क्या शाकाहारी भोजन बेहतर है? – गांधी

Vegetarian Gandhi Lecture
गांधी ने लंदन में विद्यार्थी जीवन में भारतीय आहार पर भाषण दिया। इसमें सरल भाषा में भारत के अनाज और फल विदेशियों को समझाया। साथ-साथ भोजन बनाने की विधि भी।

Original speech by Mohandas Karamchand Gandhi. Translated by Praveen Jha

1 जून, 1891

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इस लेख की शुरूआत से पहले अपनी योग्यता बता दूँ। जब मिल्स ने भारत का इतिहास लिखा तो अपनी योग्यता बताई, हालांकि न वो भारत कभी गए और न ही वहाँ की भाषाएँ जानते थे। तो मैं वही लिखूँगा, जो मुझे लिखना चाहिए। जब भी कोई किसी से योग्यता पूछता है, इसका अर्थ है कि उसे विश्वास नहीं। तो मैं पहले ही कह दूँ कि भारत के भोजन पर लिखने के लिए मैं स्वयं को योग्य नहीं समझता। दरअसल मैं योग्यता सिद्ध करने के लिए नहीं लिख रहा, बल्कि इसलिए क्योंकि भारत मेरे दिल से जुड़ा है।

मैं बॉम्बे प्रेसिडेंसी के अनुभव लिखूँगा। हालांकि भारत में लगभग 2.8 करोड़ लोग रहते हैं। यह यूरोप से अगर रूस अलग कर दें, तो उतना बड़ा देश है। इतने बड़े देश में कई परंपराएँ पलती हैं। तो अगर मेरे लेख से अतिरिक्त आपको कुछ भविष्य में पता लगे, तो यह स्वाभाविक है।

मैं तीन भागों में अपनी बात रखूँगा। पहला वहाँ के लोगों के संबंध में। दूसरा भोजन, और तीसरा भोजन के फायदे इत्यादि।

यह माना जाता है कि भारत में सब शाकाहारी हैं, पर यह सत्य नहीं, यहां तक कि सभी हिन्दू भी नहीं। किंतु बहुसंख्यक शाकाहारी हैं। पर भारत के मांसाहारी आपसे अलग हैं। वो यह नहीं सोचते कि मांस के बिना मर जाएंगें। यह उनका शौक है, जिंदगी की जरूरत नहीं। उन्हें गर खाने को बढ़िया रोटी मिल जाए, खुशी-खुशी खाएंगें। जबकि ब्रिटिश मांसाहारी को हर रोज मांस चाहिए ही। ब्रिटिश को मांस चाहिए, ब्रेड बस उनके पाचन में सहायक है। भारतीय को रोटी चाहिए, मांस बस उसको पचाने के लिए सहायक है।

कल मैं एक अंग्रेज महिला से शाकाहार के विषय में कह रहा था। उन्होनें कहा कि मांस के बिना उनका जीवन संभव नहीं। मैनें पूछा कि अगर कभी ऐसी परिस्थिति आए कि शाकाहारी बनना पड़े। उन्होनें कहा कि यह उनके जीवन का सबसे बुरा वक्त होगा। मैं उन्हें दोष नहीं देता। यह आपके समाज की समस्या है कि आप मांस के बिना नहीं रह सकते।

अब मैं भारत के शाकाहारी भोजनों पर आता हूँ। भारत एक कृषि-प्रधान देश है, विशाल। इसलिए हमारे कृषि उत्पाद भी विस्तृत हैं। हालांकि ब्रिटिश लोग भारत में 1746 ई. में ही आ गए, पर विडंबना है कि लंदन में भारतीय भोजन कोई जानता ही नहीं। इसके जिम्मेदार भी आप ही हैं। आप भारत जा कर भी अंग्रेजों जैसे ही रहते हैं, भारतीयों की तरह नहीं। आपको भोजन तो अंग्रेजी चाहिए ही, बल्कि उसे बनाया भी अंग्रेजी तरीके से जाए। यह तो मनुष्य का सामान्य गुण है कि वो दूसरों की संस्कृति से कुछ सीखे, पर आपमें ऐसी चेष्टा कम दिखी। तमाम ऐंग्लो-इंडियन ने भारत के शाकाहार से कुछ नहीं सीखा।

खैर, आपकी निंदा को विराम देते हुए, हम बात करते हैं भारत के भिन्न-भिन्न प्रकार के मकई की।

गेंहूँ भारत का एक मुख्य अनाज है। चावल, बाजरा, और ज्वार भी। अमीर गेंहू की रोटी खाते हैं, तो गरीब ज्वार-बाजरा की। खासकर दक्षिणी और उत्तरी प्रांतों में। हंटर ने दक्षिणी प्रांतों के बारे में लिखा कि ज्वार, बाजरा और रागी वहाँ प्रमुख हैं। उत्तर के बारे में वो लिखते हैं कि अमीर वहाँ चावल अधिक खाते हैं। आपको भारत में ऐसे लोग मिलेंगें जिसने कभी ज्वार चखा ही न हो। पर गरीब इसकी बहुत इज्जत करते हैं। यहाँ तक कि वो किसी को अलविदा करते वक्त कहते हैं, “ज्वार!” यानी “तुम्हें जीवन भर ज्वार मिलता रहे”। बंगाल प्रांत में चावल की रोटी भी बनती है। बंगाली रोटी से अधिक चावल खाते हैं। देश के अन्य प्रांतों में चावल की रोटी कम ही बनती है।

रोटी तो चने की भी भारत में बनती है, गेंहूँ मिलाकर। और मटर की भी। पर इससे मुझे अब तरह-तरह के दाल याद आ गए। अरहर, चना, मूंग, तूअर, मोठ*, उरद इत्यादि। इनमें तूर दाल काफी लोकप्रिय है। सब्जियों की बात मैं करूँ तो यह भाषण समाप्त नहीं हो पाएगा। भारत की मिट्टी अनगिनत सब्जियाँ पैदा करती हैं। इसको ऐसे भी कह सकते हैं कि गर भारत को कृषि का संपूर्ण ज्ञान दिया जाए तो दुनिया की हर सब्जी उगाना यहां मुमकिन होगा।

अब आते हैं फलों और बादाम पर। यह विडंबना है कि भारत में फलों की महत्ता कम लोग समझते हैं। हालांकि प्रयोग खूब है, लेकिन एक शौक की तरह। इसे स्वाद के लिए खाते हैं, स्वास्थ्य के लिए नहीं। इस कारणवश भारत के लोगों को स्वास्थ्यप्रद फल जैसे सेब और नारंगी इत्यादि प्रचुर मात्रा में नहीं मिलते। हालांकि मौसमी फल-बादाम खूब मिलते हैं। जैसे गर्मियों में आम सबसे लोकप्रिय है। आम से स्वादिष्ट फल मैनें आज तक नहीं चखा। बहुत लोग अनानस को सर्वोत्तम कहते हैं, पर जिसने आम चख लिया, वो आम को ही सर्वोच्च रखता है। यह तीन महीने मिलता है, और सस्ता है तो अमीर-गरीब सब खा पाते हैं। मैनें तो यह भी सुना कि कुछ लोग बस आम खा कर ही इन महीनों में रहते हैं।

समस्या है कि आम ज्यादा दिन टिकते नहीं। यह खाने में आपके सतालू के करीब कहा जा सकता है, और इसमें गुठली होती है। यह कभी-कभी एक छोटे तरबूज जितना बड़ा भी होता है। अब तरबूज याद आ गया, वो भी खूब मिलते हैं गर्मियों में। आपके इंग्लैंड से कहीं बेहतर तरबूज। खैर, अब आपको और फलों के नाम बताकर बोर नहीं करूँगा। बस यह समझ लें कि भारत में मौसमी फलों की कमी नहीं।

यह सब फल गरीबों को मिलते हैं पर दु:ख है कि वो इसका सदुपयोग नहीं करते। कई लोगों को यह भी लगता है कि फल से पेट खराब होता है, हैजा फैलता है। आपका प्रशासन इन पर कुछ हिस्सों में रोक भी लगा देता है। खैर।

बादाम तो भारत में लगभग सभी मिलते हैं। कुछ यहाँ के बादाम हालांकि वहां नहीं मिलते, और कुछ वहां के यहां नहीं मिलते। पर हम बादाम को भोजन नहीं मानते। इसलिए इनकी चर्चा पर मैं विराम देता हूँ। अब बात करेंगें कि भारत में भोजन बनता कैसे है।

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आपको भारतीय भोजन बनाना इस भाषण में तो नहीं सिखा पाऊँगा। यह मेरी शक्ति से परे है। एक रूपरेखा दे देता हूँ। भोजन से उपचार इंग्लैंड में नया-नया आया है। पर भारत में यह कई सदियों से चला आ रहा है। हमारे चिकित्सक दवा भी देते हैं, पर उनके उपचार का बड़ा हिस्सा भोजन में बदलाव है। कभी वो नमक से परहेज कहेंगें, कभी तीखे भोजन से।

अब साधारण सी बात है कि हम गेंहू पीसते हैं, तो उसमें से भूसी/चोकर अलग नहीं करते। हम ताजी पकाई रोटी ही खाते हैं घी लगाकर, ठंडी नहीं। हमारा मांस यही है। कोई कितना खाता है, यह रोटियों की संख्या से ही पता लगता है। दाल-सब्जी की गिनती नहीं होती। बिना दाल, या बिना सब्जी के भोजन संभव है पर बिना रोटी के नहीं।

दाल काफी आसान है। बस पानी में उबालना है। पर उसमें स्वाद तमाम मसालों से आता है। और यहीं कला है। कितनी नमक, कितनी हल्दी, कितना जीरा, कितनी लौंग, और दालचीनी। दाल अच्छी होगी, तो रोटी का लुत्फ आएगा। हालांकि दाल बहुत अधिक भी नहीं खानी चाहिए। और चावल की चर्चा भी कर ही दूँ। लोग कहते हैं कि बंगाली चावल अधिक खाते हैं, तभी मधुमेह के शिकार होते हैं। चावल और रोटी में रोटी बेहतर है। चावल अमीर ज्यादा खाते हैं। गरीब मजदूर रोटी खूब खाते हैं। हालांकि जब मुझे ज्वर हुआ, तो मुझे डॉक्टर ने गीला भात और उसका पानी पीने कहा। और मैं ठीक भी हो गया।

अब आते हैं सब्जियों पर। बनाने का तरीका दाल जैसा ही है, पर तेल और मक्खन का उपयोग ज्यादा होता है। कई बार बेसन भी। हम सादी उबाली हुई सब्जी नहीं खाते। उबले आलू जो आप खाते हैं, भारत में नहीं मिलते। भारत सब्जियाँ बनाने में फ्रांस से कहीं बेहतर है। सब्जी हमारे भोजन में दाल का सहयोगी है। और यह शौक की चीज भी है, कुछ बीमारियों की वजह भी। गरीब सब्जियाँ कम खाते हैं, उनको बस दाल-रोटी मिल जाए, काफी है। कुछ सब्जियाँ स्वास्थ्यवर्द्धक हैं। जैसे एक पालक जैसी दिखने वाली सब्जी ‘तंडलजा’ *। यह आंखों की रोशनी के लिए बहुत अच्छी है।

फिर आते हैं फल। हम खासकर फलाहार के दिन खाते हैं, रोज-रोज भोजनोपरांत नहीं खाते। आमरस खासकर आम के महीने में लोकप्रिय है, रोटी या चावल के साथ। हम फल को कभी पकाते नहीं। ताजे फल खाते हैं, कई बार खट्टे भी, भले ही स्वास्थ्य के लिए ठीक न हो। सूखे फल बच्चे खूब खाते हैं, जैसे छुहारे। यह शीतकाल में खासकर खाए जाते हैं। छुहारे गरम दूध में डाल कर, और तरह-तरह के मिष्टान्नों में।

बच्चे मीठे बादाम भी खूब पसंद करते हैं। मक्खन और दूध में तले बादाम। नारियल भी हम पीस कर दूध और चीनी डाल कर खाते हैं। आपको नारियल कभी ऐसे लड्डू बना कर चखना चाहिए।

आप सब को एक बात स्पष्ट कर दूँ कि यह भारतीय भोजन का बहुत ही छद्म ज्ञान था। आपको आगे खुद जानना और सीखना होगा। यह अंग्रेजी मांसाहारी और हिंदुस्तानी शाकाहारी भोजन का विभाजन हमारी संस्कृतियों को अलग करता है, जिसे जोड़ना होगा। तभी आपकी हिंदुस्तानियों के प्रति घृणा खत्म होगी। भोजन से ही दो देशों के दिल जुड़ सकते हैं।

पोर्ट्समाउथ के इस भाषण में गणमान्य ब्रिटिश व्यक्तियों के बीच बाइस वर्ष के गांधी बोलने में काफी घबड़ा रहे थे, जो इस लेख के शुरूआती हिस्से में नजर आता है। The vegetarians 16-5-1891 की रिपोर्ट

क्या कहा गांधी ने भारतीय त्यौहारों के विषय पर? Click here to read Gandhi’s speech about festivals of India

Author Praveen Jha translates one of the earliest speeches on vegetarianism by Gandhi.

Books by Praveen Jha. Click here

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