विविध भारती और रेडियो सीलॉन

कभी एक केस्कर साहब नामक मंत्री हुए। उन्होनें फिल्मी गानों पर पाबंदी कर दी, यह कहकर कि वो बकवास है। बस शास्त्रीय संगीत बजेगा

कल यूँ ही हम दो मित्र ‘बिनाका गीत माला’ याद करने लगे। हमें लगा कि हमारे बच्चे जाने-अनजाने में भी ख़ास रफी-लता-मुकेश नहीं सुन पाएँगें। केबल टी.वी. के बाद वो कम सुने जाते हैं। न के बराबर।

पुराने संतोष (एक ब्रांड) रेडियो में हमारा कांटा ‘रेडियो सीलोन’ और बाद में ‘विविध भारती’ पर अटकने लगा। एक शॉर्ट-वेव पर, एक मीडीयम-वेव पर। वहाँ से कांटा हट जाता, तो बड़ी कठिनता से वापस पकड़ाता। मुझे लगता था ‘सीलोन’ भारत का शिलॉंग होगा। बाद में पता लगा कि ये श्रीलंका का है।

इसका इतिहास भी बड़ा रोचक था। कभी एक केस्कर साहब नामक मंत्री हुए। उन्होनें फिल्मी गानों पर पाबंदी कर दी, यह कहकर कि वो बकवास है। बस शास्त्रीय संगीत बजेगा। लोग ‘ऑल इंडिया रेडियो’ त्याग रेडियो सीलॉन सुनने लगे। और उन्ही दिनों अमीन सायनी साहब का उदय हुआ। फिर बाद में ‘बिनाका गीत माला’। बुजुर्ग बताते थे कि इसके हिट-लिस्ट में आने के लिए कई निर्देशक पीछे पड़ जाते। कहते कि लिस्ट ठीक से नहीं बनाई गई।

केस्कर साहब तो खैर बहुत पहले मान गए होंगें। पर विविध भारती पर बिनाका (बाद में सिबाका) मेरे ख्याल से 1990 के आस-पास आया। तब तक फौजी भाईयों के साथ ‘जयमाला’ हिट था। विविध भारती का रिसेप्शन भी अच्छा था। सीलॉन सुनना कम होने लगा।

मुझे (भी) यही लगता है कि ‘विविध भारती’ दरअसल ‘रेडियो सीलॉन’ को टक्कर देने आई होगी। और वह कामयाब भी रही, लेकिन अमीन सायनी की आवाज़ एक ऐसी ट्रेडमार्क बनी कि एकरस आवाज़ों के बदले बुलंद और स्पष्ट वक्ताओं की खोज शुरु हुई होगी। वही सिलसिला अब ‘बिग बॉस’ की आवाज़ तक चल रहा है। ‘वॉयस-ओवर’ जब पुरुष देते हैं तो मिमियाई सी या पतली आवाज ख़ास नहीं चलती, खुले गले की कम स्वरमान (लो पिच) वाली आवाज में ही दम नजर आता है। जबकि ऐसे आवाज़ विरले ही मिलते हैं।

आवाज़ की मानकता भले ही रेडियो सीलॉन से आयी हो, लेकिन विविधता में ‘विविध भारती’ बाजी मार गयी। जहाँ ‘रेडियो सीलॉन’ बस ‘बिनाका गीतमाला’ के दम पर रही, ‘विविध भारती’ ने झड़ी लगा दी। फौजी भाई की जयमाला, छायागीत, भूले बिसरे गीत.. लोगों को लगा कि जब इतना कुछ एक साथ मिल रहा है तो भला रेडियो सीलॉन क्यों सुनें?

दूसरी बात यह कि अमीन सायनी का जोड़ा सीलॉन के पास नहीं (कम) आया। लेकिन विविध भारती के पास एक से एक उद्घोषक आते गए। कमल शर्मा, ममता सिंह, अमरकान्त जी…न जाने कितने लोग तो पिछले दशक में भी रहे (और हैं) जबकि रेडियो अब डिज़िटल होता गया। ऐप्प बन गया। मुझे आज भी रेडियो सीलॉन याद आता है, लेकिन सुनता जब भी हूँ, ‘विविध भारती’ और ‘रागम’ चैनल ही हूँ। उसकी गुणवत्ता आज भी बरकरार है।

Previously published in Hindustan.

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