भोला बाबा (शिव) के लिए मिथिला में दो तरह के गीत हैं- महेशवाणी और नचारी। दोनों का दो मूड है। यह अंतर समझने के प्रयास किए क्योंकि कई बार एक ही तरह से गाने लगते हैं।
नचारी में हम नाच कर शिव से विनती कर रहे हैं, लेकिन इसका मूल ‘नाच’ नहीं, लाचारी है। इसमें भी पुरुष-स्त्री के गाने का लहजा अलग है। पुरुष तो वाकई लाचार दु:खी होकर गाएँगे-
कखन हरब दुःख मोर हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाओल
सुख सपनहु नहि भेल हे भोला।
एहि भव सागर थाह कतहु नहि
भैरव धरु करुआर; भनहि विद्यापति मोर भोलानाथ गति
देहु अभय बर मोहि, हे भोलानाथ।
बाबाधाम के रास्ते में थके-भकुआए झूमते लेकिन करुणा भाव से गाते काँवड़िए मिलेंगे।
वहीं, स्त्रियाँ इस दु:ख में व्यंग्य का पुट ले आती है। उनकी शिकायत यह होती है कि इतने बूढ़े, फक्कड़ आदमी के साथ भला पार्वती कैसे रहेगी, जो भूतों की बारात लेकर आए हैं? तो यहाँ तंज-मिश्रित दु:ख है।
‘पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना, सम्पति मध्य देखल भांग घोटना। गौरा तोर अंगना’
(संपत्ति के नाम पर बस भांग-घोटना है, शिव के आंगन में)
वहीं, महेशबानी इसका एक तरह से जवाब है। यह ‘डेविल्स एडवोकेट’ वाली बात है जिसमें शिव को हम डिफेंड करते हैं। हम इसमें ‘मनाईन’ (पार्वती की माँ) को कहते हैं कि शिव बहुत ही अच्छे व्यक्ति हैं, उन पर लांछन ग़लत है। और यहाँ भी कई बार भक्ति में तंज का प्रवेश हो जाता है, कि भोला बाबा तो भोले हैं। ग़लती तो भांग की है। यह निर्मोही हैं, दुनिया की सोचते हैं, इसलिए स्वयं फक्कड़ रहते हैं।
दु:ख ककरो नहि देल, अहि जोगिया के भांग भुलेलक/धथुर खुआई धन लेल
(कभी किसी को दु:ख नहीं दिया हमारे महादेव ने; यह तो भांग-धतूरे ने फक्कड़ बना दिया)
नचारी में आप शिव के सामने खड़े हैं, और अपनी बात रख रहे हैं। महेशवाणी में हम शिव के साथ खड़े हैं, और शिव का पक्ष ले रहे हैं।
विद्यापति ने अगर गौरी की तरफ से शिकायत में और विनती में नचारी लिखी, तो शिव की तरफ से जवाब में महेशवाणी भी लिखी।
स्त्री-पुरुष, दोनों पक्ष से महादेव को देखना ही अर्धनारीश्वर की भक्ति का रूप रहा।
Author Praveen Jha describes two lyrical forms of songs based on Lord Shiva in North India.
2 comments
सुंदर
बहुत बेहतरीन जानकारी है, हमलोग तो भूल गए थे, याद कराने का धन्यवाद। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।