जब अर्जुन अपने पुत्र से हार गए

Four Single Mothers
Four Single Mothers
हमारी पीढ़ी पौराणिक कथाओं से क्या सीख सकती है? आज के समाज की स्वतंत्र स्त्रियाँ क्या महाभारत में ऐसी माँएँ तलाश सकती हैं। ऐसे समानांतर जहाँ स्त्री ने स्वयं ऐसी नियति चुनी हो? आशुतोष गर्ग की पुस्तक ‘4 सिंगल मदर्स’ पर चर्चा

महाभारत का विस्तार व्यापक है। इसका भाष्य कहीं अधिक व्यापक और काल से परे। इसे एक पौराणिक ग्रंथ मान कर अगर सीमित कर दिया जाए, तो इसकी बृहत् और समकालीन महत्ता भी सीमित हो जाएगी। हमें इस ग्रंथ में वह भी ढूँढना होगा जिसे हम वर्तमान में देख सकें। आज की दुनिया में, आज की दृष्टि से, आज के समाज को।

आशुतोष गर्ग की पुस्तकों में वह दृष्टि दिखती है। वह भाषा भी दिखती है जो हमारी आज-कल के बोलचाल की भाषा है। कुछ लोगों को यह बात शायद खले भी कि पौराणिक कथाओं को वह अपनी भाषा में क्यों कह रहे हैं। अगर कह रहे हैं तो संवाद और कथानक क्यों गढ़ रहे हैं। लेकिन, जब काल-खंडों और समाजों के बीच एक पुल का निर्माण होता है तो उसकी संरचना ऐसी ही होती है कि आवा-जाही में बाधा न हो।

जब मैंने इस पुस्तक का शीर्षक देखा- ‘4 सिंगल मदर्स’, तो मुझे यह बहुत आकर्षित नहीं कर सका। मुझे लगा कि यह एक फार्मूला पुस्तक होगी, जिसमें आधुनिक स्वतंत्र स्त्रियों के संघर्षों और उपलब्धियों का पुलिंदा होगा। चूँकि मैं ऐसे परिवेश में रहता हूँ, जहाँ यह आम है तो मुझे इससे किताबी हासिल नहीं दिख रही थी। लेकिन एक कौतूहल था कि इंद्र, अश्वत्थामा, कल्कि, कुबेर जैसे विषयों पर लिखने वाले लेखक ने भला यह विषय क्यों चुन लिया!

हालाँकि उप-शीर्षक है- ‘पौराणिक नारी पात्रों की संघर्ष गाथा’, जो कौतूहल को सुलझाने के बजाय उलझा देता है। भला पौराणिक काल की सिंगल मदर्स कैसी होंगी? उनकी छवि उस समय की दृष्टि से कैसी होगी? हम उन्हें आज कैसे देखेंगे? मूल प्रश्न तो यह कि वे चार अष्टभुजा माताएँ थीं कौन जो स्वतंत्र भी थी, एकल भी?

लेखक ने इसके लिए कथावाचक शैली अपनायी है। वह वर्तमान काल से एक युग्म बनाते हैं। एक अकेली माँ और उसके पुत्र का। वह पुत्र जो अपनी माँ से अपने पिता के विषय में पूछता है कि वह हमें छोड़ कर क्यों चले गए। यह आज की महानगरी आधुनिक माँ है, और उनसे भी आधुनिक उनका पुत्र। लेकिन इनके मध्य संवाद होता है पौराणिक कथाओं के माध्यम से। यह प्रयोग मुझे गीता प्रेस की ‘कल्याण’ पत्रिका की याद दिलाता है जहाँ इसी तरह समकालीन परिवेश की कथाओं से पौराणिक ज्ञान दिलाया जाता था। वह माँ कहती है-

“यह कहानी है उन स्त्रियों की है, जिन्होंने चुपचाप एकाकीपन के दुर्जेय पर्वत पर अपने संयम की विजय-पताका फहराई तथा लगन एवं धैर्य के साथ अपने बच्चों को लेकर जीवन-पथ पर आगे बढ़ती गईं। इन स्त्रियों ने अकेले ही अपने दम पर बच्चों को इतना योग्य बनाया कि इतिहास के पन्नों पर उन तेजस्वी युवकों की गौरव-गाथाएँ आज भी स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं और संसार उनका नाम आदर से लेता है।”

पुत्र उत्सुक होता है कि कौन थी वे स्त्रियाँ? यहीं से लेखक अपने चिर-परिचित विधा में प्रवेश करते हैं!

वह तीन युग्म बनाते हैं। पता नहीं मुझे पूरा रहस्य खोलना चाहिए या नहीं, लेकिन एक युग्म जो मुझे सबसे प्रिय लगा वह है- चित्रांगदा और बभ्रुवाहन। क्या आप महाभारत से जुड़े इन पात्रों से परिचित हैं?

इस कथा में ऐसे द्वंद्व हैं जो अपने आप में एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास है। अर्जुन का वध करने के बाद बभ्रुवाहन को जब ज्ञात होता है कि यह उनके पिता थे, वह माँ से पूछते हैं,

“इस युद्ध को जीतकर मैं अपना सर्वस्व हार गया हूँ, परंतु माँ आपने मुझसे इतनी बड़ी बात छिपाई ही क्यों? आपने मुझसे अपने ही पिता को पराजित करने का वचन क्यों माँगा?”

इस पर चित्रांगदा का उत्तर पढ़ा जाना चाहिए।

पुस्तक का प्रवाह रोचक है। पाठक की पिपासा बनी रहती है कि अमुक परिस्थिति में माँ क्या करेगी। एक अपरिपक्व समाज में जहाँ किसी कारणवश संबंध-विच्छेद के बाद क्लेश बढ़ता जाता है, वहीं इन कथाओं में बेहतर समझ और अनुकूलन दिखता है। जैसे यह भी एक तरह की नियति हो, अभिशाप नहीं। ‘सिंगल मदर’ होना एक सुचिंतित चयन हो और वह भी पौराणिक दृष्टि से। उनके संतान के अंदर भी अपूर्णता न दिखे कि उसके पिता साथ नहीं है।

पाठक रूप में एक प्रवाह-अवरोध यह दिखा कि इन माताओं की कथा के मध्य महाभारत युद्ध-गाथा का एक खंड है। यूँ तो उसकी उपयोगिता उनके लिए हो सकती है जो महाभारत से कम परिचित हैं, मगर मुझे वह खंड लगभग छोड़ कर आगे बढ़ना पड़ा।

आप अन्य दो युग्मों का अनुमान लगाएँ, किंतु कथा का आनंद लेते हुए पुस्तक पढ़ लेना अधिक उपयोगी होगा।

Author Praveen Jha narrates his experience about book 4 Single Mothers (Hindi) by Ashutosh Garg. 

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