यह सस्पेंस थ्रिलर है। इस पंक्ति का उद्देश्य ध्यानाकर्षण तो है ही, लेकिन इसमें थ्रिलर के गुण मौजूद हैं। यह इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि जब युवा राजकमल प्रकाशन के हिन्दी उपन्यास उठाते हैं तो घबड़ा जाते हैं कि समझ भी आएगी या नहीं। मैं भी दो-चार किताबों से गुजर कर ही इस ऑडियो तक आया, भले सुननी यह सबसे पहले थी। लगा कि एक तो मंजे लेखक की किताब, ऊपर से चलते-फिरते ऑडियो सुनना! क्या ही समझ आएगी। समालोचन में एक विस्तृत टिप्पणी भी पढ़ी थी, तो वह भी प्रेशर था। मगर, हिम्मत कर के सुनना शुरू किया, और बस सुनता चला गया।
इसको सुनते हुए न जाने क्यों मेरे मन में तीन छवियाँ घूमी। पहली निर्मल वर्मा की ‘रात का रिपोर्टर’। दूसरा सफदर हाशमी सा कोई रंगकर्मी। और तीसरी- फ़िल्म ‘एक दिन अचानक’।
कुछ खुलासे करता हूँ। उत्तर प्रदेश के एक कस्बे में एक रंगकर्मी और फिर उसकी मंडली एक-एक कर गायब होने लगती है। लेकिन, यह कथा इस तरह नहीं शुरू होती। यह पूरे सफर का हासिल है, जो बड़े ही इत्मीनान से बुनी गयी है। और क्या बुनी गयी है!
एक प्लॉट के अंदर न जाने कितने सबप्लॉट हैं। एक कस्बे के अंदर जैसे पूरा देश समा गया है। वह भी समकालीन, जहाँ फ़ेसबुक और ट्विटर वाले लोग इन क़स्बों की राजनीति में घुले हुए हैं। एक डायरी के पन्ने परत-दर-परत खुल रहे हैं, और कोई रहस्योद्घाटन भले न हो, मगर आपके मन में तमाम संभावनाएँ उभर रही है। आप अपने पूर्वाग्रह से सोच रहे हैं कि कुछ यूँ हुआ होगा, और वे पूर्वाग्रह टूटते भी जा रहे हैं। आप न जाने कब इस ‘वैधानिक’ गल्प को पढ़ कर ग्लानि से भर गए और बेहतर इंसान बन गए। शायद?
आप सुनिएगा तो एक पात्र का नाम याद रखिए- अर्चना। वह कथा में है ही नहीं, मगर है। ऐसे कई पात्र हैं, जो न होकर भी मौजूद हैं। कैसे? यह तो पढ़ कर ही मालूम पड़ेगा।
कथावाचक की आवाज की क्या कहूँ! मैंने चंदन जी की आवाज नहीं सुनी, लेकिन लगता है कि वही पढ़ रहे हों। ऐसा क्यों है, यह नहीं बता पाऊँगा। मुझे लगता है कि इस किताब की अगली कड़ी भी आएगी। यह भी कोई पढ़/सुन कर ही कयास लगा पाएगा।
[चंदन पाण्डेय का अगला उपन्यास कीर्तिगान आ चुका है और वैधानिक गल्प अंग्रेज़ी में Legal Fiction नाम से है]Author Praveen Jha shares his experience about book Vaidhanik Galp by Chandan Pandey
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