ने घोषणा कर दी कि वह मलेशिया नहीं जा पाएँगे।
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इन सबसे इतर अगर मोहम्मद को ख़तरा था, तो अपने परिवार से ही था। सऊदी के रईसों, अपने भाइयों और चाचाओं से। उनके पास अरबों-खरबों की दौलत थी, दुनिया भर में निवेश थे, और बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों तक पहुँच थी। उन्हें हिलाना मामूली बात नहीं थी।
बहरहाल सऊदी के एक शिया मौलाना शेख़ निमर-अल-निमर भी अपनी साख बढ़ा रहे थे। वह मोहम्मद बिन सलमान की जम कर आलोचना करने लगे। एक दिन निमर और उनके सैंतालिस अनुयायियों का सरे आम गला काट दिया गया। बात खत्म।
इसी तरह एक दिन सऊदी के रिट्ज होटल में अचानक राजपरिवार से जुड़े तमाम रईसों का जमघट लगने लगा। अंतर यह था कि ये किसी उत्सव में नहीं आए थे, इन्हें ज़बरदस्ती पकड़ कर लाया गया था। इन सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। इनसे अरबों की वसूली की गयी। बैंक खाते जब्त कर लिए गए। जिसने विरोध किया, उसे ऐसा गायब किया गया कि आज तक कहीं उनके निशान नहीं मिले।
इन सब के बावजूद मोहम्मद बिन सलमान दुनिया के सबसे सम्मानित व्यक्तियों में हैं। वह जब उद्योगपतियों को बुलाते हैं तो बिल गेट्स से जेफ़ बेजोस तक को सुनना पड़ता है। राष्ट्राध्यक्षों से सीधे फ़ोन पर बात होती है। अंतरराष्ट्रीय डील पर हस्ताक्षर होते हैं। उनकी मुस्कान देख कर लगता ही नहीं कि यह व्यक्ति किसी के शरीर को आरा-मशीन से कटवा कर आ रहा है।
Author Praveen Jha narrates a summary from book Blood and Hope by Bradley Hope and Justin Scheck.
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