लद्दाख 8- तुमचूर

Ladakh Part 8 poster
बौद्ध धर्म समय के साथ खर्चीला और आडंबरी होता गया। लेकिन इससे संस्कृति में लोसार महोत्सव, संगीत और तुमचूर जैसी चीजें आयी। कभी रेशम मार्ग से जुड़े लद्दाख में आज भी ऐसे संसाधन छुपे हैं, जिस पर नज़र नहीं पड़ी। संस्मरण के आखिरी खंड में इन पर बात।

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1

सबसे ऊँचा लद्दाख

कभी खारदुंग-ला दुनिया की सबसे ऊँची सड़क थी। अब लद्दाख में ही उससे ऊँची कई सड़कें बन गयी है, जैसे 2017 में बनी उमलिंग-ला सड़क 19300 फीट ऊँचाई पर है। लेकिन, खारदुंग-ला में अभी भी पुराने बोर्ड चल रहे हैं। चाय की टपड़ियों ने लिख दिया है कि हम दुनिया में सबसे ऊपर चाय पिलायेंगे। एक बिजली ग्रिड पर लिखा है कि सबसे ऊँचे ग्रिड हैं। नुब्रा नदी पर एक जिपलाइन सबसे ऊँची जिपलाइन है। वहाँ की गोकार्टिंग दुनिया की सबसे ऊँची है, जो मैंने कर ली। वहाँ से निकला तो आगे बोर्ड मिला- ‘यहाँ दुनिया की सबसे ऊँची जगह ATV बाइक चलवायी जाती है’। 

जब हम उस ऊँचाई पर पहुँच कर नीचे उतरने लगे, तो चालक ने एक ग्लेशियर से बहते पानी से बोतल भर लिया।  आगे सड़क किनारे कुछ लद्दाखी महिलाएँ सड़क बनाने के लिए पत्थर उठा कर ढेर लगा रही थी। एक महिला दूसरी महिला को पत्थर देते हुए कोई गाना गा रही थी, जो शायद उनका लोकगीत रहा होगा। कुछ दूर चलने पर कालिख से पुते हुए बिहारी मजदूरों का जत्था मिला। उनमें से एक ने गाड़ी को हाथ देकर पानी माँगी, चालक ने अपना पानी का बोतल दे दिया।

‘जब यह सड़क नहीं थी, तो लोग कैसे जाते थे?’

‘हमारे टाइम से तो सड़क था। जब छोटे थे तो एक स्टेट गवर्नमेंट का बस जाता था। हम तो ज्यादा नहीं पढ़ा सर, लेकिन स्कूल से जब नुब्रा ले जाता था तो लगता था जैसे दिल्ली-बंबई पहुँच गया। तब लद्दाख से बाहर का दुनिया बहुत कम लोग देखा था’

‘सुना है पहले खच्चर और ऊँट से सफर करते थे?’

‘वह तो बहुत पहले। अभी भी ऊँट सब रखा है हुंडेर में’

‘राजस्थानी ऊँट?’

‘नहीं, यहाँ वह ऊँट कहाँ चलेगा? यहाँ मंगोलिया का ऊँट है’

‘अच्छा, दो कूबड़ (hump) वाले ऊँट? वैसे यहाँ से साइबेरिया तक तो ठंडे रेगिस्तान ही फैले हैं, तो ऊँट होंगे ही’

हुंडेर पहुँच कर वाकई रेत के टीले दिखने शुरू हो गये, जिस पर दर्जनों ऊँट चल रहे थे। तपती धूप में यह ठंडा मरुस्थल तो कई गर्म मरुस्थलों को मात कर दे। पूरे लद्दाख की सड़कों और घरों पर लगे सोलर पैनल भी इस बात की तस्दीक़ करते हैं कि यहाँ सूर्य पूरी गर्मजोशी से रहते हैं। आखिर यह दुनिया की सबसे ऊँची जगहों में जो है।

‘आपलोग दीवाली मनाते हैं?’, मैंने पूछा

हमारा लोसार फ़ेस्टिवल होता है। वह दीवाली जैसा ही है। नया साल का फ़ेस्टिवल। खूब गाना, नाचना। लैंप जलाना’

‘अच्छा। उसी में आपके गाँव की एक जाति गाना-बजाना करती है?’

‘हाँ! मोन और वेदा लोग। मोन अधिकतर हिंदू है, वेदा में मुसलमान ज्यादा है। ये लोग आपका ढोल जैसा इंस्ट्रूमेंट बजाता है’

‘मैंने सुना है कि वे निचली जाति हैं’

‘हाँ सरजी। मोन लोगों में कोई दूसरा शादी नहीं करता है। वो लोग अपना कम्युनिटी बना कर रहता है। घूम-घूम कर गाना-बजाना करता है। अभी तो बहुत कम हो गया’

‘अच्छा, यह बताइए कि आपलोग लाशों को दफ़नाते हैं या जलाते हैं? ख़ास कर ठंड में। ये श्मशान संभालने वाले भी निचली जाति हैं?’

‘हमलोग जलाता है सरजी। कोई भी मरता है तो उसके बॉडी को छूना मना है। पहले गाँव का मोनास्ट्री से लामा आता है। वो कुछ मंत्र पढ़ता है। फिर हमलोग वन वीक तक उसका बॉडी को रखता है, तब जाकर जलाता है। जलाता तो हमलोग ही है, कोई दूसरा जाति नहीं है’

‘एक हफ्ते तक लाश घर में रखी रहती है? कैसे?’

‘वह जहाँ सोता है, वहीं रखता है। उसी के रूम में। ठंड में तो बॉडी रह जाता है। गर्मी में बर्फ़ सब डालना पड़ता है’

‘सात दिन तक आपलोग एक लाश घर में रखते हैं, यह तो अजीब बात लगती है। इसको कुछ बदलिए। जल्दी जला कर डिस्पोज करिए’

‘अब वो हमारे हाथ में तो नहीं है सरजी’

“फिर क्या उनका स्मारक बनाते हैं? पत्थर वगैरा रखते हैं? पेड़ रोपते हैं?”

‘गरीब लोग तो पत्थर रख दिया। उसी पर ऊँ मणिपद्मे हूँ लिख दिया। बाकी कुछ लोग माने, कुछ तुमचूर बनाता है। पैसा के हिसाब से’

‘माने यानी बौद्धस्तूप। तुमचुर क्या है?’

‘तुमचुर आप बहुत देखा होगा मोनास्ट्री में। वह पीतल का ड्रम जिस पर मंत्र लिखा रहता है, और गोल-गोल घुमाता है’

‘हाँ हाँ! वह तो बहुत घुमाए हैं। वह बनवाना महंगा है?’

‘एक छोटा तुमचूर बनाने में तीन-साढ़े तीन लाख का खर्चा है। वो पूरा पीतल का रहता है। फिर तिब्बतन में लिखना पड़ता है। वो सब महंगा है’

‘यानी घुमा-फिरा कर बौद्ध धर्म भी कम महंगा नहीं। ऊपर मोनास्ट्री में दानपेटियाँ देखी, तारा की मूर्ति के सामने बड़े-बड़े नोट रखे देखे, अभी यह साढ़े तीन लाख का तुमचूर, शवदाह का खर्चा, शादी-ब्याह का खर्चा’

‘पहले नहीं था सरजी। अभी टूरिस्ट आने से सबके पास पैसा बढ़ रहा है। लोग बाहर जाकर भी देखता है तो गाँव में दिखाने के लिए ये सब खर्चा करता है। कंपीटिशन चलता है कि कौन बड़ा तुमचूर बनाएगा…माने (स्तूप) भी पहले मिट्टी का बनता था और हमलोग हर साल उसको रंग कर मेंटेन करता था। अभी तो सीमेंट का पक्का माने बना रहा है, जो दस-पंद्रह साल रह जाता है। उसको मेंटेन करने का जरूरत नहीं…लेकिन सरजी! वह मिट्टी का माने ही अच्छा था। अभी झूठ-मूठ का दिखाता ज्यादा है, पूजा कम करता है’

2

थ्री इडियट्स और जादुई पीली मिट्टी

‘थ्री इडियट्स फ़िल्म के बाद लद्दाख का टूरिज़्म बढ़ा है। इट्स अ फैक्ट। इंडिया में लोग फ़िल्म को बहुत वैल्यू देते हैं। आपने देखा होगा- भाग मिल्खा भाग प्वाइंट, जब तक है जान फ़िल्म का शाहरुख ख़ान प्वाइंट, रैन्चो का स्कूल। पेंगोंग लेक के पास पीले स्कूटर पर पोज देती लड़कियाँ। जबकि उससे बेहतर प्वाइंट भी लद्दाख में है। फोरेनर्स उन जगहों पर जाते हैं, इंडियन कम जाते हैं’, मि. दोरजी ने कहा

जब मैं पेंगोंग लेक की ओर जा रहा था, तो सामने एक टेम्पो ट्रैवेलर गाड़ी से किसी ने दो प्लास्टिक की बोतल सड़क के किनारे फेंक दी। 

हमारे चालक ने गुस्से में गाड़ी रोकी, वे बोतल उठाए और कहा, ‘हम उसको पकड़ेगा सर!’

रास्ते पथरीले थे, और कई जगह ग्लेशियर का पानी पूरे प्रवाह में सड़क पर आ गया था। कुछ वक्त लगा मगर उन्होंने गाड़ी का पीछा कर पकड़ लिया और डाँटते हुए कहा कि बोतल कूड़ेदान में ही फेंके। उसमें बुजुर्गों की एक टोली सफर कर रही थी, जिनका ध्यान संभवतः पूरे रास्ते लगे बोर्ड पर नहीं गया – ‘यह नो-प्लास्टिक जोन है। कृपया पोलीथिन या बोतल न फेंकें’

‘सरजी। अभी टूरिस्ट सीजन खत्म होने के बाद हमलोग एक बड़ा गाड़ी लेकर आता है, और सब कचरा अपने हाथ से कलेक्ट करता है। थोड़ा तो टूरिस्ट को भी हेल्प करना चाहिए’

‘आपके कौन लोग यह करने आते हैं? कोई समाजसेवी समूह है?’

‘ये हमारा जो टैक्सी ड्राइवर एसोसिएशन है, वो लॉटरी से पचास ड्राइवर चुनता है, जिसको ये काम करना है। उसको मना नहीं कर सकता है’

‘हाँ! यह लॉटरी से वोलंटियर चुन कर सफाई कराने की प्रथा नॉर्वे में भी है। मेरी किस्मत ऐसी कि हर बार मेरा नाम फँस जाता है’

‘अच्छा है न सरजी। लद्दाख का सफाई हमलोग करता है। ये तो हमारा घर है न? तो सफाई कौन करेगा?…ये देखिए मारमोट (Marmot) !’, उन्होंने एक मोटे-ताजे रंगीन चूहे जैसे जीव की ओर दिखा कर कहा

‘यह यहाँ की गिलहरी है?’

‘हाँ। ये ठंडा का छह महीना बिल के अंदर रहता है, गर्मी का छह महीना बाहर’

पेंगोंग झील दुनिया का सबसे ऊँचा खारे पानी का झील है, जिसका एक तिहाई हिस्सा भारत और दो तिहाई हिस्सा चीन में है। झील के दूसरी तरफ़ दूर कुछ काले पहाड़ चीन के बताए जाते हैं। इसी झील के रास्ते से एक शाखा गलवान घाटी में जाती है, जहाँ भारत और चीन सेनाओं के मध्य हाथापाई हुई थी (हाथापाई इसलिए कि यह LAC- Line of Actual Control है, जिसमें दोनों सेना बारूद हथियार नहीं रख सकती)।

मैंने मि. दोरजी से पूछा, ‘चीन ने जो लद्दाख का हिस्सा हड़प रखा है, और तिब्बत पर अधिकार जमा चुकी है, इससे यहाँ के वासी चिंतित हैं?’

‘ये बहुत लंबी कहानी हो जाएगी। अक्साइ-चिन चाइना ले गया, बाल्टिस्तान पाकिस्तान में गया, तो भी लद्दाख बहुत बड़ा है। जे एंड के का बड़ा लैंड शेयर तो लद्दाख में था, लेकिन हमको रिप्रजेंटेशन क्या मिला?’

‘आपका मतलब भारत के संसद और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा से है?’

’उससे पहले से भी जब डोगरा राज में लद्दाख आया, तो उन्होंने सिर्फ़ हमारा रिसोर्सेज़ लिया, दिया कुछ नहीं। यहाँ एक क़िस्सा सुनाते है कि लद्दाख से माइनिंग कर के सोना और बाक़ी चीज़ें ले जाते थे, और लद्दाखी लोग कहते थे- ये पीली मिट्टी ले जाकर क्या करेंगे? ले जाने दो!….पाशमीना बकरी लद्दाख में है, मगर पाशमीना शॉल का फैक्ट्री कश्मीर में है। लद्दाखी बकरी पालते, चराते, खिलाते-पिलाते हैं, और उससे पैसा कमाते हैं कश्मीरी’

‘इसमें तो यहाँ के लोगों की भी ग़लती है कि उनमें औद्योगिक रुचि नहीं थी। बाज़ार की समझ नहीं थी। मगर संसद और विधानसभा में तो सीटें थी ही’

‘कितनी सीटें? पूरे जम्मू-कश्मीर का आधा से अधिक हिस्सा लद्दाख है, और हमें सीट मिली थी चार। जबकि जम्मू और कश्मीर दोनों से लगभग 40-40 सीट थे। पार्लियामेंट में तो अभी भी एक ही सीट है। पूरे लद्दाख के लिए! आपने तो घूमा है। क्या लद्दाख एक एमपी के बस का है?’

‘जनसंख्या भी तो कम है। जमीन से प्रतिनिधित्व नहीं तय होता। आपलोग तो पूरे जम्मू-कश्मीर के पाँच प्रतिशत भी नहीं थे। अब तो यूनियन टेरिटरी बन गया। अब ठीक है?’

‘यू टी विदाउट लेजिस्लेचर। दिल्ली के पास मुख्यमंत्री है, लेकिन लद्दाख के पास नहीं है। हमारा असेंबली नहीं है। कम से कम स्टेटहुड तो मिलना चाहिए’

‘आपको तो तकनीकी बातें पता ही होंगी। जम्मू-कश्मीर का किसी भी राज्य से अलग विधान, अलग महत्व रहा है। आपका क्षेत्र तो दो संवेदनशील सीमाओं पर है। सेना का नियंत्रण है। यहाँ इस तरह स्टेटहुड नहीं मिल सकता’

‘पता है। पता है। बॉर्डर स्टेट बहुत सारे हैं। टेक्निकल सॉल्यूशन निकल जाएगा। हमारे पास बहुत वेल्थ है, रेयर मिनरल है, जो अभी ठीक से एक्सप्लोर होना बाकी है’

‘बचा कर रखिए। एक बार इंडस्ट्री को पता लगा तो सारे पहाड़ काट कर, नदियाँ छान कर निकल जाएँगे’, मैंने कहा

‘वो तो ऑलरेडी शुरू हो गया है। 20 हज़ार एकड़ जमीन तो रिजर्व हो गया। लेकिन अब हमें मालूम है कि लद्दाख के पास जो वेल्थ है, वह पीली मिट्टी नहीं, गोल्ड है’

‘मतलब जैसे अमरीका के लिए अलास्का, भारत के लिए लद्दाख? जहाँ ऐसा ख़ज़ाना दबा है, जिसकी खबर ही नहीं’

वह मुस्कुरा उठे।

In last series on Ladakh, Author Praveen Jha describes the religious rituals and natural resources of Ladakh.


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