‘बोस’ के स्पीकर से सुभाष चंद्र बोस का कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन, सुभाष चंद्र बोस से संगीत जुड़ा है। आजाद हिंद फौज के जब कौमी तराना (राष्ट्रगान) की बात हुई, तो बोस को ‘वन्दे मातरम्’ और ‘जन गण मन’ दोनों ही क्लिष्ट और अभिजात्य लगे। उन्होंने कैप्टन आबिद अली और राम सिंह ठाकुर के साथ मिल कर इसका लोक-अनुवाद किया, और वही उनका राष्ट्रगान बना,
शुभ सुख चैन की बरखा बरसे
भारत भाग है जागा
पंजाब–सिंध–गुजरात–मराठा
द्राविड़ उत्कल बंगा
चंचल सागर, विंध, हिमालय,
नीला जमुना, गंगा
तेरे नित गुन गाएँ,
तुझ सा जीवन पाएँ,
हर तन पाए आशा,
सूरज बन कर जग पर चमके,
भारत नाम सुभागा
जय हो, जय हो, जय हो
जय जय जय हो।
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तभी इसे पश्चिमी बीट्स और राग देस के मिश्रण से राम सिंह ठाकुर ने संगीत दिया। इसी तरह इनका मार्चिंग गीत बना- ‘कदम कदम बढ़ाए जा’। इन दोनों गीतों के संगीत बिठाने में बोस का हाथ था। इसके अलावा भी आजाद हिंद फौज के कई गीत बने, जिस संकलन की आजादी के बाद कैसेट-सी.डी. भी आई।
हालिया बोस के प्रिय गीतों का संग्रह निकला जिसमें रबींद्र संगीत, विद्यापति गीत डाल कर बेचे गए। मुझे इसका कोई ज्ञान नहीं कि वाकई बोस की इन गीतों में ऐसी ही रुचि थी। लेकिन होगी ही। यह दोनों संगीत बंगाल में खूब सुने जाते थे। काजी नुजरूल इस्लाम को बोस ने कहा था,
‘आपके गीत ऐसे हैं कि युद्ध में लड़ते भी जोश आए और बंदी हुए तो भी’
राम सिंह ठाकुर का तो खैर क्या कहूँ? कमाल के फौजी संगीतकार। उन्हें सुभाष जी ने अपनी जर्मनी से लाई वायलिन देकर कहा,
‘राम! यह वायलिन आज़ाद हिंदुस्तान में बजाना’
उन्होंने आजाद भारत की आकाशवाणी में वह वायलिन बजायी भी।
गीत ‘सुभाष जी सुभाष जी वो जान-ए-हिंद आ गए’ सुनने के लिए क्लिक करें
Author Praveen Jha writes about musical contribution of Subhash Chandra Bose