मेडिकल मिथक और सत्य

Medical myths truths poster
आम जीवन में स्वास्थ्य से जुड़ी कई भ्रांतियाँ, कई मिथक होते हैं। कुछ जीवन शैली का हिस्सा भी बन जाते हैं। ऐसे ही कुछ मिथकों की पड़ताल

मिथक 1

जब भी दर्द हो, दर्द की दवा ले लेनी चाहिए

सत्य

चिकित्सक अक्सर अपने प्रिस्क्रिप्शन में दर्द की दवा SOS लिखते हैं, जिसका अर्थ है कि जब दर्द बर्दाश्त से बाहर हो तो दवा ले लें। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हमें ज़रूरत से ज्यादा दर्द की दवा फाँक लेनी है। एक टैबलेट के बदले चार टैबलेट खाने से दर्द पर चौगुना प्रभाव नहीं पड़ेगा। न ही कम समयांतराल पर दवा खाने से। हमें यह सोचना है कि कितना दर्द बर्दाश्त से बाहर है, और प्रयास यही करना है कि दवा कम से कम लेनी पड़े। 

अगर दवा से दर्द पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा, तो अधिक दवा खाने की बजाय चिकित्सक से परामर्श लेना बेहतर। संभव है कि वे दवा बदल दें, या मूल समस्या के निदान की तरफ़ ले जाएँ। किसी भी स्थिति में प्रयास यही हो कि घर-घर में मौजूद ये पेनकिलर बिना चिकित्सक परामर्श रोज़मर्रा के दर्द के लिए प्रयोग न किए जाएँ।

मिथक 2

अब मैं ठीक हो गया, तो दवा की ज़रूरत नहीं रही

सत्य

अगर आपके चिकित्सक पाँच दिन की दवा लिखते हैं, और आप तीसरे दिन ही स्वस्थ महसूस करने लगते हैं, तो क्या दवा बंद कर देनी चाहिए? यह संभव है कि आपके चिकित्सक कुछ दवाओं के संबंध में ऐसा कहें। ख़ास कर ऐसी दवाएँ जो किसी लक्षण (जैसे दर्द, ज्वर) से जुड़ी है। लेकिन, रोग के इलाज के लिए दवाओं की एक कुल समयावधि निश्चित की जाती है। उससे पहले दवा बंद करने पर यह संभव है कि रोग पुनः लौट आए। 

जैसे एंटीबायोटिक आदि की खुराक पूरी करनी आवश्यक होती है, ताकि शरीर में जीवाणु पूरी तरह खत्म हो जाएँ। इसी तरह अन्य दवाएँ भी सिर्फ़ इसलिए बंद नहीं कर देनी चाहिए कि आप ठीक हो गए। बल्कि कुछ दवाएँ जैसे मधुमेह या रक्तचाप की दवा, हॉर्मोन आदि अचानक बंद करना शरीर को हानि भी पहुँचा सकता है। इसे चिकित्सक परामर्श से ही डोज घटाना या धीरे-धीरे बंद करना चाहिए। 

मिथक 3

जब भी खाँसी या बुखार हो, एंटीबायोटिक खा लेना चाहिए

सत्य

एक मरीज को पेशाब में कुछ जलन थी। जाँच में यूरिन इंफ़ेक्शन आया, और एक प्राथमिक एंटीबायोटिक दी गयी। उनकी जलन घटने के बजाय बढ़ती ही चली गयी। आखिर तेज बुखार में एडमिट करना पड़ा। जब यह जाँच की गयी कि उनके जीवाणु पर किस एंटीबायोटिक का असर होगा, तो मालूम पड़ा कि सिर्फ़ एक एंटीबायोटिक ही उन पर असर करेगा। उसकी एक डोज इतनी महंगी थी, जितने में बाकी दवाओं के दस पत्ते आ जाएँ। कारण यह था कि उन्होंने बचपन से ही हर ऐसे जलन या बुखार में एंटीबायोटिक फाँक ली थी। अब उन पर सभी ने असर करना बंद कर दिया था। यह आखिरी विकल्प भी अगर दो-चार बार लग गया, तो यह भी काम करना बंद कर देगा। उसके बाद वह क्या करेंगे?

यह ध्यान रखें कि एंटीबायोटिक सिर्फ़ चिकित्सक परामर्श से ही लें। कई खाँसी-बुखार का कारण वायरस होता है, जिन पर एंटीबायोटिक कोई असर नहीं करते। वे सिर्फ़ बैक्टीरिया पर असर करते हैं, वायरस पर नहीं। जो लोग बिना परामर्श एंटीबायोटिक खाने के बाद सुधार महसूस करते हैं, वे संभवतः उस दवा की वजह से नहीं, बल्कि अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता से ठीक हुए। कभी-कभार वायरस के साथ बैक्टीरिया भी मौजूद होते हैं, जिन पर वह असर कर जाते हैं। लेकिन, ऐसे उपाय चिकित्सक से पूछ कर ही करें। 

मिथक 4

एमआरआई स्कैन कराने से शरीर को नुक़सानदेह रेडिएशन मिलता है

सत्य

पिछले दशकों में कई नए तरह के जाँच आए हैं। अब ऐसे कई लोग मिल जाएँगे, जो एक सुरंगनुमा मशीन के अंदर जाकर अपने दिमाग, पेट, घुटनों या शरीर के किसी हिस्से का स्कैन करा चुके हैं। इनमें एक है सीटी स्कैन और दूसरा है एमआरआई। दोनों की मशीनें दिखने में एक जैसी होती है, जिसमें मरीज एक बिस्तर पर लेटते हैं, और बिस्तर एक सुरंग में जाती है। कुछ देर बाद स्कैन पूरा होता है, और वे बिस्तर सहित बाहर आ जाते हैं।

इनमें से सीटी स्कैन में एक्सरे की तरह रेडिएशन का इस्तेमाल होता है। इसका बहुत अधिक प्रयोग नुक़सानदेह हो सकता है, लेकिन आज के समय इसकी डोज़ घट गयी है। गर्भवती महिलाओं के लिए सीटी स्कैन लगभग पूरी तरह निषेध है। बच्चों को भी ख़ामख़ा इस जाँच में नहीं भेजा जाता। लेकिन, यह ध्यान रखें कि चिकित्सक ही यह बेहतर निर्णय लेंगे कि यह जाँच करानी है या नहीं। अगर बीमारी ऐसी है, जिसमें सीटी स्कैन करना अत्यावश्यक है, तो न्यूनतम संभव डोज़ रख कर यह जाँच की जाती है।

दूसरी तरफ़ एमआरआई में कोई भी नुक़सानदेह रेडियेशन नहीं। वह मैग्नेट (चुंबक) से संचालित होता है। मरीज को इसमें कुछ मशीनी आवाजें अवश्य सुनाई दे सकती है, लेकिन यह स्कैन शरीर को रेडिएशन हानि नहीं पहुँचाता। हालाँकि हर चीज के अपवाद होते हैं। मैग्नेट होने के कारण शरीर में किसी तरह का धातु या उपकरण इससे प्रभावित हो सकता है। इसलिए स्कैन से पहले सभी धातु निकाल दिए जाते हैं, और अगर कोई धातु शरीर के अंदर इंप्लांट हो, तो विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है। कुछ परिस्थितियों (जैसे पुराने पेसमेकर आदि) में एमआरआई करना संभव नहीं होता। 

मिथक 5

हृदय रोग बुढ़ापे की बीमारी है। हट्टे-कट्टे युवाओं को यह नहीं हो सकता

सत्य

पिछले वर्षों में कई युवा सेलिब्रिटी, खिलाड़ियों और अपनी फिटनेस का ध्यान देने वालों लोगों को हृदयाघात आया या मृत्यु हुई। इन खबरों के बाद कई तरह की अटकलें चली। षडयंत्रों से लेकर जीवनशैली पर प्रश्न उठे। जीवनशैली में बदलाव तो एक कारण है ही, लेकिन युवाओं में हृदय रोग कोई अजूबी चीज नहीं है। साठ से कम उम्र के व्यक्तियों में धमनियों का ब्लॉक होना संभव है। युवा महिलाओं में भी यह रोग बहुधा मिलता है।

इसलिए यह आवश्यक है कि कम उम्र से ही धूम्रपान, शराब आदि के सेवन कम या बंद करने के साथ-साथ अपने भोजन और जीवनशैली में बदलाव लाए जाएँ। तनाव घटाने के उपाय किए जाएँ। किन्ही चिकित्सक या अस्पताल के माध्यम से वार्षिक स्वास्थ्य जाँच कराना, और सुझावों को अमल लाना इस अकस्मात घटना से बचाव कर सकता है। कई बार छाती या पेट के ऊपरी हिस्से के दर्द को सामान्य एसिडिटी मान कर किनारे कर दिया जाता है, लेकिन जाँच करा लेना बेहतर है। इसी तरह ब्लड-प्रेशर (रक्तचाप) की समस्या भी कम उम्र में शुरू हो सकती है। 

मिथक 6

असुरक्षित यौन संबंध की अगली सुबह अगर इमरजेंसी पिल नहीं ली, तो बच्चा होना तय है

सत्य

यह सत्य है कि असुरक्षित यौन संबंध के बाद गर्भधारण संभव है। किंतु गर्भधारण एक ख़ास समय में हुए यौन संबंध से ही संभव है। हालाँकि अगर बच्चा न चाहते हों, तो असुरक्षित यौन संबंध से बचना चाहिए। पुरुष और महिला दोनों के लिए निरोध के अनेक उपाय हैं, जो यौन संबंध के पहले या दौरान लिए जा सकते हैं। अगर किसी कारण ये उपाय नहीं किए गए, तो इमरजेंसी निरोधक पिल हैं, जिसे चिकित्सकीय परामर्श से लिया जा सकता है। यह जितनी जल्दी लिया जाए, उतना ही कारगर है, लेकिन बहत्तर घंटों और उससे अधिक के भी उपाय हैं। इसमें घबराने की ज़रूरत नहीं, अगर अगली सुबह दवा नहीं ली या कुछ देर हो गयी। चिकित्सक इसका हल बता सकते हैं कि गर्भधारण से कैसे बचा जा सकता है, या शुरुआती गर्भधारण में क्या उपाय किए जा सकते हैं।

एक और मिथक युवाओं में प्रचलित है कि दोहरे कंडोम पहनने से उसके फटने की संभावना घट जाती है। किंतु चिकित्सकों ने यह निष्कर्ष पाया है कि दोहरे कंडोम में उसके फटने की संभावना बढ़ ही जाती है। यह यौन संबंध असहज होता है और कंडोम की बनावट के लिए अनुपयुक्त भी। 

मिथक 7

चश्मा लगाने से आँखें खराब हो जाती है

सत्य

यह मिथक अपने-आप में अटपटा लगता है क्योंकि चश्मा तो लगता ही तभी है, जब आँखें खराब होती है। लेकिन नेत्ररोग विशेषज्ञ अक्सर इस सवाल से गुजरते हैं कि चश्मा लगाने से क्या हमेशा के लिए आँखें खराब ही होती चली जाएगी। क्या एक बार चश्मा लग गया तो जीवन भर लगवाना पड़ेगा?

इस बात से सभी सहमत होंगे कि नेत्र एक महत्वपूर्ण इंद्रिय है, और दृष्टि में दोष घटाने के उपयोग किए जाने चाहिए। यह स्थिति तो सर्वोत्तम है कि बिना चश्मे के दृष्टि अच्छी रहे। लेकिन, अगर किसी तरह का दोष है जिसका निवारण चश्मे से हो सकता है, तो वह समय पर लगवा लेना चाहिए। चश्मे से दृष्टि में सुधार होता है, और इसकी ज़रूरत नेत्ररोग विशेषज्ञ तय करते हैं। ग़लत चश्मा लगाने से कुछ सरदर्द हो सकता है, उसे परामर्श से बदलवा लेना चाहिए। लेकिन चश्मा स्वयं आँखों की बनावट को खराब नहीं करता। 

मिथक 8

मासिक धर्म के दौरान महिलाएँ गर्भवती नहीं हो सकती

सत्य

यह मिथक कई युगलों में प्रचलित है और बाक़ायदा ऐप्प भी चल पड़े हैं जो सुरक्षित सेक्स की अवधि बताते हैं। इस मान्यता के अनुसार मासिक धर्म के आस-पास के चार-पाँच दिन सुरक्षित हैं, जब महिलाएँ गर्भवती नहीं हो सकती। यह मान्यता भले किताबी रूप से सही लगे, मगर प्रायोगिक रूप से ग़लत सिद्ध होता है।  इसके कई कारण हैं। 

पहली बात यह कि मासिक चक्र अनियमित भी हो सकता है, और रक्त-स्राव चक्र के बीच में भी हो सकता है। उम्र बढ़ने के साथ यह देखा गया है कि मासिक चक्र छोटे होने लगते हैं। दूसरी बात कि ऑव्यूलेशन यानी अंडे का रीलीज़ होना मासिक चक्र में कुछ पहले या बाद में भी हो सकता है। ऐसे गर्भधारण अक्सर मिलते हैं जो मासिक धर्म के चौथे-पाँचवे दिन ही हो गए। तीसरी बात कि कोई भी ऐप्प या गणना की विधि पक्की नहीं होती। इन विधियों का उपयोग गर्भधारण से बचने के लिए नहीं, बल्कि इसके ठीक उलट गर्भधारण के उपयुक्त समय को जानने के लिए किया जाता है। गर्भधारण से बचने का उपयोग तो गर्भनिरोधक विधियाँ (पिल, कंडोम, कॉपर टी, स्पाइरल आदि) ही हैं। इस विषय पर शंका-निवारण के लिए अपने चिकित्सक या स्त्रीरोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। 

[यह लेख कालनिर्णय पंचांग 2023 में पूर्व प्रकाशित]

Author and doctor Praveen Jha writes about some common medical myths and truths. 

प्रवीण झा की किताबों के लिए क्लिक करें 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like
Jackson Halt Review Poster
Read More

भय का रोमांच- जैक्सन हाल्ट

मनोवैज्ञानिक थ्रिलर में कई प्रयोग होते रहे हैं। रेलवे प्लैटफॉर्म के बंद कमरे, ट्रेन की आवाज, साहित्य और भोजन चर्चा के बीच उपजे इस थ्रिलर में भारतीयता खुल कर निखरती है। फिल्म जैक्सन हॉल्ट पर बात
Read More
Rajasthan Patrika opinion column
Read More

क्यों भारत की बड़ी शक्ति हैं युवा?

भारत की जनसंख्या एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ से इसके दो रास्ते हैं। एक इसे नरम महाशक्ति बना सकती है, वहीं दूसरी इसे एक भंवर में डाल सकती है।
Read More
Folk Music Indian Cinema Poster
Read More

क्या सिनेमा में भी लोकगीत हो सकते हैं?

इसी दौर में पहली बार शायद हैदर साहब लाहौर से ढोल लेकर पंजाबी लोकगीत लेकर आए, और धीरे-धीरे कई पंजाबी धुनें फ़िल्मों में आती गयी। लेकिन मेरा मानना है कि अगर गिनती की जाए तो बिहार-यूपी के लोकगीतों की संख्या कहीं ज्यादा होगी।
Read More