प्रवीण कुमार झा कथेतर रुचि के लेखक हैं। गिरमिटिया इतिहास पर उनकी शोधपरक पुस्तक ‘कुली लाइंस’ चर्चित रही। संगीत इतिहास पर आधारित पुस्तक ‘वाह उस्ताद’ को कलिंग लिट्रेचर फ़ेस्टिवल 2021 ने ‘बुक ऑफ द यर’ से सम्मानित किया। उन्होंने इतिहास पुस्तकों के अतिरिक्त लघु यात्रा-संस्मरण भी लिखे हैं और उनके स्तंभ प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। प्रवीण का जन्म बिहार में हुआ और वह भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों से गुजरते हुए अमेरिका और यूरोप में रहे। वह सम्प्रति नॉर्वे में विशेषज्ञ चिकित्सक हैं।
लार्ड मकाले का एक भाषण ख़ासा विवादित रहा, और सोशल मीडिया युग में उसकी छवियाँ भी घूमती रहती है। पढ़ कर देखते हैं कि वास्तव में मकाले ने minutes on education 1835 में कहा क्या था।
कहानियाँ किसी रोज़मर्रा की घटना से भी बुनी जा सकती है अगर कहने का शऊर हो। जब यह कहानी बाड़मेर जैसी जगहों से उपजती है तो एक अलग ही भँवर रचती है। किशोर चौधरी लिखित पुस्तक कालो थियु सै पर बात
हमारी पीढ़ी पौराणिक कथाओं से क्या सीख सकती है? आज के समाज की स्वतंत्र स्त्रियाँ क्या महाभारत में ऐसी माँएँ तलाश सकती हैं। ऐसे समानांतर जहाँ स्त्री ने स्वयं ऐसी नियति चुनी हो? आशुतोष गर्ग की पुस्तक ‘4 सिंगल मदर्स’ पर चर्चा
राजनटनी और अम्बपाली के बाद उसी विषय पर गीता श्री की तीसरी पुस्तक एक पूरक बन जाती है। हसीनाबाद बस्ती से निकल कर सोनपुर मेले में नाचने वाली गोलमी के मंत्री बनने तक की यात्रा
हिरोशिमा पर गिरा एटम-बम हज़ारों जानें ले गया, मगर कुछ लोगों का यह बाल-बाँका भी नहीं कर सका। उन्होंने यह मंजर अपनी आँखों से देखा, और दशकों तक हिरोशिमा में ही रहे। पढ़ते हैं हिरोशिमा बम त्रासदी की कहानी, उन्हीं की ज़बानी
लॉर्ड्स जिसे क्रिकेट का मक्का कहा जाता है, वहाँ के हॉल ऑफ़ फेम में मात्र दो भारतीयों के तस्वीर है। वह तस्वीर सचिन तेंदुलकर या सुनील गावस्कर की नहीं है। ना ही महेंद्र सिंह धोनी या विराट कोहली की। लॉर्ड्स के इस मैदान की यात्रा करते हुए क्रिकेट का समूचा इतिहास जैसे सामने खड़ा हो जाता है। चलते हैं उस मुँडेर पर, जहां भारत के एक कप्तान ने अपनी टी-शर्ट उतार कर लहरायी थी
फ्रांज़ काफ़्का ने मरने से पहले कहा था कि उनकी अप्रकाशित कहानियाँ जला दी जाएँ। लेकिन जब वह छपी तो दुनिया ने उसे महान कृतियों में माना। ऐसा क्यों? आज बात काफ़्का की कहानियों की।
विज्ञान गल्प लिखने वाले कथाकार को नोबेल पुरस्कार मिलना कुछ अलग घटना थी। लेकिन इस दशक में अगर कोई कथाकार कृत्रिम प्रज्ञा पर उपन्यास लिखता है, तो उसकी दृष्टि भविष्य की है। लीक से हटकर है। आज जापानी मूल के दो लेखकों की किताबों पर बात