1894
22 जून, शुक्रवार
जयशंकर और भाई को चिट्ठी लिखी। ‘दोहन’ काव्य पढ़ा। कुछ कोर्ट फैसलों का अनुवाद।
23 जून, शनिवार
तैयब का टेलीग्राम आया। सोमवार को आएगा।
24 जून, रविवार
अब्दुल्लाह के साथ पिकनिक गया। वहाँ कुछ लोग गुंडागर्दी करने लगे। भाई की भगवद् गीता पर लंबी चिट्ठी पढ़ी। पॉल शाम को भारतीयों की स्थिति पर चर्चा करने आया था। बर्न्स से साझेदारी की बात की।
25 जून, सोमवार
भारतीयों के मतदान बिल पर चिट्ठी तैयार की। गीता पढ़ी।
26 जून, मंगलवार
तैयब की चिट्ठी मिली कि दादा अबदुल्लाह से बात करेंगे।
27 जून, बुधवार
स्पीकर को टेलीग्राफ किया कि हमारी याचिका पर कुछ विचार हुआ या नहीं। जवाब मिला कि याचिका देर से आयी थी। मैंने अनुरोध किया कि याचिका पढ़ी जाए।
28 जून, गुरुवार
अब्दुल्लाह, रुस्तम जी, मैं और दो कुली मारित्जबर्ग गए। लेबिस्टर और एस्कॉम्ब ने कहा कि उन्हें हमसे सहानुभूति है लेकिन मदद नहीं कर पाएँगे। हमारी याचिका पढ़ी गयी, और कई भारतीय वहाँ मौजूद थे।
29 जून, शुक्रवार
ट्रेन से डर्बन गया। एस्कॉम्ब भी उसी ट्रेन में थे। कहा कि बिल पास करने की वजह यही है कि भारतीयों को रोका जाए। न्याय की उम्मीद नहीं।
30 जून, शनिवार
पॉल मिलने आया तो मैंने कहा कि भारतीयों की बात लेकर लंदन जाए। और तब तक इस बात में भी सहयोग दे कि अफ्रीका के भारतीय शराब पीना त्याग दें।
1 जुलाई, रविवार
लगभग सौ भारतीय मिलने आए। मैंने लगभग 45 मिनट बात की। समझाया कि हमें बोलना कम है, काम अधिक करना है। मुझे लगता है कि लोग मेरी बात समझे। डॉ. स्ट्राउड को लंबी चिट्ठी लिखी।
2 जुलाई, सोमवार
बिल तीसरी बार पढ़ा गया। हम भारतीयों ने जम कर विरोध किया। मि. मेडन ने हमारा साथ दिया और कहा कि ये भारतीय मतदाता गोरे मतदाताओं से कहीं बेहतर हैं।
3 जुलाई
विधान परिषद और दोनों सदनों के लिए याचिका तैयार की। गवर्नर को टेलीग्राफ कर अपॉइंटमेंट मांगा। बर्ड की चिट्ठी मिली।
4 जुलाई
बर्ड और तैयब की चिट्ठी आई। जवाब भेज दिया।
5 जुलाई
कैम्पबेल से चिट्ठी मिली कि हमारी याचिका परिषद में नामंजूर हुई। मैंने दुबारा चिट्ठी तैयार की।
6 जुलाई
बर्ड ने कहा कि याचिका की दो कॉपी बनाऊँ, और दोनों पर असली हस्ताक्षर डालूँ।
7 जुलाई
नटाल मर्करी को मैसूर के संविधान पर लेख भेजा। दादाभाई को दस पाउंड भेजे।
8 जुलाई
जयशंकर और रफ़ आए थे। कुछ भारतीय शिक्षित युवा जमा हुए। उनसे राजनैतिक गतिविधि, शराब की आदत और आत्म-सम्मान पर चर्चा हुई।
9 जुलाई
‘द वेजिटेरियन’ पत्रिका मिली। उसमें एनी बेसेंट का शाकाहार पर लेख अच्छा लगा।
10 जुलाई
मिस बेसेंट का लेख नटाल मर्करी को भी भेज दिया। गृह मंत्रालय की याचिका तैयार की।
11 जुलाई
मेरी चिट्ठी आज नटाल मर्करी में छपी।
12 जुलाई
याचिका पर काम किया।
13 जुलाई
दादाभाई से याचिका संबंध में सुझाव मांगे।
14 जुलाई
रामसै के बेटे ने कहा वेरुलम याचिका पर दो हज़ार भारतीयों के हस्ताक्षर लेकर आएगा। ‘द एडवरटाइजर’ में भारतीयों के विरुद्ध लेख छपा है, जो किसी रामनाथ ने लिखा है।
15 जुलाई
पॉल ने ग्यारह भारतीयों को कॉपी भेजी। पॉल अच्छा काम करता है।
16 जुलाई
मुझे उम्मीद नहीं थी, लेकिन जीसुब 1500 भारतीयों के हस्ताक्षर ले आया। याचिका डाकघर भेज दी लेकिन वजन अधिक होने की वजह से लिफाफा लौटा दिया। अब्दुल्लाह को कहा कि मुझे जाने दें। रहने-फर्नीचर का खर्च भी शायद दें। पॉल परेशान है कि मुझे इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए।
17 जुलाई
बीच ग्रोव में आठ पाउंड में समंदर किनारे घर मिल गया। याचिका ट्रेन की एजेंसी से भिजवा दी।
18 जुलाई
आज कुछ नहीं कर सका।
19 जुलाई
घर ढूँढता रहा। अब्दुल्लाह ने कहा कि उनका एक कमरा चार पाउंड में ले लूँ।
20 जुलाई
राम्से को चिट्ठी लिखी। बेसेंट के लेख के विषय में भी बताया।
– मोहनदास करमचंद गांधी की डायरी
Author Praveen Jha translates some diary entries of Mohandas K Gandhi from June-July 1894 in South Africa