लेखक के बारे में…

दुनिया किसी एक राह, एक दृष्टि, एक सोच से नहीं बनी। इसके इतने आयाम हैं कि हमारा जीवन इसे समझने के लिए बहुत छोटा है। अगर कलम चलेगी, तो किसी उन्मुक्त पंछी की तरह कभी इस डाल, कभी उस डाल।

लेखन के समय विशेषज्ञताओं के आडंबर को परे रख देते हैं। वह क़िस्सों की दुनिया में जाते हैं, तो अपने आस-पास की दुनिया से कहानियाँ बुनते हैं। वह इतिहास पर लिखते हैं, तो किसी इतिहासकार की तरह नहीं, बल्कि एक आम दर्शक की तरह जो कुछ ढूँढ रहा है, कुछ सुना रहा है, कुछ प्रश्न रख रहा है, कुछ जवाब कहने की हिमाक़त कर रहा है। वह खेल पर लिखते हैं, तो उसमें वह अपनी मस्ती में रम जाते हैं। वह मानते हैं कि दुनिया का हर व्यक्ति खेल और संगीत से जुड़ा है, भले वह अनभिज्ञ हो। संगीत से लेखक का जुड़ाव गुरु-शिष्य परंपरा की तरह भी है, और वह दरभंगा घराने की प्राचीन ध्रुपद बानी के शिष्य हैं।

प्रवीण पेशे से रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सक हैं। उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई बायरामजी जीजीभाई मेडिकल कॉलेज, पुणे से की। यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलिनोइस अरबाना शैम्पेन से न्यूरोसाइंस में शोध के पश्चात वह भारत लौटे। उन्होंने दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से रेडियोलॉजी में विशेषज्ञता प्राप्त की। दिल्ली और बेंगलुरू के अस्पतालों में कार्य करने के पश्चात नॉर्वे के कॉन्ग्सबर्ग में कार्यरत हैं।

वह स्वयं को आजीवन प्रवासी की तरह देखते हैं, एक यायावर की तरह नहीं। वह यात्राएँ लंबी और ठहराव वाली रखना चाहते हैं, जो सर्वथा संभव नहीं होता। अलग-अलग स्थानों पर रहने के कारण वह मैथिली, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी, मराठी, कन्नड़ और नॉर्वेजियन लिख और बोल लेते हैं।

प्रवीण की प्रवासी गिरमिटियों पर निजी शोध आधारित पुस्तक ‘कुली लाइंस’ वाणी प्रकाशन से छपी है, और उसका चौथा संस्करण आ चुका है। संगीत पर क़िस्सागोई अंदाज़ में लिखी पुस्तक ‘वाह उस्ताद’ राजपाल प्रकाशन से छपी है, जो कलिंग साहित्योत्सव द्वारा Book Of The Year (2021) चयनित हुई।

उन्होंने नॉर्वे और भारत के संस्कृति की तुलना पर पुस्तक ‘खुशहाली का पंचनामा’ लिखी है, जो मैंड्रेक प्रकाशन से है। प्रवीण की वर्तमान समय में सबसे अधिक पुस्तकें ईसमाद प्रकाशन और बॉन्जुरी प्रोजेक्ट के अंतर्गत है। उनमें जयप्रकाश नारायण की लघु जीवनी, जॉन एफ केनेडी को केंद्र में रख कर अमरीकी इतिहास, अमरीका का आरंभिक इतिहास (इंका, एज्टेक, माया), रिनैशाँ- भारतीय नवजागरण का इतिहास प्रमुख हैं। उन्होंने आइसलैंड और नीदरलैंड के लघु यात्रा संस्मरण भी लिखे। रूस पर आधारित पुस्तक ‘रूस, रशिया और रासपूतिन’ वाणी प्रकाशन से छपी है।

प्रवीण की छवि मसिजीवी की रही है, जो पुस्तकों से इतर भी तमाम पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लिखते रहते हैं। ख़ास कर दैनिक भास्कर में ‘यंग इंडिया’ कॉलम और प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन पत्रिका में ‘राग ऑफ द मंथ’ नियमित है। वह पुस्तक पढ़ने के शौक़ीन हैं, और उन पर नियमित चर्चा करते रहते हैं, जो यहाँ और अन्य पत्रिकाओं में संकलित हैं।

इस वेबसाइट में प्रवीण के समस्त लेखन अथवा उसकी जानकारी को संकलित करने की चेष्टा है।


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