भय का रोमांच- जैक्सन हाल्ट

Jackson Halt Review Poster
Jackson Halt Review Poster
मनोवैज्ञानिक थ्रिलर में कई प्रयोग होते रहे हैं। रेलवे प्लैटफॉर्म के बंद कमरे, ट्रेन की आवाज, साहित्य और भोजन चर्चा के बीच उपजे इस थ्रिलर में भारतीयता खुल कर निखरती है। फिल्म जैक्सन हॉल्ट पर बात

लगभग एक कमरे में शूट हुई फ़िल्मों में ‘एक रुका हुआ फैसला’ (12 angry men) और रियर विंडो (हिचकॉक) मेरे प्रिय में है। उदाहरण और भी हैं। सीरियल किलर में रामगोपाल वर्मा ने ‘कौन’ बनायी थी, जिसमें तीन किरदार और एक बंगला था। इन सभी में एक चैलेंज होता है कि दर्शक को कैसे बाँधें? एक कमरे में आखिर क्या-क्या समाए? दृश्य कैसे बदले?

बहुत दिनों बाद एक इस तरह की फ़िल्म देखी- जैक्सन हॉल्ट। लगभग पूरी फ़िल्म रेलवे प्लैटफॉर्म के एक कमरे में गुजर जाती है। यह सीरियल किलर थ्रिलर है, लेकिन निर्देशक ने इस गुत्थी को सुलझाने में बहुत स्ट्रेस नहीं दिया है कि वह कौन है। वह तो पोस्टर पर ही स्पष्ट कर दिया।

पूरा कथानक इस पर आधारित है कि आप एक सीरियल किलर के साथ एक वीरान प्लैटफ़ॉर्म के बंद कमरे में बैठे हैं। अब आपकी मनोस्थिति क्या होगी? आप किस तरह इस समस्या से बाहर निकलेंगे? आप किस तरह के संवाद करेंगे? आपके चेहरे के भाव कैसे होंगे?

कोल्ड-ब्लडेड मर्डरर का किरदार एक स्टीरियोटाइप ही होता है। एक भीरू सा दिखता साहित्य-कला में रुचि रखने वाला एकांत-प्रेमी व्यक्ति। अल्फ्रेड हिचकॉक के ‘साइको’ छवि को थोड़ा-बहुत फेर-बदल कर बनाया जा सकता है। इसमें ओवर-ऐक्टिंग की गुंजाइश कम है। यह बहुत धैर्य से निभाना पड़ता है। यह कहा जा सकता है कि फ़िल्म उद्योग को इस फ़िल्म से ऐसा एक कमाल का अभिनेता मिल गया है। क्लोज शॉट कैमरे से जो चेहरा स्क्रीन पर दिखा है, वह बिल्कुल स्थिर है, मगर उसकी आँखें, उसकी भाव-भंगिमा, उसका संवाद एक मास्टर-स्केच है। उसके ठीक सामने बैठे अभिनेता पर जब कैमरा जाता है, तो वह भय की प्रतिमूर्ति दिखता है। उसे पता है कि वह अब मरने वाला है, मगर वह इसे प्रोक्रैस्टिनेट करने की जुगत कर रहा है (टाल रहा है)।

इसमें एक तीसरे किरदार का होना तो उस छोटे से कमरे को अधिक भयावह बना देता है। वहाँ जब-जब कैमरा जाता है, वह साधारण से दिखते टूटे-फूटे संवाद कहता है। मगर उसके चेहरा स्क्रीन को अपने शिकंजे में ले लेता है। उसका चश्मा, उसके दाँत, उसका पहनावा, उसकी मुस्कान, सब एक रहस्य रचते रहते हैं।

ऐसा नहीं कि फ़िल्म एक पल के लिए भी नहीं बिखरती। इसके सम्मोहन से आप तभी बाहर निकलते हैं, जब कुछ क्षण के लिए कोई चौथा किरदार दिख जाता है। ज़ाहिर है वह दृश्यों को लिंक करने के लिए हैं, मगर दर्शक वापस उस कमरे में लौटना चाहता है। भाग्य से ऐसे दृश्यांतर मात्र कुछ मिनटों के लिए होते हैं।

ऐसी फ़िल्में बनती रहनी चाहिए। यह Beyond language, beyond border फ़िल्म कही जा सकती है। ऐसा इसके बैकग्राउंड म्यूजिक और फ़िल्म के अंत के बाद आए रैप गीत से भी दिखता है। कंटेंट ऐसी चीज है कि हम कोरिया और कोलंबिया की भाषा में फ़िल्में देख लेते हैं। यह तो मैथिली में है।

जैक्सन हॉल्ट देखने के लिए क्लिक करें

Author Praveen Jha shares his experience about movie Jackson Halt

जैक्सन हॉल्ट का ट्रेलर यहाँ देखें

 

 

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