राग भैरवि

भैरवि (या भैरवी) को सदा सुहागन रागिनी तो कहते ही हैं, लेकिन इसका विस्तार इन उपमाओं से परे है। शायद ही कोई संगीत कार्यक्रम हो, जिसका अंत भैरवि से न होता हो। और शायद ही कोई सुबह हो, जब दुनिया के किसी एक कोने में भैरवि न गाया या सुना जा रहा हो।

भैरवि (या भैरवी) को सदा सुहागन रागिनी तो कहते ही हैं, लेकिन इसका विस्तार इन उपमाओं से परे है। शायद ही कोई संगीत कार्यक्रम हो, जिसका अंत भैरवि से न होता हो। और शायद ही कोई सुबह हो, जब दुनिया के किसी एक कोने में भैरवि न गाया या सुना जा रहा हो। आज भी। 

एक साधारण कन्सेप्ट जो मन में बैठाया जा सकता है कि अगर स्वर कोमल हों, सॉफ्ट हों, तो उसका प्रभाव भी सॉफ्ट होगा। भैरवि के स्वरों की यह विशेषता तो है ही, और तभी रागिनी भी कही जाती है। लेकिन इसको उठाने में एक फ़्लेक्सिबिलिटी भी है, कि आप कहाँ से उठा रहे हैं। इसलिए, भैरवि में आपको अगर प्रात:कालीन अभंग और भजन मिलेंगे तो ग़म और मयखाने में डूबे ग़ज़ल भी मिलेंगे, ठुमरी-दादरा भी मिलेंगे। फ़िल्मी गीत तो तमाम। शंकर-जयकिशन के बनाए गीत। के.एल. सहगल के गाए गीत। एक जबलपुर के एक्सपर्ट से सुना कि ‘धूम’ फ़िल्म के गाने भी भैरवि राग में हैं!

अब देखिए, भैरवी से कैसे सुबह हुई और कैसे देश जुड़ गया। पंडित भीमसेन जोशी के पास प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कुछ सलाहकार पहुँचे कि एक गीत बनाना है। पंडित जी के लिए यह कोई मुश्किल बात नहीं थी, लेकिन राग कौन सा चुनते? तो उनके मन में जो एक परिकल्पना बनी कि एक खूबसूरत सुबह हो रही है, और पूरा देश मिल कर एक गीत गा रहा है; तो वहाँ भैरवी ही उनके जेहन में आयी। 

यह पंद्रह अगस्त 1988 का दिन था, जब लाल किले पर राजीव गांधी ने अपना भाषण दिया, और उसके ठीक बाद दूरदर्शन पर पंडित भीमसेन जोशी एक जलप्रपात के किनारे बैठे हुए गाते हैं- मिले सुर मेरा तुम्हारा। यह कोडाइकैनाल का वही जलप्रपात था, जहाँ उसके बाद प्रीति जिंटा के नहाते हुए लिरिल साबुन का विज्ञापन आया था। लेकिन, उस दिन वहाँ की छटा ही अलग थी। आज वहाँ भैरवी थी।

पंडित जी ने 45 मिनट की अपनी प्रस्तुति रिकॉर्ड करायी, जिसमें से तीस सेकंड छाँट कर गीत में डाल दिए गए। हद तो यह कि गीत लिखने के लिए कोई गीतकार मिल नहीं रहे थे, तो उस ऐड कंपनी के जूनियर एकाउंटेंट पीयूष पाण्डे ने गीत लिख दिए। बाद में वह इस गीत के दम पर ही काफी ऊ

भीमसेन जोशी जी की एक और बात थी कि वह अमूमन किसी और गायक के साथ मंच साझा नहीं करते। उनका स्वरमान भी अलग था, तो जमता नहीं। लेकिन, उनका कहना था कि वह मात्र दक्खिन के गायक बाल मुरलीकृष्णन के साथ गा सकते हैं। तो इस गीत में भी उनको लाया गया। और जब वह आए तो एक कलाकार उनके साथ ही आ गए, जिनका नाम गीत के विडियो में नहीं था। जब बाला मुरलीकृष्णन समंदर किनारे गाते हैं, तो वह कलाकार यूँ ही पत्थर पर बैठे नजर आएँगे। कमल हासन।

यह भी इस विडियो की ख़ासियत थी कि कई कलाकार बस यूँ ही आम आदमी की तरह नजर आ जाएँगे। अरुण लाल कलकत्ता मेट्रो की भीड़ में, तो प्रकाश पादुकोणे यूँ ही कई श्रोताओं के साथ बैठे।

इस गीत को सुन कर जब आप पंडित भीमसेन जोशी जी का भजन ‘जो भजे हरि को सदा’ सुनेंगे, तो राग का एक खाका दिमाग में बैठ सकता है। ब्रह्मानंद का भजन है। अनूप जलोटा से मैथिली ठाकुर तक को गाते सुना है। लेकिन, पंडित भीमसेन जोशी का गाया भजन एक अलग दुनिया, एक अलग आकाश में है।

जो भजे हरि को सदा- https://youtu.be/EqlYN2hHYtY

  1. Anol Chatterjee (disciple of Ajoy Chakraborty) – https://youtu.be/v-LhNqPdC5s
  2. Lata Mangeshkar. – https://youtu.be/uy8HHzh9Tco
https://vimeo.com/30727719
Ustad Vilayat Khan

“…उनके जीवन से जुड़ी वह स्त्री जो सदैव उनके साथ रही, वह कोई मनुष्य नहीं थी, वह एक राग थी- भैरवी।”

विलायत ख़ान की जीवनी में नमिता देवीदयाल जब यह लिखती हैं, तो उसके कई मायने हैं। वह भैरवी के लिए समर्पित थे। संगीत के कई उस्तादों की तरह वह भी मुसलमान थे, और नियमित माला लेकर अल्लाह का नाम जपने वाले। बंगाल में रह कर भी ऐसी उर्दू कि लखनवी नवाबजादों को पानी पिला दें। भैरवी में डूब कर जो वह ‘भवानी दयानी सकल बुध ज्ञानी’ गुनगुनाते, तार छेड़ते देवी पार्वती की एक सशक्त छवि रचते; वह कई हिंदू पुरोहित भी न कर पाएँ। इसलिए, यह कहा जाता रहा कि ‘पर्फेक्शन’ का दूसरा नाम है- विलायत ख़ान।

एक प्रस्तुति है। इसमें विलायत ख़ान, उनके मस्तमौला बेटे शुजात ख़ान तो हैं ही, तबले पर जाकिर हुसैन हैं। देखिए कि कैसे दो पीढ़ियों की मीड (ग्लाइड) और लयकारी से समाँ बँधी है। भैरवी के भंगिमाएँ। यह विलायत ख़ान साहब में बात थी कि एक ही प्रस्तुति में भक्ति-रस भी ला देंगे और ‘चुनरी रंग डार’ ठुमरी से भैरवी की एक और मुद्रा दिखा देंगे। जैसे कोई नृत्य चल रहा हो। उदाहरण – https://youtu.be/R48Qnl79XNI

विलायत ख़ान (नाटपिया) की ही बनायी एक बंदिश है-

“तुम हो जगत के दाता, रखियो मोरी लाज नाथ
जोबन लुटाए बैठी, कौन मुख लाज्यो
तुम्हरे पास आवन को मनवा लजाता”

यह बंदिश मैंने उल्हास कशालकर जी से लाइव भी सुनी है। अभी मौजूद गायकों में उनसे बेहतर भैरवी गाने वाले कम हैं। यह बात विलायत ख़ान ने स्वयं कही थी।

हालांकि यह बंदिश किसी और रूहानी बंदिश की जुड़वाँ बहन है।

यह हमारी क़िस्मत है कि वह आवाज ग्रामोफ़ोन में बंद हो गयी, जिस रिकॉर्डिंग को सुनते ही बालक भीमसेन जोशी ने घर त्याग दिया था कि अब संगीत सीखना है। मैं जब भी उल्हास कशालकर की गायी ‘तुम हो जगत के दाता’ सुनता हूँ तो नेपथ्य में उन्ही उस्ताद की गायी एक बंदिश मन में गूँजती है- ‘जमुना के तीर’।

भैरवी में एक से एक ठुमरियाँ गायी गयी, लेकिन इस ठुमरी की महानता इसी में है कि इससे अब्दुल करीम ख़ान जुड़े हैं। जो भी, जहाँ भी, इसे गाता है, उस्ताद को याद करता है। यह संगीत की एक ख़ास अदब है कि किसी भी वरिष्ठ का नाम लो, या गीत गाओ, तो एक बार कान छूकर उन्हें आदर दिया जाए। यह जरूरी नहीं कि वह आपके गुरु रहे हों, या आप मिल चुके हों।

हाल में अब्दुल करीम ख़ान पर ‘जमुना के तीर’ नाम से वृत्तचित्र बना। उसमें उनकी तमाम दुर्लभ रिकॉर्डिंग भी हैं, ऐसा सुना है।

इस बंदिश को पूरा-पूरा मैंने पंडित जसराज के भाई और अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित के पिता प्रताप नारायण जी की आवाज में सुना है। लता मंगेशकर जी ने भी अलग रूप में ‘देवता’ फ़िल्म में गाया है। और बिस्मिल्लाह ख़ान ने खूबसूरत शहनाई के साथ इस बंदिश को निभाया है। एक अफ़ग़ानिस्तान के गायक थे मुहम्मद हुसैन ‘सराहंग’ जिन्होंने शायद कभी बड़े ग़ुलाम अली ख़ान को संगीत प्रतियोगिता में मात किया था, उन्होंने भी यह भैरवी की बंदिश गायी है।

‘जमुना के तीर’ की प्लेलिस्ट

भैरवी की बंदिशों में जितना ठहराव है, उतनी ही गति भी। फ़िल्मी गीतों में ख़ास कर समय कम होता है, तो ये द्रुत बंदिशें काम की होती है। ‘अनुराधा’ फ़िल्म का यह गीत, पंडित रविशंकर का सितार और लता मंगेशकर की आवाज 

“साँवरेsss साँवरेsss
काहे मोसे करो जोरा जोरी, बैयाँ न मरोड़ो मोरी, दूँगी दूँगी गारी हटो जाओ जी!”

ऐसी बंदिशें और भी हैं, जिनमें यह गति है। फ़िल्मों से इतर भी। जैसे, एक बंदिश है- ‘देखो मोरी चूड़ियाँ कड़क गइयाँ’। यह मास्टर कृष्णराव और शैला दतार की आवाज में इंटरनेट पर भी उपलब्ध है।

राधा-कृष्ण के रास-लीला पर आधारित इन बंदिशों से भैरवी का एक अलग द्वार खुलता है। होली पर बंदिश है- ‘न मारो भर पिचकारी’। यह कुमार गंधर्व की आवाज में जहाँ विलंबित लय में है, वहीं वसंत राव देशपांडे इस बंदिश को अपनी ट्रेडमार्क तानों से सजाते हैं।

और मन्ना डे का वह गीत

‘कोरी चुनरिया आत्मा मोरी
मैल है माया जाल
वो दुनिया मोरे बाबुल का घर
ये दुनिया ससुराल
हाँ जाके बाबुल से नजरें मिलाऊँ कैसे, घर जाऊँ कैसे?
लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे?’

यह भी भैरवी है। एक जीतेंद्र अभिषेकी की गायी- ‘पायलिया बाजे रे मोरा सैयाँ’ क्या खूबसूरत द्रुत बंदिश है!

एक तो हिंदुस्तानी संगीत अथाह महासागर है, जिसमें भैरवी स्वयं एक सागर है। अभी तो ठुमरी, दादरा, टप्पे की बात ही नयी हुई। और उन फ़िल्मी गायक की बात भी तो नयी हुई, जिनके गले में भैरवी का वास था। उनसे सहज भैरवी भला किसने गाया? 

हाँ। मैं कुंदन लाल सहगल की ही बात कर रहा हूँ।

https://youtu.be/zGKU7jL7zfU
कुंदनलाल सहगल की भैरवी

एच.जी.वेल्स ने कहा था कि मैं किसी भी मंजिल पर पहुँचने के लिए सीधा चलना पसंद करता हूँ, क्योंकि यही सबसे छोटा रास्ता होता है। 

राग भैरवी तक पहुँचने का सबसे सीधा रास्ता अख़्तियार किया कुंदनलाल सहगल ने। आपने अगर उन्हें सुना होगा, तो संभव है कि हर गीत में एकरूपता नजर आए। कोई ख़्वाह-म-ख़्वाह की तान नहीं। सहज। उन्हें एक दफ़ा फैयाज़ ख़ान साहब ने सुना तो कहा कि तुम्हें सीखने की जरूरत नहीं, तुम बस गाओ! एक सुगम गायक के रूप में उनसे बेहतर भैरवी कोई न गा सका। वाज़िद अली शाह के ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए’ हो या उनका क्लासिक ‘जब दिल ही टूट गया’। 

एक दूसरे गायक जिन्होंने उनकी तरह गाना शुरू किया था, वह थे मुकेश। उनको ख़ास कर संगीतकार दान सिंह ने जितने गीत दिए, अधिकतर भैरवी में दिए। एक बार मदन मोहन ने पूछा कि आप इतनी सहजता से भैरवी कैसे गवा लेते हैं? वाकई यह मिलियन डॉलर प्रश्न है। लेकिन, यह हुआ है। बार बार हुआ है।

बाबुल मोरा प्लेलिस्ट

नवाब वाज़िद अली शाह की अधिकतर मशहूर ठुमरियाँ भैरवी में बिठायी गयी। ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए’ तो उन्होंने तब लिखी, जब उन्हें अवध की नवाबी छोड़ कर कलकत्ता के मटियाबुर्ज जाना पड़ा। 

वह ‘अख़्तरपिया’ नाम से ठुमरी लिखते थे। उनका साथ देने के लिए होते, वह व्यक्ति जो भारत में हारमोनियम के पितामह कहे जा सकते हैं— भैया साहब गणपत राव। वह भी ‘सुघरपिया’ नाम से ठुमरी लिखते। इसके अलावा बिरजू महाराज के दादा जी— बिंदादीन महाराज, कथक करते। स्वयं वाज़िद अली शाह भी बेहतरीन कथक नृत्य करते, और तमाम नाचने-गाने वालियाँ तो उनके साथ रहती ही। गायकी पर बनारस के उस्ताद मोइज़ुद्दीन ख़ान।

फिर रचा जाता— बाजूबंद खुल खुल जाए, साँवरिया ने जादू डारा

अवध के नवाब पर राधा-कृष्ण का प्रभाव क्यों था, यह तो कहने की जरूरत नहीं। उनका रचना-संसार ही इस प्रेम के इर्द-गिर्द है। लेकिन बाजूबंद खुल खुल जाए का अर्थ क्या हो? 

इस पर कुमुद झा दीवान ने लिखा है कि राधा विरह में इतनी दुबली होती जा रही है कि बाजूबंद खुल खुल जा रहे हैं। तब तो ठुमरी में इसका शोख़ चेहरा उभर आता है, लेकिन है यह विरह-गीत। 

भैरवी में जितनी भक्ति है, उतनी ही करुणा भी। तभी तो ठुमरियों और भैरवी का संगम है।

बाजूबंद खुल खुल जाए प्लेलिस्ट

फुलगेंदवा न मारो

1. Rasoolan Bai – https://youtu.be/Zkd2WG2NB8Y 
2. Malini Rajurkar – https://youtu.be/I5Nr8chlT98 
3. Manna Dey – https://youtu.be/jX_8TpSCyBY

आजा बलम परदेसी, नैना मोरा तरस रहे

1. Bade Ghulam Ali Khan – https://youtu.be/sVVUcpyEo8k 
2. Barkat Ali Khan – https://youtu.be/RY_JGcVGNEQ
3. Munawar Ali Khan and Bade Ghulam Ali Khan (son-father duo) – https://youtu.be/XbgvrdDz1mI 
4. Ajay Pohankar – https://youtu.be/PvMJswRshlE 
5. Kaushiki Chakraborty – https://youtu.be/q6tGJEeFHPo 
6. Ghulam Ali – https://youtu.be/Q5-jQ4lJ8uM 
7. Javed Bashir-Akbar Ali Coke Studio fusion – https://youtu.be/q90zq1-heR4

जात कहाँ हो

भैरवी गाथा का अंत करता हूँ बाबा अलाउद्दीन ख़ान के अंत से। बाबा का जन्मस्थान पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) में था, जो ‘71 में युद्ध की त्रासदी झेल रहा था। पंडित रविशंकर और जॉर्ज हैरिसन (बीटल्स) ने बांग्लादेश जाकर राहत-कोष के लिए कार्यक्रम किए। अगले वर्ष बाबा मैहर में चल बसे।

8 अक्तूबर, 1972. फिलहार्मोनिक हॉल, न्यूयॉर्क

पंडित रविशंकर, अली अकबर ख़ान और अल्ला रक्खा ख़ान मंच पर बैठे हैं। पंडित रविशंकर कहते हैं, “मित्रों! आज की शाम हमारे गुरु बाबा अलाउद्दीन ख़ान के नाम है, जो एक मास पूर्व चल बसे। संगीत की यह क्षति कभी पूरी नहीं हो सकती। हमारे लिए वे महानतम संगीतकार, एक महानतम वादक थे।”

उसके बाद शुरु होता है वह ऐतिहासिक कन्सर्ट जिसमें बाबा के दोनों शिष्य ऐप्पल रिकॉर्ड्स के अपने आखिरी एल्बम के लिए साथ बैठते हैं। हेम बिहाग, मंज खमाज और एल्बम का अंत होता है ‘सिंधु भैरवी’ से। यह मैहर की पेटेन्ट भैरवी थी, जिससे कभी अली अकबर ख़ान ने अमरीका में हिंदुस्तानी संगीत का आग़ाज़ किया था। इस भैरवी में वह चपलता नहीं, जो पंडित जी के सितार में कई बार नजर आती है। इसमें एक असीम शांति है, करुणा है। 

आखिरी अंश में यूँ लगता है जैसे अली अकबर ख़ान के सरोद और पंडित जी के सितार से आँसू झड़ रहे हो। और फिर दोनों सवाल-जवाब करते एक-दूसरे को ढाढ़स दे रहे हों कि यह मैहर का संगीत नहीं रुकेगा। चलता रहेगा।

https://youtu.be/I1nKVExbewM

Kahe Rokat Shyam Dagariya अश्विनी भिडे देशपांडे की 9.5 मात्रा में बंदिश

Some Taranas in Bhairavi

Tappa in Bhairavi

  1. Mushtaq Hussain Khan – https://www.parrikar.org/music/bhairavi/mhk.mp3
  2. Krishnarao Shankar Pandit – https://www.parrikar.org/music/bhairavi/krsp0.mp3 , https://www.parrikar.org/music/bhairavi/krsp1a.mp3 , https://www.parrikar.org/music/bhairavi/krsp1b.mp3 
  3. Malini Rajurkar – https://youtu.be/x3g_0acblsM 

Instrumental in Bhairavi

Sarod

  1. Ali Akbar Khan – https://youtu.be/AvA-vog4srU 
  2. Ali Akbar Khan-Nikhil Banerjee duet (and probably Dhyanesh Khan too, with Mahapurush Mishra on tabla. Recorded in late 60s) – https://youtu.be/JnspLMwgeyE 

Sitar

  1. Abdul Halim Jaffer Khan- https://youtu.be/_9r09NcAGG0 

Harmonium

1. Govindrao Patwardhan – https://youtu.be/CG1RgG-5_Hk 

 

3 comments
  1. ‘वाह उस्ताद’ अमेज़न पर नहीं मिल रही है। दक्षिण भारत में रहने वाले लोगों को ये किताब कैसे मिलेगी? जल्दी पढ़ना है।

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