अली बोमा ये – एक मुक्केबाज़ की दास्तान

MuhammedAli
MuhammedAli
मुक्केबाज़ मुहम्मद अली कभी कैशियस क्ले जूनियर हुआ करते थे। किस तरह यह काला अमरीकी कभी राष्ट्रद्रोही कहा गया, और किस तरह उसने ओलंपिक स्वर्ण जीतने से लेकर हैवीवेट चैंपियन बनने की यात्रा की। एक चिर विद्रोही जो अपने देश ही नहीं, दुनिया का चहेता बन गया


ओलंपिक गोल्ड 

मोहम्मद अली से मेरा पहला परिचय स्कूल की अंग्रेज़ी किताब में एक कहानी ‘ओलंपिक गोल्ड’ से हुआ। इस कहानी में कैसियस क्ले नामक एक काला मुक्केबाज़ रंगभेद से हताश होकर अपना ओलंपिक स्वर्ण ओहायो नदी में फेंक देता है। यही कैसियस क्ले बाद में मोहम्मद अली नाम से मशहूर हुए।

मुझे बाद में मालूम पड़ा कि यह कथा ग़लत थी। इसे मुहम्मद अली के आत्मकथा में उनके सहलेखक रिचर्ड डरहम ने रोचकता के लिए दर्ज़ कर दिया। मुहम्मद अली ने बाद में स्वयं कहा कि उन्होंने कभी यह मेडल नदी में नहीं फेंका, बल्कि यह कहीं गुम हो गयी। मुहम्मद अली का जीवन ऐसे कई गढ़ी गयी किंवदंतियों से बना है, जबकि उनके जीवन में कई रोचक पहलू छुपे हैं, जिनकी चर्चा कम होती है। 

एक अफ्रीकी गुलाम परिवार का वंशज जिसके दादा ने एक मामूली बात पर एक व्यक्ति के सीने में गोली दाग दी थी। जिसकी माँ गोरों के घर में नौकरानी का काम करती थी। उस कैसियस क्ले जूनियर ने बारह वर्ष की उम्र में कहा था-

“देखना माँ! एक दिन पहाड़ी पर मेरा एक लाख डॉलर का बंगला होगा, जिसके आगे तमाम चमचमाती गाड़ियाँ लगी होगी, कई सेवक होंगे। एक घर मैं आपको दूँगा, एक भाई को। एक चौथाई मिलियन डॉलर मैं बैंक में रखूँगा, अगर कहीं कोई अचानक ज़रूरत पड़ जाए।”

माँ ओडेसा हँस कर कहती, “और यह होगा कैसे?”

इसका उत्तर भी अगले ही महीने मिल गया, जब कैसियस क्ले की साइकल चोरी हो गयी! 

कैसियस इस चोरी से हताश था, कि तभी एक पुलिस वाले दिखे- जोस मार्टिन। वह उससे बात करते हुए एक हॉल पहुँचे, जहाँ वह खाली वक्त में मुक्केबाज़ी का प्रशिक्षण देते थे।

उन्होंने कहा, “ठीक है। मैं देखता हूँ कि तुम्हारी साइकल कैसे मिल सकती है”

कैसियस ने कहा, “मुझे साइकल नहीं चाहिए। क्या आप मुझे मुक्केबाज़ी सिखाएँगे?”

उस दिन किसी के भाग्य में साइकल आया, और किसी के भाग्य में ओलंपिक स्वर्ण की सीढ़ी। ठीक पाँच वर्ष बाद वह अपने से दस वर्ष बड़े मुक्केबाज़ को फाइनल में हरा कर शिकागो के गोल्डन ग्लव्स टूर्नामेंट जीत गया। वहीं शिकागो में उसे किसी ने एक कैसेट पकड़ाया कि घर जाकर सुनना। इस कैसेट ने मुक्केबाज़ के जीवन पर एक स्थायी छाप छोड़ दी। ‘नेशन ऑफ इस्लाम’ नामक समूह के मुखिया एलिजा मुहम्मद अमरीकी कालों को कह रहे थे- 

“गोरों का स्वर्ग कालों के लिए नरक है”

(White man’s heaven is Black man’s hell)

अगले ही वर्ष कैसियस क्ले का चयन रोम ओलंपिक के लिए हो गया। रोम में कई मुक्केबाजों को धूल चटा कर, रूसी चैंपियन शातकोव के दोनों आँख सूजा कर जब वह फाइनल में पहुँचा, तो मुकाबला पोलैंड के सरताज पित्रजिकोव्स्की से था।

पहले राउंड में कैसियस को दो तगड़े बायें हाथ पड़े, मगर वह अड़ा रहा। दूसरे राउंड में पुनः बायें हाथ के कई प्रहार पड़े, जिसके जवाब में कैसियस का एक दायाँ सीधा पसलियों पर जाकर लगा। तीसरे राउंड में कैसियस ने ताबड़तोड़ प्रहार शुरू किए। प्रतिद्वंद्वी के मुँह और नाक से बुरी तरह रक्त बहने लगा।

अठारह वर्ष का अमरीकी मुक्केबाज़ ओलंपिक चैंपियन बन चुका था।

हेवीवेट चैंपियन

अमरीका में ओलंपिक से कहीं अधिक रुतबा और पैसा तो हेवीवेट चैंपियन का होता है। अब कैसियस क्ले को जल्दी से वह लाखों डालर वाला स्वप्न पूरा करना था।

उसने सबसे पहले एक व्यवसायी मैनेजर तलाशा। एंजेलो डंडी की लुइविले के रईसों में साख थी, और वह जानते थे कि कैसियस क्ले उन्हें करोड़ों डॉलर दिला सकता है।

अर्जेंटीना के भारी-भरकम लंबे कद के मुक्केबाज़ अलेक्स मिटेफ़ से मुकाबला तय हुआ। कैसियस ने खेल से पहले ही कह दिया,

“छह राउंड में मिटेफ़ खत्म!”

ठीक छठे राउंड में रिंग में नाचते हुए कैसियस ने पहले बायाँ पंजा और फिर सीधे नाक पर ऐसा दायाँ मुक्का मारा कि मिटेफ़ चित हो गया। कैसियस चिल्लाया,

“इन छोटे-मोटे मुक्केबाजों को सामने से हटाओ। कोई दमदार मेरे सामने लाओ”

वह जल्द ही कई मुक्केबाजों को हरा कर हेवीवेट सारणी में चौथे स्थान पर पहुँच गया। जहाँ एक तरफ़ वह मुक्केबाज़ी में आगे बढ़ रहा था, वहीं उन दिनों एक पत्रिका उसके हाथ आ जाया करती- ‘मुहम्मद स्पीक्स’। यह पत्रिका काले मुहल्लों में मुफ्त बाँटी जाती जिसमें इस्लाम को रंगभेद से मुक्ति का मार्ग बताया जाता। उन्हीं दिनों मार्टिन लूथर किंग जूनियर अहिंसक आंदोलन की बात कर रहे थे, लेकिन इस पत्रिका में उन्हें एक गद्दार और गोरों का चमचा कहा गया था। मुक्केबाज़ कैसियस को भी लगने लगा कि अहिंसा से कुछ हासिल नहीं होगा। ख़ास कर जब 1962 में वह एक रेस्तराँ में सूट-बूट पहने एक व्यक्ति से मिला। उसने हाथ बढ़ा कर कहा-

“मैं, मैल्कम एक्स! नेशन ऑफ इस्लाम से। आप कैसियस क्ले हैं न?”

कैसियस क्ले (रैंक 4) बनाम डॉग जोंस (रैंक 3), 1963 

मैडिसन स्क्वायर गार्डन में उन्नीस हजार लोग देखने आए थे। इसके अलावा तैंतीस शहरों में इसे डेढ़ लाख लोग स्क्रीन पर देख रहे थे। यह उन दिनों अविश्वसनीय था।

कैसियस हर मुकाबले से पहले खुद ही एक कविता लिखता। इस बार उसने लिखा-

People came to see from all around

To see Cassius hit the ground

Some get mad, some lose their money

But Cassius is still as sweet as honey

बहरहाल पहले ही राउंड में जोंस ने सर पर ऐसा मुक्का मारा कि कैसियस रस्सियों पर जाकर गिरा, और जैसे-तैसे संभला। अगले राउंड से कैसियस ने फिर तेजी से उछलना और नाचना शुरू कर दिया, जिससे जोंस के लिए मारना बहुत मुश्किल होता गया। नौवें राउंड में कैसियस ने 22 मुक्के मारे, और दसवें में 101! मगर जोंस अड़े रहे।

ऐसा लग रहा था कि यह ड्रॉ करार दिया जाएगा, मगर निर्णायकों ने कैसियस को विजेता घोषित कर दिया।

उसी वर्ष एक खबर अमरीका में घूमने लगी कि एलीजा मुहम्मद ने ‘नेशन ऑफ इस्लाम’ में कई युवतियों से जबरन यौन संबंध बनाया। ख़ास कर एफबीआई इसे प्रचारित कर रही थी। हालाँकि यह ख़बर ग़लत नहीं थी, और इस कारण मैल्कम एक्स ने भी खुद को ‘नेशन ऑफ इस्लाम’ से अलग कर लिया। मगर कैसियस क्ले, जो स्वयं अब कई लड़कियों के साथ रात बिता चुका था, उसे इस ख़बर ने ख़ास प्रभावित नहीं किया। 

एफबीआई ने क्ले को निशाने पर ले लिया, और उसे फौज में शामिल होने की चिट्ठी आ गयी। ऐसी चिट्ठी जिसे ठुकराना राष्ट्रद्रोह था, और अपनाना हेवीवेट चैंपियन के स्वप्न के बीच का रोड़ा।

मियामी में क्ले का मुकाबला सोनी लिस्टन से था।एफबीआई उनके मैनेजर से पूछताछ कर रही थी कि क्या उनका ‘नेशन ऑफ इस्लाम’ से संबंध है। उसी समय कैसियस क्ले अपनी कैडिलैक गाड़ी में मैल्कम एक्स को घुमा रहे थे। 

कैसियस क्ले (रैंक 3) बनाम सोनी लिस्टन (रैंक 2), 1964

पिछले दो वर्षों में सोनी लिस्टन के समक्ष कोई भी मुक्केबाज़ एक राउंड से अधिक नहीं टिक पाया था। मगर उस दिन पहले राउंड में उनके मात्र छह मुक्के क्ले तक पहुँच सके। दूसरे राउंड में क्ले ने अपेक्षाकृत अधिक मुक्के खाए, मगर इनका बहुत प्रभाव नहीं पड़ा। तीसरे राउंड में अचानक कैसियस क्ले की ओर से अनवरत मुक्के और पंजे पड़ते चले गए। लिस्टन हकबका गए कि यह हो क्या रहा है। ख़ास कर उनकी एक आँख के ऊपर एक बड़ा घाव बनने लगा था।

मुक्केबाज़ी में आँख की भौंहों से खून निकलना उनके देखने की क्षमता कम कर देता है। लिस्टन का दिखना कम हो रहा था कि तभी अली ने अपने मैनेजर डंडी से कहा,

“मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा”

उन्होंने आँखें देख कर कहा, “आँखें तो बिल्कुल ठीक है”

“पता नहीं कहाँ चोट लगी है। मुझे कुछ नहीं दिख रहा”

पाँचवे राउंड में दोनों ही मुक्केबाज़ अंदाज़े से मुक्के लगा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे दो नेत्रहीन लड़ रहे हैं। बहरहाल, थोड़ी देर में उन्हें शायद दिखने लगा और मुक्के ठीक पड़ने लगे।

छठे राउंड में क्ले ने यह ठान लिया कि लिस्टन के घाव को बड़ा करेंगे। वह उनकी भौंहों पर मुक्का मारते गए। लिस्टन अपना नियंत्रण खो बैठे और लड़खड़ाने लगे। सातवें राउंड की घंटी बजी, तो लिस्टन उठे ही नहीं। क्ले चिल्लाए,

“उठो सोनी! लड़ो मुझसे। लोग तुम्हें कायर कहेंगे”

मगर लिस्टन ने हार मान ली थी। उनका बायाँ कंधा निष्क्रिय हो चुका था। क्ले चिल्लाए,

“मैं हूँ दुनिया का सबसे महान मुक्केबाज़! मैं हूँ बादशाह!”

6 मार्च, 1964 को एलीजा मुहम्मद ने रेडियो पर घोषणा की,

“कैसियस क्ले ने अल्लाह में अपना विश्वास जताया है। उनका नया नाम होगा- मुहम्मद अली”

अमरीकी सेना ने उनकी लिखित परीक्षा ली, जिसमें वह गणित के साधारण प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके। नतीजतन उन्हें फौज में शामिल नहीं किया गया। मुहम्मद अली ने फेल होने के बाद पत्रकारों को हँस कर कहा,

“मैंने कहा कि मैं सबसे महान हूँ। मैंने ये कब कहा कि मैं सबसे बुद्धिमान हूँ?”

उसी वर्ष अफ्रीका यात्रा पर उनकी मुलाक़ात शिकागो की एक बारगर्ल से हुई- सोन्जी रॉय। वह एक खूबसूरत मॉडल जैसी थी, जिनसे जल्द ही अली को इश्क हो गया और वह उनकी पत्नी बनी। अगले वर्ष 1965 में उनके मित्र मैल्कम एक्स की हत्या हो गयी।

बहरहाल, इस मध्य एलिजा मुहम्मद के बेटे हर्बर्ट मुहम्मद उनके मैनेजरों में शामिल हो गए थे। उनके खाते आदि का हिसाब रखते थे। अगला मुकाबला विश्व हेवीवेट चैंपियन फ्लॉय्ड पैटरसन से था। मुहम्मद अली के मुसलमान बनने के बाद कई अमरीकी उनसे नफ़रत करने लगे थे, और पैटरसन का समर्थन। वहीं अली इसे आर-पार की लड़ाई कहते हुए पैटरसन को गोरों का चमचा कह रहे थे। 

अली (रैंक 2) बनाम पैटरसन (रैंक 1), लास वेगास, 1965

जब मुकाबला शुरू हुआ तो सभी हैरान हो रहे थे कि अली कर क्या रहे हैं। वह हवा में मुक्के मार रहे थे, जैसे उन्हें मालूम ही न हो कि पैटरसन हैं कहाँ। वहीं पैटरसन के मुक्के भी अली को छू नहीं पा रहे थे। अली चिल्लाए,

“आ जा गोरे अमरीकी! दिखा कितना दम है”

पैटरसन अली से अधिक काले थे। उन्हें यह आरोप चुभ रहा था कि उन्हें गोरों का चमचा कहा जा रहा है। दूसरे राउंड में अली ने अपने अपेक्षाकृत लंबे हाथों से उन्हें मारना शुरू किया और मारते-मारते कहते- “आज मरेगा तू, गोरे!”

बारहवें राउंड में अली ने कभी अपर कट, कभी जैब, कभी हुक मार कर पैटरसन को लहुलुहान कर दिया। निर्णायक को खेल रोकना पड़ा। जनता अली को निर्दयी कह कर निंदा कर रही थी, और अली दोनों हाथ उठा कर हँस रहे थे।

मुहम्मद अली विश्व हेवीटेट चैंपियन बन गए थे!

राष्ट्रद्रोह

वियतनाम में युद्ध अब नाजुक दौर में था। अमरीका को फौजियों की ज़रूरत थी। मुहम्मद अली को चिट्ठी मिली कि पुनः उनकी कापी जाँच कर यह निर्णय लिया गया है कि उन्हें सेना में शामिल किया जाए। अली ने कहा,

“मेरा वियत-कॉन्ग से कोई झगड़ा नहीं है। मैं अब इस्लाम स्वीकार कर चुका हूँ। मैं सेना में सम्मिलित होने से इंकार करता हूँ”

यह राष्ट्रद्रोह था। अख़बारों में यह खबर आग की तरह फैल गयी कि मुहम्मद अली ने देश के लिए लड़ने से मना कर दिया है। वहीं अमरीका में कई ऐसे भी लोग थे जो वियतनाम युद्ध के समर्थन में नहीं थे। ख़ास कर वहाँ काले लोगों को अधिक भेजा जा रहा था, जिसका विरोध हो रहा था। विश्व हेवीवेट चैंपियन द्वारा युद्ध का विरोध उनके लिए एक मुखर स्वर था। 

1967 के मार्च में मार्टिन लूथर किंग लुईविले आए और वहाँ मुहम्मद अली से मिले। वहाँ उन्होंने साथ खड़े होकर घोषणा की,

“हमारे रास्ते भले ही अलग हों, मगर हम काले भाई-भाई हैं।”

उसी वर्ष छोटे कपड़े पहनने और इस्लाम मानने से इंकार करने के कारण सोंजी और अली में तकरार हो गयी। अली ने एक मुसलमान युवती बेलिंडा से विवाह कर लिया। वहीं, दूसरी तरफ़ उनके लड़ने पर मुक्केबाज़ी संघ ने अलिखित पाबंदी लगा रखी थी। राष्ट्रद्रोही को आखिर कैसे अवसर दिए जाएँ? 

अली का धन धीरे-धीरे खत्म हो रहा था, और वह किसी तरह रिंग में वापस आना चाहते थे। उनके मैनेजर मना रहे थे कि सेना से जुड़ जाएँ, मगर वह अब इसे स्वाभिमान से जोड़ चुके थे। वह सरकार के खिलाफ़ मुकदमा कर रहे थे कि उन्हें इच्छा के विरुद्ध सेना में नहीं शामिल करना चाहिए। वहीं उनके मज़हबी उस्ताद एलीजा मुहम्मद उनको मुक्केबाज़ी छोड़ने कह रहे थे, क्योंकि ऐसे खेल इस्लाम के विरुद्ध हैं।

ख़ैर, इस ख़ाली वक्त में मुहम्मद अली ने अपनी आत्मकथा लिखने का निर्णय लिया। वही कथा जिसमें ओलंपिक स्वर्ण नदी में बहाने की बात लिखी है। वह इस कथा से जनता में अपना खोया हुआ विश्वास हासिल करना चाहते थे। यह इसलिए भी आवश्यक था, क्योंकि अमरीका को एक नया हेवीवेट चैंपियन मिल चुका था- जो फ्रेजियर! 

फ्रेजियर एक किसान परिवार के मेहनतकश काले थे। मात्र पाँच फुट ग्यारह इंच के हेवीवेट चैंपियन जिनका ख़ौफ़ ऐसा था कि उन्हें ‘स्मोकिंग जो’ बुलाया जाता था। अली जो पिछले तीन साल से लगभग खाली बैठे थे, उन्हें वह आसानी से हरा सकते थे।

अली और फ्रेजियर की लड़ाई उस वक्त अमरीकी इतिहास की सबसे महंगी लड़ाई होने वाली थी। ईनाम था- पाँच मिलियन डॉलर!!

इस खेल को पूरी दुनिया में 30 करोड़ लोग देखने वाले थे।अली पत्रकारों को कह रहे थे,

“यह फ्रेजियर मेरे सामने बच्चा है, जिसे मैं यह अहसास भी जल्द दिला दूँगा”

अली बनाम फ्रेजियर, 1971, मैडिसन स्क्वायर, न्यूयार्क 

पहले दो राउंड में प्वाइंट के आधार पर भले ही अली को बढ़त मिली, मगर यह स्पष्ट था कि उनकी वह फुर्ती अब क्षीण पड़ रही थी। तीसरे राउंड में फ्रेजियर ने अली को बुरी तरह मारना शुरू किया। अली बार-बार पीछे मुड़ कर जनता को इशारा कर रहे थे कि इन मुक्कों से उनका कुछ नहीं हो रहा। अली ने कहा था कि वह छह राउंड में हरा देंगे, जबकि छठे राउंड तक फ्रेजियर पूरी तरह हावी हो चुके थे।

नौवें राउंड में दोनों के मध्य बराबरी का मुकाबला हुआ। अली ने भी ज़बरदस्त वापसी की। लेकिन ग्यारहवें राउंड में तो अली रस्सी पर टिक कर लगातार मुक्के खाते रहे। पंद्रहवें राउंड तक दोनों मुक्केबाज़ थक चुके थे। फ्रेजियर का एक मुक्का सीधे अली के पेट पर लगा, और वह गिर पड़े। 

लेकिन, अगले ही क्षण वह वापस खड़े हो गए! यह अविश्वसनीय था! 

हालाँकि अब उनमें ताक़त नहीं बची थी, लेकिन नॉकआउट होने की बेइज़्ज़ती से बच गए। महान मुहम्मद अली उस दिन हार गए! 

दोनों मुक्केबाज़ इस मुक़ाबले के बाद अस्पताल गए।विडंबना थी कि विजेता फ्रेजियर अधिक समय तक इलाज कराते रहे, क्योंकि उनके गुर्दे चोटिल हो गए थे। 

बहरहाल, वह साल अली के लिए अच्छा भी रहा। अमरीकी सरकार के खिलाफ़ वह मुकदमा जीत गए। एक काले ने अमरीकी सरकार को हरा दिया, यह भी इतिहास में कम सुना गया था।

1973 में अली को एक बार फिर से केन नॉर्टन नामक मुक्केबाज़ ने हराया। ऐसा लगने लगा था कि मुक्केबाज़ मुहम्मद अली की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, लेकिन उसी वर्ष नॉर्टन को दूसरे मुकाबले में हरा कर अली ने हिसाब बराबर कर लिया।

अब अली ने फ्रेजियर को हराने की ठान ली। जनवरी, 1974 में दोनों को न्यूयार्क के टेलीविजन साक्षात्कार में बुलाया गया। वहाँ पूरी जनता के सामने दोनों भिड़ पड़े।

अली ने कहा, “पिछले मुकाबले में मेरी मार के बाद तू महीनों तक अस्पताल में लेटा रहा”

फ्रेजियर ने कहा, “मैं आराम कर रहा था”

“तू बहुत बड़ा बेवकूफ़ है, समझा?”

“जबान संभाल कर, अली!”

दोनों के बीच वहीं लड़ाई शुरू हो गयी, और जमीन पर लोटते हुए एक दूसरे का गला दबाने लगे। हालाँकि लोगों ने दोनों को छुड़वा लिया, मगर अब नयी लड़ाई के बिगुल बज चुके थे।

अली बनाम फ्रेजर 2, 1974, मैडिसन स्क्वायर

इस मुकाबले में भले ही दोनों मुक्केबाज़ उम्र में बड़े हो चले थे, मगर उनकी फुर्ती कमाल की दिख रही थी। पहले राउंड से ही मुहम्मद अली अपनी चिर-परिचित नाचते-उछलते अंदाज़ में दिख रहे थे। पाँचवे राउंड तक फ्रेजियर की आँखें सूज गयी, वहीं आखिरी राउंडों में पहुँचने तक अली की नाक से खून बहने लगा था। यह कहना कठिन था कि जीता कौन। कई लोग मान रहे थे कि फ्रेजियर को विजेता घोषित कर दिया जाएगा।

लेकिन निर्णायकों ने यह मुकाबला मुहम्मद अली के नाम कर दिया। अली ने सोचा था कि इस मुकाबले के बाद संन्यास ले लेंगे, लेकिन उन्हें लगा कि अभी उनमें खेल बाकी है।

1974 में विश्व हेवीवेट चैंपियन का ख़िताब जॉर्ज फोरमैन के पास आ चुका था। अली को अब फोरमैन पर विजय पाना था। बत्तीस वर्ष के अली के यह आसान नहीं था। लेकिन इस लड़ाई पर पैसे लगाने वाले कई लोग थे। मुहम्मद अली अब मुक्केबाज़ी की दुनिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के सबसे लोकप्रिय व्यक्तियों में थे।

जायरे के तानाशाह मोबुटु ने दस मिलियन डॉलर का ईनाम रख दिया। यह पहला मौक़ा था जब अफ़्रीका में दो काले हेवीवेट मुक्केबाजों का मुकाबला हो रहा था। अली ने इसका एक नाम भी रख दिया-

Rumble in the Jungle! 

उन्होंने इस मुकाबले के तैयारी के लिए एक युवा मुक्केबाज़ लैरी होम्स को अपने टीम में शामिल किया, जिसके साथ वह रिंग में अभ्यास करते। वह फोरमैन पर मानसिक दबाव भी डालने लगे। उन्होंने एक बार कहा-

“इस फोरमैन ने ओलंपिक जीतने के बाद गोरी ईसाई अमरीका का झंडा लहराया था। अगर यह जीतेगा तो हम काले अगले तीन सौ साल गुलाम रहेंगे। अगर मैं जीता, तो हम आजाद हो जाएँगे।”

समस्या यह थी कि जायरे में बहुसंख्यक ईसाई थे, तो वहाँ यह ईसाई वाला सिक्का चलना कठिन था। काले फोरमैन को गोरा कहना भी असंगत था। अली ने यूँ ही जायरे जाते हुए हवाई जहाज में पूछा,

“ये जायरे वाले किससे सबसे अधिक नफ़रत करते हैं?”

उत्तर मिला, “बेल्जियम से। उन्होंने ही वहाँ पहले राज किया था”

अली ने जायरे की राजधानी में उतरते ही वहाँ की भीड़ को कहा,

“फोरमैन बेल्जियम से है!”

जनता चिल्लाने लगी, “अली! बोमा ये!”

(मार डालो उसे, अली!)

अली अब जहाँ से गुजरते, वह भीड़ के साथ चिल्लाते, “अली! बोमा ये! अली, बोमा ये!…”

अली बनाम फोरमैन, 1974, किंसासा

अमरीका में सीधा प्रसारण हो सके, इस कारण यह मुकाबला सूर्योदय से पूर्व सुबह 4 बजे रखा गया।

उस दिन मुहम्मद अली जैसे वहाँ मार खाने ही खड़े थे। वह रिंग में नाचने के बजाय कदमों का बहुत कम इस्तेमाल कर रहे थे। फोरमैन उन पर प्रहार करते रहे, और अली रस्सी पर पीठ टिकाए चोट लेते रहे।

मैनेजर डंडी ने कहा, “यह क्या कर रहे हो, अली? रस्सी पर पीठ टिकाओगे तो वह मारेगा ही”

अली ने कहा, “चुप कर! मुझे पता है मैं क्या कर रहा हूँ”

यह तकनीक कहलायी- Rope-the-Dope.

अली मार खाते रहे, और फोरमैन की ऊर्जा क्षीण होती रही। अली उन्हें भड़काते, “बस? इतना ही था? और नहीं मार सकता क्या?”

तीसरे राउंड के आखिरी सेकंडों में अली ने सीधे फोरमैन की आँखों पर मुक्का चलाया, जिससे फोरमैन के आगे अँधेरा छा गया। पाँचवे राउंड तक भी अली ने तकनीक नहीं बदली। फोरमैन का मुक्का आता और अली रस्सी पर पीछे लटक जाते। इससे प्रहार का प्रभाव कम हो जाता।

छठे राउंड में अली ने मारना शुरू कर दिया। भीड़ चिल्लाने लगी- अली, बोमा ये!

आठवें राउंड तक फोरमैन पूरी तरह थक चुके थे। अली चिल्लाए,

“अभी तो सात राउंड बचे हैं। कैसे लड़ पाएगा तू?”

फोरमैन जैसे नशे में झूल रहे थे। तभी अली का पहले एक बायाँ, फिर दायाँ, और फिर बायाँ मुक्का आया। फोरमैन चित हो गए!

वर्षों बाद फोरमैन ने दावा किया कि मुकाबले से पहले उन्हें नशा दिया गया था। अली की टीम पर ऐसे फिक्सिंग के आरोप पहले भी लगते रहे थे, तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। मगर उस दिन तो अली ने फोरमैन को ऐसा हराया कि कुछ वर्ष बाद वह मुक्केबाज़ी छोड़ कर ईसाई प्रचारक बन गए। 

(डेढ़ दशक बाद फोरमैन रिंग में लौटे और 1994 में इतिहास के सबसे बुजुर्ग हेवीवेट चैंपियन बने!)

जायरे यात्रा में मुहम्मद अली को अपनी तीसरी पत्नी वेरोनिका पोर्श भी मिली। इन पत्नियों के अतिरिक्त भी कई स्त्रियाँ थी, जो मुहम्मद अली से संबंध बना चुकी थी, और उनसे बच्चे भी थे जिनका खर्च अली वहन करते थे।

क़ायदे से अली को अब संन्यास ले लेना चाहिए था, मगर रईसी का जीवन और इतना बड़ा परिवार सँभालने के लिए लड़ने के सिवा और विकल्प ही क्या था?

अली एक गोरे मुक्केबाज़ वेप्नर से ओहायो में लड़े, जिसमें आश्चर्यजनक रूप से अली को खासी मशक्कत करनी पड़ी। बल्कि एक क्षण के लिए वेप्नर ने अली को चित भी कर दिया था। इस खेल को देखने वालों में एक युवक इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाद में इस पर फ़िल्म बनायी। फ़िल्म का नाम था- रॉकी, और युवक थे- सिल्वेस्टर स्टैलोन। 

चार मिलियन डॉलर के लिए अली ने फ्रेजियर से एक और मुक़ाबला मंजूर किया, जो फ़िलीपींस की राजधानी मनीला में खेला जाना था। चूँकि दोनों के मध्य अभी 1-1 की बराबरी थी, इसे निर्णायक कहा जा रहा था।

अली बनाम फ्रेजियर 3, मनीला, 1975

मनीला में उस दिन बेइंतहा गर्मी और उमस थी। ऐसे में दो मुक्केबाजों के लिए लड़ना कठिन परीक्षा थी। अली चाहते थे कि जल्दी खेल खत्म हो जाए। वह पहले राउंड से ही सीधे प्रहार करने लगे। फ्रेजियर जायरे का मुकाबला देखने के बाद यह आशा नहीं कर रहे थे कि अली अपनी तकनीक बदल लेंगे।

तीसरे से सातवें राउंड में अली वापस रोप-द-डोप तकनीक पर आ गए और रस्सी का सहारा लेकर मुक्के खाने लगे। आठवें में अली पुनः आक्रामक होकर लौटे मगर फ्रेजियर को गिराना असंभव लग रहा था। दसवें राउंड तक अली थक गए थे, और अपनी हार सामने देख रहे थे।

उनके एक मैनेजर बंडिनी ने कहा, “तुम चैंपियन हो अली! तुम नहीं हार सकते”

अगले ही राउंड से अली ने फ्रेजियर की आँख पर निशाना साधना किया, और मार-मार कर भौंहे सूजा दी। चौदहवें राउंड में फ्रेजियर को दिखना बंद हो चुका था, और वह हवा में मुक्के मार रहे थे। उनके मैनेजर ने कहा-

“अब हार मान जाओ! यह मार डालेगा!”

वह चिल्ला रहे थे, “नहीं! मैं क़तई हार नहीं मानूँगा”

सच तो यह था कि अली में भी अब हिम्मत नहीं बची थी, मगर वह कम से कम देख तो पा रहे थे। निर्णायक मुकाबला मुहम्मद अली के नाम रहा।

अब अली शिखर पर थे। यहाँ से अब ऊपर जाने का रास्ता खत्म हो चुका था। अब अगर वह कहीं जा सकते थे, तो वह नीचे की ढलान थी।

पैसे की ज़रूरत ने उन्हें हास्यास्पद लड़ाइयाँ लड़ने पर मजबूर किया। वह जापान के कुश्ती चैंपियन इनोकी से लड़ने गए और इनोकी ने उनकी टाँगे पकड़ कर ऐसा मरोड़ा कि वह सूज गयी। आखिर एक मुक्केबाज़ अली कुश्ती लड़ने गये ही क्यों?

1976 में एक ही बड़ी जीत हासिल हुई। केन नॉर्टन से हुए तीसरे मुकाबले में। हालाँकि इस मुकाबले में भी लोगों को शंका थी कि आखिर अली को विजेता घोषित किस आधार पर किया गया। नॉर्टन के 286 पंच के मुकाबले अली ने 199 पंच थे। शैली के प्वाइंट मिलते हैं, लेकिन इतना भी फासला नहीं होता। कुछ ऐसे ही आरोप 1977 के अली-शेवर्स मुकाबले पर लगे, जिसमें स्पष्ट रूप से शेवर्स ने अली को पस्त कर दिया था, मगर विजेता मुहम्मद अली को ही घोषित किया गया। 

अगले ही वर्ष 1978 में कद्दावर लिओन स्पिंक्स ने मुहम्मद अली की पसलियों पर ऐसे प्रहार किए कि वह बुरी तरह पराजित हुए। पत्रकारों ने कहा,

“अब अली खत्म हो चुका है”

छत्तीस वर्ष की उम्र तक मुक्केबाज़ी करना ही बड़ी बात है, खत्म होना तो स्वाभाविक ही है। लेकिन अली खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसी वर्ष उन्होंने स्पिंक्स को पंद्रह राउंड में पराजित कर हिसाब बराबर कर लिया। 

सवाल अब भी यही था- क्या अली संन्यास लेंगे?

ऐसा नहीं कि अली इस दिशा में नहीं सोच रहे थे। वह विज्ञापनों में आ रहे थे। साक्षात्कार दे रहे थे। मुक्केबाज़ी का प्रशिक्षण देने की शुरुआत कर रहे थे। आय के अन्य साधन जुटा रहे थे। अमरीकी सरकार भी उन्हें मुसलमान देशों से संबंध बेहतरी के लिए भेज रही थी। 1980 में वह भारत भी आए।

उसी दौरान उनकी पत्नी वेरोनिका ने ग़ौर किया कि अली की ज़बान लड़खड़ाने लगी है। संभवतः इतने वर्षों की मुक्केबाज़ी ने उनके मस्तिष्क को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। लेकिन अली इसे धत्ता बताते रहे। वह कहते-

“मेरे दिमाग को कभी कुछ नहीं हो सकता”

1980 में अली ने पुनः रिंग में आने का निर्णय लिया। हेवीवेट चैंपियन लैरी होम्स के खिलाफ़। यह वही होम्स थे जिन्हें उन्होंने कुछ वर्ष पहले अपनी टीम में अभ्यास के लिए रखा था। मुकाबले से पहले अली की चिकित्सकीय जाँच हुई, जिसमें मस्तिष्क में सिकुड़न की शंका व्यक्त की गयी। लेकिन अली लड़ कर यह सिद्घ करना चाहते थे कि वह स्वस्थ हैं। 

अली बनाम होम्स, 1980, लास वेगास

खेल से पहले ही अली ने होम्स को कहा,

“मैंने ही तुम्हें लड़ना सिखाया है, बच्चे!”

पहले दो राउंड में ही अली इस तरह थक गए कि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि बाकी के तेरह राउंड कैसे खेलेंगे। तीन राउंड में अली मात्र पाँच पंच मार पाए थे। पाँचवे राउंड में अली ने नाचना शुरु किया लेकिन होम्स के प्रहारों से बच न सके। आठवें राउंड तक अली का मुँह सूज चुका था और आँखें काली पड़ चुकी थी। नौवें राउंड में मैनेजर डंडी ने कहा,

“बस अली! अब हो गया! तुम्हारी यह हालत नहीं देखी जाती”

लेकिन अली खड़े हुए। होम्स ने कभी सर पर, कभी पेट पर, कभी पसलियों पर मुक्के मारे। अली मुक्के खाते रहे, मगर गिरे नहीं। आखिर दसवें राउंड में खेल रोकना पड़ा, अन्यथा अली की मृत्यु भी हो सकती थी।

महानतम मुक्केबाज़ आखिर अपने ही शिष्य से पराजित हुआ। 

1981 में बहामास में मुहम्मद अली ने एक युवा मुक्केबाज़ बर्बिक से आखिरी मुक़ाबला लड़ा, और वहाँ भी बुरी तरह हारे। 39 वर्ष की उम्र में उन्होंने संन्यास की घोषणा कर दी। 

अगले वर्ष से उनके कई जाँच होने शुरू हुए और डाक्टरों ने धीरे-धीरे यह निष्कर्ष निकालना शुरू किया कि उनके दिमाग पर स्थायी प्रभाव पड़े हैं। यह पार्किंसन नामक बीमारी जैसी स्थिति हो सकती है, जिसमें व्यक्ति शिथिल होता जाता है। 

1987 में पाकिस्तान की हवाई यात्रा पर उन्होंने सीट बेल्ट नहीं बाँध रखे थे। हवाई सुंदरी ने टोका तो उन्होंने कहा,

“सुपरमैन को सीट बेल्ट बाँधने की क्या ज़रूरत?”

उसने मुस्कुरा कर कहा, “सुपरमैन को हवाई जहाज की क्या ज़रूरत?”

वह हँसने लगे।

दुनिया मुहम्मद अली को कुछ हद तक भूलने लगी थी। वह अब अपने घर में नमाज़ पढ़ते, यूँ ही अपने पुराने खेल टेलीविजन पर देखते रहते।

1996 में अमरीका के अटलांटा ओलंपिक में मशाल जलाने के लिए तमाम दिग्गज खिलाड़ियों को बुलाया गया। इवांडर होलीफील्ड ने मशाल मशहूर तैराक जैनेट इवांस को दी। इवांस को यह मशाल आखिरी व्यक्ति को देनी थी, जिसके साथ ही ओलंपिक का आग़ाज़ होता। लेकिन सामने कोई नज़र नहीं आ रहा था। दुनिया भर के टेलीविजन पर लोग प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी एक धीमे कदमों से चलती आकृति दिखायी दी। लोग ग़ौर से देखने लगे कि यह कौन है। तभी पूरा स्टेडियम गूँज पड़ा,

“वो….अली! अली! अली!”

काँपते हाथों से मुहम्मद अली ने ओलंपिक का दीप प्रज्ज्वलित किया। 

2001 में ‘अली’ फ़िल्म रिलीज हुई, जिसमें विल स्मिथ ने उनका किरदार निभाया। 2005 में जॉर्ज बुश ने उन्हें राष्ट्रपति मेडल देते हुए उनकी तरफ़ मजाक में मुक्का दिखाया, बूढ़े अली मुस्कुरा कर उंगलियाँ अपनी सर की तरफ़ ले गए और इशारा किया- ये पागल है!

मुहम्मद अली ने पहले काले राष्ट्रपति बैरक ओबामा के शपथ ग्रहण में भी भाग लिया, और डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनते हुए भी देखा। 2016 में अरिजोना के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम साँसे ली। जब लुइविले में उनकी शवयात्रा शुरू हुई तो हज़ारों की तादाद में लोग जमा थे और चिल्ला रहे थे-

“अली, बोमा ये!”

Author Praveen Jha narrates the story of legendary boxer Muhammed Ali (Cassius Clay Jr) based on book ‘Ali’ by Jonathan Eig

 

 

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