टोंटी पंचायत

गाँव के बुजुर्गों को भी ठीक-ठीक याद नहीं, ये रंजिश कब शुरू हुई। दादा-परदादा के भी पहले की कहानी है। कन्नू-तम्मू के लकड़दादों के जमाने की। अंग्रेजों के जमाने की

महारानी तलाब पर आज पंचैती बैठी है। ये कोई नयी बात नहीं, हर साल बैठती है। इस पंचैती में पूरा गाँव आता है। कुछ जो दिल्ली-कलकत्ता चले जाए, पंचैती देखने छुट्टी लेकर आते हैं। पिछले कुछ बरख से पंचैती के दिन तलाब किनारे मेला भी लगने लगा है। कचौड़ियाँ छनती है, कंगन बिकते हैं, लमनचूस की रेड़ी और डिस्को वाला म्यूजिक। पंचैत न हुआ, कोई त्यौहार हो गया।

कईयों को ये भी नहीं पता कि पंचैत बैठी किसलिए, पर उन्हें ये जरूर पता है कि कन्नू ठाकुर और तम्मू ठाकुर आज फिर एक दूजे का गला दबाएँगें। कन्नू और तम्मू के लोग एक दूजे की धोती खींचेंगे और चड्डी में दौड़ाएँगें। कीचड़ में द्वंद होगा, गाली-गलौज होगा। बच्चे सीटी बजाएँगे, और बूढ़े फोकट में ज्ञान बाँटेंगें। सरपंच जी मचान पर चढ़ जायेंगें, और छेद वाली बाल्टी से ऐसे चिल्लायेंगें जैसे नेहरू जी स्टाइल भाषण दे रहे हों। मोर भी होगा, कौआ भी होगा, बंदर भी होगा, खाऊँ खाऊँ!

महारानी तलाब इलाके का सबसे बड़ा तालाब है। न पूरब, न पच्छिम। कहीं इतना बड़ा तलाब नहीं। उत्तर में गंगू तलाब है पर वो भी कोई तलाब है? एक महार पर सब शौच करते हैं, दूसरे महार पर पंडित मंतर पढ़कर लूटता है। मल-मूत्र से तर्पण कराता है। छी! महारानी तलाब भले ही छोटा है पर गाँव वालों की शान है। अंजुरि (अंजलि) भर पानी पी लो, तृप्त हो जाओ। अब कोई रात में छुपकर मूत ले, और बात है। दिन दहाड़े कोई शौच करे, ठाकुर लट्ठ ले दौड़ा दें। इस मौके पर कन्नू-तम्मू एक हो जाते हैं। एक ही भाषा बोलते हैं। नहीं तो कन्नू बोले ईर घाट, तम्मू बोले बीर घाट। किसी बात पर नहीं बनती।

गाँव के बुजुर्गों को भी ठीक-ठीक याद नहीं, ये रंजिश कब शुरू हुई। दादा-परदादा के भी पहले की कहानी है। कन्नू-तम्मू के लकड़दादों के जमाने की। अंग्रेजों के जमाने की। या शायद मुगलों के जमाने की।

किंवदंती है कि कई बरख पहले महारानी तलाब का बँटवारा हुआ। तालपत्र पर रेखाएँ खींची गई। कुछ कहते हैं वराह मिहिर ने कॉन्ट्रैक्ट लिया था, कुछ कहते हैं टोडरमल के रंगरूटों नें। कोई कहता है घूस-घास का चक्कर था, कोई कहता है गंगू तलाब वालों नें सस्ती मदिरा पिला दी थी। पूर्वी महार गोल थी, वो सीधी खींच थी। पच्छिमी महार खामख्वाह गोल कर दी। ऐसा विभाजन कर गए, ठाकुरों के मत्थे कुछ न पड़ा। एक बार तालपत्र देखते, एक बार तालाब, और सर पीट लेते। दोनों राजा साहेब के पास गए। राजा साहब का अमीन भँगेड़ी। तालपत्र पर भाँग का गोला डाल रोली करने लगा। रेखायें और आरी-तिरछी हो गई। खैर बँटवारा हुआ, तालाब का एक हिस्सा कन्नू के पूर्वजों का और दूजा तम्मू के।

तालाब तो साक्षात् क्षीरसागर थी। पर तम्मू के पूर्वजों के हाथ क्षीर भी ज्यादा और सागर भी। सब खा-पीकर मोटे होते गए। उधर कन्नू का खानदान कुपोषित।

कुपोषण में बुद्धि भी क्षीण हो जाती है। तम्मू के पूर्वज ताम्रपत्र के तगमे बटोरते गए, महारानी तालाब के पानी से खेत पर खेत सींचते गए। उधर हरियाली, इधर सुखाड़। उधर रंगरेलियाँ, इधर उधार।

राजा-महाराजा चले गए तो सियायतबाज आए। कुछ वाचाल, कुछ चंडाल, कुछ गुरूघंटाल।

कूटनीति का मंत्र है कमजोर के कान भरो, और शक्तिशाली के कान खींचो। पहले कानों को ‘ईयरमार्क’ किया गया। कमजोरों को पहचाना गया। कन्नू-तम्मू से बढ़िया प्रयोग के लिए कोई मॉडल न था। शुरूआत उन्हीं से हुई। तम्मू के कान खींचने की रणनीति बनी। कन्नू के कान भरे गए।

“कन्नू! ये बँटवारा ही गलत है। तालाब का सारा जल तो तम्मू ले जाता है और तुम्हें भनक तक नहीं होती।”

“क्या कहते हो? पुश्तैनी बँटवारा है। वो देखो तालाब के बींच खूँटा गड़ा है। पच्छिम से मेरा, पूरब से उनका।”

“भई, खूँटा ही तो गलत गड़ा है।”

“मुझे तो बीचों-बीच नजर आ रहा है।”

“हाँ, पर उधर से महार गोल है। तुम नापी करवा लो।”

“अरे जाओ! राजा साहब के जमाने का खूँटा है। पत्थर की लकीर है।”

कन्नू ने उनको देहरी से भगाया और हुक्का खींचने लग गए। पता नहीं क्यूँ, आज खूँटे पर संदेह वाकई हो रहा था। कहीं तम्मू ने खूँटा खिसका तो नहीं ली? भला उसके खेत लहलहा क्यूँ रहे हैं और हमारे सूखे पड़े हैं? और महार तो वाकई गोल है। भला नापी कराने में हर्ज क्या? इतने बरख में कितने तूफान आए, खूँटा न हिला होगा? दादा साहब के जमाने में भी सुना है खूँटे पर सवाल उठे थे। कागज-पत्तर भी पुराने हुए। पक्की नापी करवा के नये कागज बनवाऊँगा तहसीलदार से। फिर मेरे खेत भी लहलहायेंगें। शम्भू साव का सारा कर्जा निपट जाएगा।

अगले ही दिन अमीन को खबर दी, और तलाब की नापी शुरू हुई। चाहे पूरब-पच्छिम नापो, या उत्तर-दक्खिन। खूँटा हर तरफ से गलत। कन्नू सर पकड़ कर बैठ गए। तम्मू तमतमा गए। गाली-गलौज हुई। हाथापाई शुरू हुई। कन्नू कमजोर था, पर गजब की फुर्ती थी। झट से तम्मू की गर्दन पर लटक गया और चूल खींच कर गिरा दिया। तम्मू जब तक सँभलता, कन्नू छाती पर बैठ मेढकों की तरह उछलने लगा। राहगीर तमाशबीन बन गए।

ये एक ऐतिहासिक मल्लयुद्ध की शुरूआत थी, जिसे सियासती चौकड़ीबाजों ने ‘महारानी तलाब जल-विवाद’ का नाम दे डाला।

पंचायत बिठाई गई। अमीन की गवाही हुई। खूँटा ठीक से गाड़ने का फैसला हुआ। मछुआरे भेजे गये। सब बाप-बाप करते वापस आये। खूँटे की जड़ में साँपों का बसेरा।

“खानदानी खूँटा है ये। विरासत है हमारी। साँपों की रस्सी बनाकर देवासुर संग्राम करोगे तभी हिलेगा।” तम्मू ने जुमला फेंका।

पंचायत खलबला गयी। कन्नू-तम्मू को अपने हाल पर छोड़ भाग गई। कन्नू ने भी घुटने टेक दिये।

पर सियासतगर्द कहाँ रूकने वाले थे।

“देश चाँद पर पहुँच गया, और तुम इन अंधविश्वासों में अटके पड़े हो कन्नू?”

“तो क्या करूँ? पंचायत के मछुआरे भी फेल हो गए। मुझसे न हिलेगा वो खूँटा!”

“तो खूँटा हिलाने कह कौन रहा है? पानी बाँध दो।”

“क्या मजाक कर रहे हो? भला पानी भी बाँध सका है कोई?”

“अपने गाँव का ही तो है वीशू, विलायत से पढ़कर आया है। डैम बनाता है डैम! जहाँ मरजी, वहीं पानी बाँध दे।”

“भाई, मेरी समझ कुछ नहीं आ रहा। जो मरजी करना है कर लो।”

बड़ा शातिर इंजीनियर था वीशू। चेहरे से तेज चमकता था, गंगू तलाब के पंडित से भी ज्यादा। पैनी नजर और शुतुरमुर्ग सी चाल। महीने भर में तालाब के तल को टेढ़ा कर डाला और तालाब के पानी को कन्नू की ओर मोड़ कर डैम की टोंटी कस दी। अब कन्नू जितनी टोंटी खोले, तम्मू को उतनी पानी नसीब हो। टोंटी बंद तो पानी बंद।

तम्मू के खेत सूखने लगे, कम्मू के लहलहाने लगे। वीशु की विलायती टोंटी ने तो प्रकृति बदल कर रख दी। देवासुर-संग्राम में तकनीकी टोंटी लगाकर भाग गया। फलाँ बटन दबाओ तो अमृत और फलाँ दबाओ तो विष। और सारे बटन कन्नू के पास।

तम्मू ठहरा गँवार, और छुटभैये नेताओं की राजनीति का मारा। त्राहि-माम करता पंचायत भागा। सारी अकड़ स्वाहा हो गयी।

“हजूर! कन्नू से कहें, मुझे कम से कम हक की बराबर पानी छोड़े।”

“हाँ भई कन्नू! बात तो गलत नहीं है। तुम उतनी टोंटी खोल दिया करो।”

“पहले पुरखों की बेईमानी का हिसाब तो चुकता हो।” कन्नू अकड़ कर बोला।

“वो सब पुरानी बाते हैं, और ठहरे तो भाई-भाई ही।”

“ठीक है। तुम भी क्या याद रखोगे तम्मू! जा खोल दी टोंटी आज। लहलहा ले अपने खेत!”

कन्नू-तम्मू गले मिले और पंचायत खत्म हुई।

कुछ दिन सब ठीक चला, पर फिर ये टोंटा-टोंटी चालू हो गयी। कभी तम्मू का बेटा कन्नू के बेटे से स्कूल में भिड़ जाए तो दो दिन टोंटी बंद। कभी जनाना झगड़ा तो टोंटी बंद। आज संडे तो टोंटी बंद। कल रामनवमी तो टोंटी बंद।

हर साल पंचायत बैठती, और दोनों मल्ल-युद्ध करते। गाँव वालों का मनोरंजन करते।

तमाशबीन बढ़ते गए। टोंटी पर सियासत बढ़ती गई। टोंटी को सरकारी टोंटी घोषित कर दी गई। बड़े-बड़े नेता आते हैं, टोंटी के साथ सेल्फी खिंचवाते हैं। कन्नू और तम्मू मूक दर्शक हैं। कठपुतलियाँ हैं। जब मर्जी टोंटी दायें-बायें घुमा लड़वा दिया। टोंटी न हुआ विडियो-गेम का ‘जॉय-स्टीक’ हो गया।

“कहाँ है ये महारानी तलाब?” एक परदेशी राहगीर ने पूछा।

“यहाँ से दक्खिन नाक की सीध में।”

कन्नू-तम्मू की लड़ाई में महारानी तलाब भी गजब पॉपुलर हो रही है।


कावेरी जल विवाद लगभग 250 सालों से चल रहा दो राज्यों के मध्य एक अनवरत मतभेद है

Author Praveen Jha writes a satire about water controversies.

Books by Praveen Jha

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like
Kindle book hindi poster
Read More

किंडल पर पुस्तक कैसे प्रकाशित करें?

किंडल पर पुस्तक प्रकाशित करना बहुत ही आसान है। लेकिन किंडल पर किताबों की भीड़ में अपनी किताब को अलग और बेहतर दिखाना सीख लेना चाहिए। इस लेख में अमेजन किंडल पर पुस्तक प्रकाशित करने की प्रक्रिया
Read More
Rome part 1 poster
Read More

रोम 1 – मलबों का शहर

रोम की ख़ासियत कहें या उसका ऐब कि उस शहर से मलबे और भग्नावशेष उठाए नहीं गए। वे शहर के केंद्र में अपनी उम्र के झुर्रियों के साथ मौजूद हैं। चाहे नीरो के जीर्ण-शीर्ण भवन हों, या वैटिकन मूल्यों से पेगन मंदिर, वे अब भी झाँक रहे हैं। इस आधुनिक मुर्दे के टीले की कहानी इस संस्मरण में
Read More
Nalasopara Chitra Mudgal
Read More

एक किन्नर की चिट्ठी अपने माँ को

कुछ किताबें दिल-ओ-दिमाग में एक गहरी छाप छोड़ जाती है। चित्रा मुद्गल लिखित पोस्ट बॉक्स 203 नाला सोपारा एक लाइफ़-चेंजिंग किताब के खाँचे में बैठती है।
Read More