सोवियतिस्तान

Poster of book Sovietjstan
सोवियतिस्तान- एरिका फैटलैंड
एक ऐसी जगह हो, जहाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग बाज पालते हों। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ विवाह की पारंपरिक विधि ही यही हो कि पुरुष पहले अपनी प्रेमिका का अपहरण कर ले, फिर उनके माँ-बाप से इज़ाजत माँगे

(यह अजीब बात है कि मैं एक नॉर्वेजियन भाषा की पुस्तक पर हिंदी में लिख रहा हूँ। लेकिन इस पाँच सौ पृष्ठों की रोचक पुस्तक पढ़ने के बाद चर्चा न करूँ, यह भी उपयुक्त नहीं। बहरहाल यह अंग्रेज़ी में Sovietistan नाम से मौजूद है ही, और क्या पता किन्ही अनुवादक/प्रकाशक की नज़र पड़ जाए तो हिंदी में आ जाए।)

सदियों पहले चीन से यूरोप तक एक रेशम मार्ग हुआ करता था, जिसकी शाखा भारत से होकर भी गुजरती थी। इस पूरे रास्ते को नापते हुए ही एक दशक लग जाते। यानी जो रेशम आज चीन से चलता, वह सात-आठ साल बाद जाकर रोम पहुचँता। इस मध्य वह पामीर के पठारों, काराकोरम के पहाड़ों, समरकंद-बुखारा के बाज़ारों, मध्य एशिया के रेगिस्तानों के मध्य कई सरायों से गुजरता यूरोप पहुँचता।

महिला लेखक एरिका ने इन पाँच देशों को सोवियतिस्तान नाम दिया है, क्योंकि ये सोवियत संघ के ख़ानत वाले हिस्से थे, जहाँ इस्लाम पहले ज़ारशाही और बाद में कम्युनिस्ट शासन के छत्र में पला। आखिर जब सोवियत का विघटन हुआ तो तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाक़स्तान और किर्गिज़स्तान अलग-अलग देश बन गए।

इन देशों में दो देश तेल-गैस की संपदा से भरपूर रईस देश हैं। वहीं एक देश इतना गरीब कि खाने के लाले पड़े हैं। जहाँ चार देश लगभग अलोकतांत्रिक तानाशाही में जी रहे हैं, वहीं एक देश दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्रों की सूची में मौजूद है। किसी देश के सत्तर प्रतिशत से अधिक रेगिस्तान है, तो कहीं के सत्तर प्रतिशत से अधिक निर्जन पहाड़। कहीं दुनिया की सबसे ठंडी जगहों में एक है, और कहीं इतनी गर्मी है कि छोटे-छोटे बस पड़ाव तक वातानुकूलित रखने पड़ते हैं।

लेखक ने बहुत ही समय लेकर इन क्षेत्रों की यात्रा की है, भाषा सीखी है, और सभी के इतिहास से वर्तमान की कथाएँ सुनायी है, जो अन्यथा सहज नहीं है। इसे पढ़ते हुए एक भारतीय को तो कई चीजों से जुड़ाव महसूस होगा ही, दुनिया को समझने का नज़रिया भी अलग मिलेगा। लिपस्टिक के शेड्स की तरह ज़रा-ज़रा का फ़र्क़ भी दुनिया को कितना विविध कर देता है, यह बात समझ आएगी।

जैसे एक ऐसा शहर हो, जहाँ हर मकान संगमरमर से बना हो, और हर राजकीय भवन उसी डिज़ाइन का हो जो उसका कार्य हो। जैसे खुली किताब की डिज़ाइन में शिक्षा मंत्रालय? ग्लोब की डिज़ाइन में विदेश मंत्रालय?

एक ऐसी जगह हो, जहाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग बाज (eagle) पालते हों। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ विवाह की पारंपरिक विधि ही यही हो कि पुरुष पहले अपनी प्रेमिका का अपहरण कर ले, फिर उनके माँ-बाप से इज़ाजत माँगे। जहाँ ऐसे मुसलमान हों, जो रमजान में रोजा न रखते हों क्योंकि यह मुमकिन ही नहीं।

ऐसा रेगिस्तान जहाँ पाँच-दस नहीं, पाँच सौ परमाणु परीक्षण हो गए। ऐसे देश जहाँ के पुरुष आज भी रूस जाकर कमाते हों, और उनका परिवार कहीं वीरान पहाड़ों पर बसता हो। ख़ानाबदोशी कबीले जो अब भी एक जगह टिकना पसंद नहीं करते। वे आज भी चले जा रहे हैं, जैसे उनके पूर्वज हज़ार वर्ष पूर्व चला करते थे।

ऐसी किताबों पर बात इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि ऐसी किताब हर भाषा में लिखी जानी चाहिए। लिखी तो तभी जाएगी, जब खूब पढ़ी जाएगी। तलब की जाएगी कि क्या ऐसी किताब है? शायद पहले से हो? शायद भविष्य में लिखी जाए।

 

Indisk forfatter Praveen Jha skriver bokanmeldelse om Erika Fatland sin boka Sovietjstan.

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