जबलपुर और संगीत का रिश्ता क्या रहा है, यहाँ तो बात भटक जाएगी। उस इलाके में संगीत-साहित्य की एक अलग बयार रही ही है। वहीं के एक फनकार की बात करता हूँ।
अब क़िस्सा कुछ यूँ है कि जब वह तीन-चार साल के रहे होंगे, तभी से टिन के डब्बे पर ठेका देते रहते थे। यह डब्बा कुछ ऐसा खिलौना बना कि जब भी माँ किसी भजन वग़ैरा के कार्यक्रम में जाती, तो वह बच्चा यह डब्बा लिए जाता और गाने के साथ बजाने लगता। यह सब बिना तालीम के हो रहा था, तो मुहल्ले में उस बच्चे की धूम हो गयी कि यह तो डब्बे पर बढ़िया तबला बजा लेता है।
उनके पिता संगीत की महफ़िलों में जाते रहते थे, संगीतकारों से मिलना-जुलना था। जहाँ भी जाते, अपने बेटे का यह हुनर दिखलाते।
उस दिन के बाद बच्चे की तालीम शुरू हुई। तबला खरीदा गया, संगीत महाविद्यालय में दाखिला दिलाया गया, और एक महफ़िल में ले जाया गया जहाँ युवा ज़ाकिर हुसैन अपने बाल हिलाते हुए मस्ती में तबला बजा रहे थे। बच्चे ने ठान लिया कि उसे भी यही बनना है।
वह बंबई जाकर मशहूर तबला-वादक सुरेश तलवालकर का शिष्य बना, और पहली बार वह बड़े कन्सर्ट में आखिर तबला लेकर बैठा। भारत में नहीं, पेरिस में।
लंबे बालों वाले मस्तमौला इन जबलपुरिया तबला-वादक को देखते ही उस टिन के डब्बे पर ठेका बजाते तीन साल के बच्चे का चेहरा सामने आ जाता है।
उनका नाम अब जरा अदब से लेना चाहिए। ‘पद्मश्री’ विजय घाटे जी।
#YearOfMusic #ragajourney
(क़िस्से उन्होंने खुद राज्य सभा टीवी के ‘शख़्सियत’ कार्यक्रम में सुनाए थे)
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यूँ तो उन्होंने हर आला संगीतकार के साथ संगत किया है, लेकिन ‘न्यू एज़’ शृंखला है तो एक लाज़वाब फ़्यूजन का लिंक दे रहा हूँ, जहाँ ड्रम, गिटार, और इलेक्ट्रिक सितार के साथ बज रहा है शुद्ध देशी ‘तबला’ – https://youtu.be/N-0Mqh7rsJc